Friday, May 15, 2009

१६ गुवाळियो नीं ऐवाळियो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-१६//२००९

गुवाळियो नीं ऐवाळियो

पणी भाषा रै इण स्तंभ में का'ल आप व्यंग-लेख 'गुवाळियो' बांच्यो। इण बावत म्हारै कनै मोकळा फोन आया। ओ आपरी पाठकीय जागरूकता रो प्रमाण। राजस्थानी लूंठी भाषा अर लूंठो इण रो सबद-भंडार। हरेक भाव अर हरेक चीज रा न्यारा-न्यारा नांव। भे़ड नै आपणै लरड़ी, टरड़ी, लाड़ी अर गाडर भी कैवै। भे़ड रै बच्चै नै घेटियो, उरणियो, लैळकी, ले'ड़ियो। नर भे़ड नै मींढो। भे़डां रा दळ नै जिणमें बकरी अर गधा भी सामल हुवै, रेवड़ या एवड़ कैवै। रेवड़ रै पाळनहार नै रेवड़ रो पाळी, एवड़ रो पाळी, रेवाड़ियो, एवाड़ियो अर ऐवाळियो भी कैवै। गडरियो भी आपणी भाषा में चलै। भे़ड नै गाडर तो गाडर चरावणियै नै गडरियो। पाठकां री बात साव साची कै भे़डां रै पाळी नै गुवाळियो नीं ऐवाळियो कैवै। गुवाळियो तो गायां चरावणियै नै कैवै। आपणै अंचल में हर भांत रै ढोर-डांगर नै चरावणियै सारू गुवाळियो सबद भी रूढ़ हुयग्यो। इण वास्तै आ चूक होवणी भी सुभाविक। आपरो आपरी भाषा सारू मोह अर सजगता रै कारण आप म्हानै चेतो भी करावता रैवो आ म्हारै वास्तै घणै गुमेज री बात।
जकी धरती आपां नै पाळै-पोखै। जकी भाषा रा संस्कारां सूं आपां संस्कारित हुवां बीं सारू आपणो फरज तो बणै ई है। पंजाबी में गुरदास मान रो गीत है नीं.... 'जे़डे मुलक दा खाइये ओसदा बुरा नीं मंगीदा...'
तो एक जंगळ में चंदण रा दरख्त। बां पर रैंवतो एक हंस। एकर जंगळ में आग लागी। सगळा जीव-जिनावर उड चल्या। हंस बैठ्यो रैयो। तो चंदण रो रूंख बोल्यो-
आग लगी बनखंड में, दाझ्या चंदण-वंस।
हम तो दाझे पंख बिन, तूं क्यूं दाझै हंस?
तो हंस रो जवाब हो-
पान मरोड़या रस पिया, बैठा एकण डाळ।
तुम जळो हम उड़ चलें, जीणो कित्ती'क काळ!
जिण दरख्त रा पान मरोड़-मरोड़ रस पींवता रैया। जिण री डाळ पर बसेरो कर्यो। वां रो साथ छोड़'र जीवणो भी कांईं जीवणो। कैयो है-
हंसा सरवर ना तजो, जे जळ खारो होय।
डाबर-डाबर डोलतां, भला न कहसी कोय।।

आज रो औखांणो

आपनै सूझै कोनी, दूजां नै बूझै कोनी।
समझदार व्यक्ति की राय मानने से किसी मूर्ख व्यक्ति का काम सुधर सकता है, पर माने तब न। मान जाये तो वह फिर मूर्ख ही कहाँ।

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