Thursday, May 7, 2009

८ बाड़ी भरी बसंत री लूटी लूवां आय

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- //२००९

बाड़ी भरी बसंत री,

लूटी लूवां आय

राजस्थान बा धरा जठै खून सस्तो अर पाणी मूंगो। बात सट्टै जठै सीस देईजै। इसड़ी धरा रो कवि जुद्ध रै जुझारां नै कविता सुणा देवै तो मरियोड़ा तलवार उठा लेवै। सीस कट्यां पछै भी धड़ लड़ै। आ राजस्थानी जोद्धा री कोनी, कविता री ताकत है। जकी धरती पर मरण मंगळ मानीजै बीं धरा पर प्रकृति रै मिस जीवण री कामना करी कवि चंद्रसिंह बिरकाळी। 'लू' अर 'बादळी' बां रा अमर-काव्य। आखी दुनियां में धूम मचाई। कवि जकी भाषा में आ सरजणा करी बा आज ई आपरै मान नै तरसै। तपती धरती मेह सूं सरसै तो भाषा मानता सूं। कविता भाषा नै तोलण वाळी ताकड़ी मानीजै। आज बांचो, कवि चंद्रसिंह बिरकाळी रा रच्या 'लू' काव्य-कृति रा कीं दूहा अर कूंतो आपणी भाषा री ताकत। इण दूहै मांय कवि लूवां सूं अरज करै कै फूलां री नरम-नरम पांखड़्यां है, नरम-नरम-सी ऐ बेलां अर नरम-नरम-सा पत्ता है, आं रो ध्यान राखी। आं पर दया करी।

कोमळ-कोमळ पांखड़्यां, कोमळ-कोमळ पान।
कोमळ-कोमळ बेलड़्यां, राख्यां लूआं ध्यान।।

पण लूवां क्यां री मानै! वा तो वसंत री भरियोड़ी बाड़ी लूट लेवै।

काची कूंपळ फूल फळ, फूटी सा बणराय।
बाड़ी भरी बसंत री, लूटी लूवां आय।।

बेलां री आंख्यां साम्हीं उणरा लाडेसर बेटा फूल झड़-झड़ पड़ै। देख-देख बेलां झुरै। इण दुख में जड़ समेत भुरभुरा जावै।

झट झट आंख्यां देखतां, झड़ झड़ पड़िया फूल।
झुर झुर बेलां सूकियां, भुर भुर गई समूळ।।

बैसाख महीनै में लूवां बाळपणो। इण बाळपणै में ई इत्ती आकरी, तो जेठ महीनो तो लूवां रै जोर-जोबन रो महीनो, उण वगत बचण रा कांई उपाव करस्या!

बाळपणै बैसाख में, तातो इसड़ो ताव।
पूरै जोबन जेठ में लूआं किसो उपाव।।

राजस्थान री तिरसी धरा पर पाणी री तंगी। दूर-दूर सूं चौघड़ भर-भर ऊंठां पर लाद-लाद बठै लावै जठै घर रा तिसाया जीव-जिनावर पाणी नै उडीकै। पाणी नै घी री दांई बरतै, पण फेर ई लातां-लातां ई निवड़ जावै।

भर चौघड़ चालै घरै, जठै तिसाया जीव।
लातां-लातां नीवड़ै, बरतै जळ ज्यूं घीव।।

'लू' कृति में कुल 104 दूहा है। बाकी दूहा भी आपां बांचता रैस्यां।

आज रो औखांणो

लूवां बाजै जद आक रो दूध ई सूख जावै।

जद सामाजिक आंदोलन रो दौर आवै तो ठाडा-ठाडां रा जीव सूखणै पड़ जावै।

2 comments:

  1. Bhai,
    Satynaryan ji Viond ji
    Ram-Ram sa
    Kavi Chander singh Birkalra duhha vanchiya prkirti nai bhut hi najdik su mahsus keriyo hai Birkali ji.
    Birkali ji hamesha yaad rehsi jed tek a dhora rehsi.
    Thye sachi likhyio hai ki ;Kvita bhasha nai tolen wali takrei maijye.
    Birkali ji ra dhuhha thye mahney yaad dilaya e khatir tharo dhanyabad.
    NARESH MEHAN

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  2. विचार तो थारा घंना.ही चोख्या लाग्या..!लू री.. तो काई....बात करां.......रोज देखां....

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