Saturday, January 31, 2009

१/२ चंदण की चिमठी भली

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-//२००९

चंदण की चिमठी भली,

गाडो भलो न काठ।

स्यांणै मिनखां री स्यांणी बातां। स्यांणी बातां बगत-बगत पर सुणावण में काम आवै। मिनखां नै संस्कारित करै। राजस्थानी लोक में आं बातां री कोई कमी नीं। कोई ओड़-थोड़ नीं। आपणी भासा में नीति अर सीख री बातां घणी चालै। घर-आंगण, खेत-खळै अर बास-गळी में बातां, बात-बात पर सुणन नै मिल ज्यावै। आओ, आज बांचां ऐ स्यांणी-स्यांणी बातां-
मूरख री पिछांण
घणी दवा सूं बिगड़ै तन,
परधन देख्यां बिगड़ै मन।
बिना भावतो खावै अंन,
तीनूं ई मूरख जन।।
सुसरा रै घर नितकी रैणो,
मांग परायो पैरै गैणो।
छत्तां पइसां राखै दैणो,
आं तीनां नै मूरख कैणो।।

सीख री बातां
बैठणो भायां रो, होवै चायै बैर ई।
जीमणो मां रै हाथ रो, होवै चायै जैर ई।
चालणो गेलै रो, होवै चायै फेर ई।
छीयां मौकै री, होवै चायै कैर ई।
धीणो भैंस रो, होवै चायै सेर ई।।

सातूं सुख
पैलो सुख-निरोगी काया,
दूजो सुख-हो घर में माया।
तीजो सुख-पतिबरता नारी,
चौथो सुख-सुत आग्याकारी।
पांचवो सुख-सुथांन वासो,
छट्ठो सुख-हो नीर-निवासी।
सातवों सुख-राज में पासो।।

आज रो औखांणो
चंदण की चिमठी भली, गाडो भलो न काठ।
चातर तो एक ई भलो, मूरख भला न साठ।।


चंदन तो चुटकी भर ही भला, मगर काष्ठ का गाड़ा भरा हो तो भी भला नहीं माना जाता। इसी प्रकार चतुर-सुजान तो एक हो तो भी भला होता है, मगर मूरख-जन साठ हों तो भी किस काम के? मतलब प्रतिभा की सौरभ पूजनीय है। यह कहावत इस अर्थ में भी कही जाती है कि नेकी का धन तो मुट्ठी भर भी काफी और काला धन ढेरों भी बेकार होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
email- aapnibhasha@gmail.com
blog- www.aapnibhasha.blogspot.com

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1 comment:

  1. many thanks for wright this rajasthani stories and fun and another good thinks is very best. your this type message will be meet any rajasthani student and rajasthani like people .all rajasthani read your letter and essay . again many thanks u. i wish that god give rajasthani manyata soon and all rajasthani'will be happy. ganeshdan

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