Monday, May 18, 2009

१९ आधी रोटी काख में सुसियो लिटै राख में

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १९//२००९

आधी रोटी काख में

सुसियो लिटै राख में

-डॉ. मंगत बादल

'आडी' यानी तिरछी या टे़ढी! मतलब जकी सीधी नीं हुवै। आडी अर पहेली नै बिंया तो पर्यायवाची मानै पण इण में फरक। पहेली रो उत्तर जठै एक सबद में हुवै 'आडी', एक छोटी कविता (RHYNE) जिण नै टाबर एक-दो बार सुणतां ईं याद कर लेवै। एक तरां री समस्या पूर्ति रो ई बीजो रूप। लारली सदी रै पांचवै-छठै दसक में जद टेलीविजन रो प्रवेश गांवां में कोनी हो, रात नै टाबर सोणै सूं पैली पहेली पूछता मतलब आडी आडता। घर में जितरा टाबर होंवता बै आपरी दो टोळियां बणा लेंवता अर पछै आडी आडण रो कार्यक्रम सरू! जको दळ जवाब नीं दे सकतो बो हार ज्यांवतो।
समाज में इण आडियां रो चलण परापरी सूं चालतो आयो। आज सोच'र हैरानी हुवै कै जद गांवां में आज री भांत स्कूल कोनी होंवता। गांव में कोई एक-दो मिनख मुस्कल सूं एड़ा मिलता जिकां नै आखर-ग्यान होंवतो, पण इण रै बावजूद व्यावहारिक शिक्षा री कमी कोनी ही। टाबरां रै मनोविग्यानिक विकास में आं आडियां अर पहेलियां रो पूरो योगदान होंवतो। हिसाब-किताब रा चालू गुर अर नीति री बातां रो ग्यान भी आडियां में मिलै। अचूम्भै री बात है ड़ो पाठ्यक्रम कुण त्यार करतो?
टाबर री तर्क बुधी रो विकास करणै तांईं अर कविता मुजब बां में जिज्ञासा जगावणै रा एड़ा छोटा-छोटा प्रयास लोक में चालता ई रैंवता। आडी में भी एक छोटी-सी कविता हुवै। एक आडी है- सुसियै नै बाळी पै'रावणो-
खड़बच पींडी, खड़बच बाण,
रै सुसिया करां निनाण,
करतां-करतां आई दीवाळी,
रे सुसिया पै'रां बाळी।
कुण तो इण कविता रो रचण वाळो अर इण रो उद्देश्य कांईं? तो जबाब है कै ऐड़ी बेशुमार कवितावां (RHYNE) लोक ई रची अर उद्देश्य भी टाबरां नै शिक्षा देणो। टाबर तुकबंदी करणो किण भांत सीखता, आं छोटी-छोटी कवितावां सूं ठा पड़ै-
भूरी भैंस नै पढ़ाद्यो-

आधी रोटी पर कढ़ी।
भूरी भैंस पढ़ी।

सुसियै नै राख में लिटाद्यो-

आधी रोटी काख में।
सुसियो लिटै राख में।

टाबर सैं सूं पैली मायड़-भाषा सीखै अर आप रै आळै-दुआळै रै वातावरण नै देख्यां-समझ्यां बीं री समझ भी बधै। आं छोटी-छोटी कवितावां में रोटी, भैंस, कढ़ी अर सुसियो बीं रा देखे़डा हुवै। इण कारण बीं रै स्मृति-पटळ पर ऐ बातां सदां-सदां खातर मंड जावै। अब म्हारो ओ बताणो कांईं मायनो राखै कै मायड़-भाषा में शिक्षा देणो टाबर तांईं कितरों फायदेमंद हुवै। घर में राजस्थानी, समाज में हिंदी अर स्कूल में जाय'र जद 'एक्स' फोर 'जायलोफोन', 'वाई' फोर 'याक' अर 'जैड' फोर 'जेबरा' भणै तो बो मासूम रट तो लेवै, पण इण मुजब इतरो ई जाणै कै इणां री तस्वीर बीं रै कायदै में मंडेडी हुवै।
आज जै़डी बातां प्रतियोगितात्मक परीक्षावां में पूछी जावै, बै भी इण आडियां अर पहेलियां में पूछी जांवती। एक पहेली है-
थांरै साळै रो साळो
बीं रो डावो कान काळो
बीं रै भाणजै री भूवा
थां रै कांई लागी?
जवाब-घरआळी या साळी।
इणी' भांत किणी ऊंट रै सवार सूं पूछ्यो-
अरे! ऊंट रा सवार,
थांरै सागै जिकी नार
थां री बै' है या बेटी?
बै' या बेटी नै ऊंट रै आगलै आसण बिठांवता। पूछणियै देख' कैयो। पण जबाब मिल्यो-
ना म्हांरी बै', ना बेटी,
इण री मां अर म्हारी मां,
है दोन्यूं मां-बेटी।
थे कोई पेच भिड़ाओ!
म्हांरै लागै कांईं? सोच' बताओ!
जवाब-भाणजी।
लोक इण भांत शिक्षा दे देंवतो। कैयो है- कान कटै बो कै़डो सोनो? विद्या नै भी मिनख रो सिणगार मानै, पण जद म्हूं छोटै-छोटै नौनिहालां नै भारी-भरकम बस्तो चक्यां देखूं तो सोचूं- कद हुवैलो म्हांरी शिक्षा में सुधार?

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