Thursday, May 14, 2009

१५ गुवाळियो -रामधन अनुज

गुवाळियो

रामधन अनुज रो जलम 8 जून, 1961 नै श्रीगंगानगर जिलै रै गांव लाडूवाळी में हुयो राजस्थानी रा समरथ लिखारा। लघुकथा संग्रह 'काळी कनेर' छपियोडो। प्रयास संस्थान, चुरू कानी सूं बरस 2008 रो दुर्गेश स्मृति पुरस्कार मिल्यो। अबार जेसीटी मिल, श्रीगंगानगर रै प्रसासन विभाग में काम करै। आज बांचो, आं रो व्यंग।

-रामधन अनुज


बियां तो कोई भी माणस गुवाळियै सबद सूं अणजाण कोनी, पण फेर भी जे कोई है तो म्हारै इण लेख नै पढ़्यां समझ सकै। गुवाळियो बणन खातर आज तांईं कोई डिग्री या सिक्सा रो स्तर निर्धारित कोनी। एम.ए. पी।एचडी। सूं लेय'र अंगूठा छाप तांईं कोई भी आदमी गुवाळियो बण सकै। क्यूँ कै भेड चराण खातर आज तांईं म्हारै देस मांय इस्यो कोई स्कूल या ट्रेनिंग सेंटर कोनी बण्यो। एक स्कूल मास्टर नै गोरमिन्ट रिटायर कर'र घरां घाल देवै कै अब तूं कीं काम रो कोनी रैयो। पण बो गुवाळियो बण सकै। अर बै भेडां, बस थे एक'र सोचल्यो कै म्हैं गुवाळियो बणनो है। गुवाळियो बण्यां पाछै थानै भेडां ल्याण री जरूरत कोनी। भेड अपणै आप थारै कनै आ जासी। गुवाळियो बणनै री सुरूआत करणै सूं पैलां थानैं थोड़ै-भोत चारै रो प्रबन्ध करणो पड़ सकै। थोड़ो टेम भी काढ़णो पड़ सकै। गुवाळियो बणन खातर आदमी नै बोलणो आणो चाईजै, जकोभेड बिण रै सबद-जाळ मांय उळझी रेवै अर भाज ना सकै। रैई बात चरित्र री तो जिकै गुवाळियै रो चरित्र जित्तो माड़ो, बो बित्तो ई आच्छो। इसी म्हारै देस री मानता। गुवाळियो ठण्डै सुभाव रो प्राणी। थे बिणनै गाळ काढ़ो, जूत्ती फैंको, कीं कैवो, बो बात नै हांस'र टाळ देवै।
गुवाळियां रो आपरो एक अळगो समाज। भेडां नै दिखाण खातर बै आपरै विरोधी गुवाळियां नै गाळ काढ़ता रेवै। पण आथण सगळा बैर-विरोध भुला'र साथै बैठ जावै। इणसूं बेरो लागै कै म्हांरै देस मांय विभिन्नता मांय एकता रो पाठ पढ़ाण मांय गुवाळियां रो कित्तो योगदान है। गुवाळिया छोटा-बड़ा भी हुवै। छोटा गुवाळिया बै हुवै जिका आपरै गांव री भेडां नै ई चरा सकै। अर बड़ा गुवाळिया बै जिका पूरै देस री भेडां नै चरा सकै।
गुवाळियै री एक खासियत आ भी है कै बै भेडां री बात नै एक कान सूं सुणै अर दूजै सूं काढ़ देवै। एक अणपढ़ गुवाळियो एस.डी.एम. या कलैक्टर नै फटकार सकै। छोटै मोटै थाणै-तहसील रा काम तो गुवाळियै रै डावै हाथ रो खेल। थाणेदार जिसी नौकरी करण वाळा तो बापड़ा इणां रै आगै-लारै फिरै। बड़ै सूं बड़ो अपराध कर्यां पाछै भी इणांनै पकड़न खातर पुलिस रै पसीना आज्यावै अर थाणै मांय भी गुवाळियां री इत्ती सेवा हुवै धाणै जंवाई आये़डो हुवै।
जे सगळी भेडां मिल'र आपरै गुवाळियै नै राजधानी पूगा देवै तो फेर तो कैवणो ई कांईं। बठै लम्बै-चौड़ै खेत नै गुवाळियो जी-भरगे चर सकै। बेटा-पोता, भाई, भतीजा, लुगाई सगळां नै बो गुवाळियो बणनै री बिद्या सीखा सकै। जियां-जियां गुवाळियो बड़ो हुवै, बिण री याददास्त भी कम हुंवती जावै। होळै-होळै बो आपरै गांव रो नांव भी भूल जावै। पण कई कानूनी अड़चना है कै पांच सालां पाछै गुवाळियां नै फेरूं गुवाळियो हुवण रो प्रमाण-पत्र भेडां सूं लेणो पड़ै। बस आ ही एक दवाई है जिण सूं बिणा री याददास्त फेरूं लोटै अर बै भेडां बिचालै आवै।
मैं एक बात आज री भेडां सूं कैवणो चावूं कै बै पढ़णै मांय आपरो टेम बरबाद करण री जगां गुवाळिया बणन री कोसिस करै तो स्यात ज्यादा फायदो हुवै। दूसरी बात आ है कै गुवाळियो बणनो नौकरी लागण सूं जादा सोखो काम है। नौकरी मांय तो साठ साल पाछै रिटायर भी हो सको, पण गुवाळियै री तो कोई उमर ई निर्धारित कोनी। बै तो अस्सी साल सूं ऊपर री उमर तांईं भी भेडां चरा सकै। आज जे म्हारै सिरखी छोटी-छोटी भेडां भी गुवाळियो बणज्यावै तो आपरी रोज री जरूरतां तो आराम सूं पूरी कर सकै।

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