Friday, May 1, 2009

2 मई- बागड़ गो खारो पाणी

आपणी भाषा-आपणी बात
2 मई, 2009

बागड़ गी सुणाद्यूं का'णी रै,

बागड़ गो खारो पाणी


-रूपसिंह राजपुरी
कानाबाती-9928273519

कै विद्वान-दार्शनिक रोटी-कपड़ा अर मकान नै जमारै री पैली जरूरत बताई, बो स्यात राजस्थानी कोनी हो। नीं तो पून अर पाणी नै आंस्यूं पैलां गिणांवतो, जकां बिनां मिनट ई नीं सरै। पाणी री तंगी राजस्थानी लोग जलम सूं ई देखण लागज्यै। ईं खातर अठै रै गीतां-लोकगीतां, किस्सां-कहाणियां, छंदा-पदां में पाणी रो जबरो जिकरो। जकी चीज री अबखाई होवै, बा ई चित्त चढै। 'भूखै आगै आडी आडां, उत्तर मिलै रोटी।' पाणी री दरकार इत्ती कै ईं नै पाण खातर जूणी लाग ज्यांवती। 'ढोला-मारू' अमर लोकगाथा में मालवा सूं मारवाड़ में परणाई गोरड़ी दुखड़ो गावै कै ओ किसो देस, जठै आधी रात नै ई म्हारो कंत म्हारी गळबाहां छु़डा'र सूती नै छोड़ज्यै, पाणी री तलास में?
राजस्थान रै अलावा दुनियां में और कठै ई पाणी नै ताळा लगा'र राखण री बात नीं सुणीज्यै। घी-दूध सस्तो, पण पाणी मूंघो। पईसां वाळा धर्मी-सेठ गाबा-लत्ता नीं बांटता। पाणी खातर कूवा, बावड़ी, कुंड, टांका, तळाव खुदवांता। आज भी आपणी विरासत रा ऐ वारिस, आपणा जळ-स्रोत, कूक-कूक'र कैवै कै कदै म्हे ई महताऊ होंवता। सैंकड़ों हाथ नीचो पाणी काढणो अर गांव नै प्याणो कोई सोरो काम कोनी होंवतो।
'छोरा जाम्यां एक घर खुसी अर मेह बरस्यां घर-घर गुलगुलां' री कैबा राजस्थान में पाणी री जरूरत नै ई दरसावै। बादळ देख'र मोर-पपीहां सूं पैली अठै रा लोग ई नाचै। बिरखा रै पाणी नै टूम नाऊं बी ज्यादा साम्भनै राखै। पालर पाणी तो मरतै नै जिवाद्यै। अमूमन कूवां रो पाणी खारो निकळतो, बीं नै भी बरतता। न्हाण-धोण खातर ओ ई काम आंवतो। घरां आये़डै बटाऊ नै दो लोटा झलांता। मुंह-हाथ धोण नै खारो अर पीवण नै मीठो। मीठै में खांड नीं घोळ्योड़ी होंवती। पीणजोग होंवतो बीं नै मीठो पाणी कैंवता। गीत चालतो-
'बागड़ गी सुणाद्यूं का'णी रै,
बागड़ गो खारो पाणी।
काळा-काळा छोरा बां गै खूब पीवै राबड़ी।
सूत बां नै लाधै कोनी, जट्ट गी बांधै तागड़ी।'
आज भलां ई बा तंगी नीं रैयी। नूंई पीढ़ी रा जवान फ्लैश आळी कूई में बटण दबा'र घळ्ळक देणी-सी दो घड़ा पाणी बरबाद करद्यै। पण पैली आळा बुजुर्ग अजे भी बट्ठळ में बैठ'र न्हावै। बो पाणी पसुआं नै नुहाण या दरखतां में घालण रै काम में लेवै। बै भूल्या कोनी जद ऊंठां पर ढांचो मांड'र झांझरकै ई दूसरै गांव रै जोहड़ै सूं चोरियां पाणी भर'र ल्यांवता। कदे पकड़्या जांवता तो बै धोरै पर ई ढुळा लेंवता। अजे भी बै मरदानी लुगायां बैठी है जकी दिनूगै नै पचास घड़ा सिर पर ढो लेंवती। लोट, छागळ अर मसकां पाणी सारू बरतीजती।
रावतसर तैसील में मायलो अर चांदे़डी दो गांव। कन्नै-कन्नै बसियोड़ा। पाणी इत्तो खारो कै पींवतां ई आगलो पट्ट देणी-सी मर ज्यांवतो। काळजै पर नाग-सो लड़ ज्यांवतो अठै रो पाणी। दो अणजाण बटाऊवां री मौत रो किस्सो कहीज्यै-
'मायलो बूझै चांदे़डी भूआ,
अठै-सी दो बटाऊ बूआ?
बूआ रै बूआ,
खेळ कन्नै पाणी पी, चाक कन्नै मूआ।'
रहीमजी 'रहिमन पानी राखिए बिन पानी सून' में मोती-मानस-चून री कदर नीं बताई, पाणी रो मोल बखाण्यो है। आगूंच गोखणिया विद्वान कैवै कै दो विश्व-जुद्ध पैली होग्या। तीसरो तोपां मिसाइलां सूं। चौथो फेरूं ढाल-तलवार, तीर-कमाण, लाठी-भाटां सूं होसी, पण होसी पाणी खातर। अजे ई चेत ज्यावां, पाणी बिन होण आळी 'सून' रै सरणाटै नै अबा'र ई समझल्यां। कूआ-बावड़ी नै फेरूं संभाळां। फगत सिर-धोवण आळै दिन ई बांरी फेरी लगा'र घूघरी ना बांटां। बां नै रोज संभाळां। बांरी पूजा करां, धोक लगावां। क्यूं कै अजे ई पाणी री कोई बफराई कोनी हुई। पाणी खातर गोळियां चालै। बिरखा-जळ नै घरां ई राखणै री जुगत बिठावां। बो ई इमरत है।
कवि कन्हैयालाल सेठिया जी री बात ध्यान में राखणी-
'बिन भाषा बिन पाणी, बिलखै राजस्थानी'

आज रो औखांणो

घी ढुळै तो कीं कोनी, पांणी ढुळै तो पेट बळै।

No comments:

Post a Comment

आपरा विचार अठै मांडो सा.

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?