Saturday, February 28, 2009

१ /३/२००९ गळगचिया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-//२००९

गळगचिया

न्हैयालाल सेठिया राजस्थानी रा नांमी लिखारा। हिन्दी, उर्दू अर अंगरेजी मांय भी आप मोकळो लिख्यो। आपरो जलम 11 सितम्बर, 1919 नै सुजानगढ़ मांय हुयो। कलकत्ता बस्या अर मायड़भासा साहित्य रो भण्डार भरयो। 11 नवम्बर, 2008 नै आप चल बस्या। राजस्थानी लोक मांय भी आपरी रचनावां घणी चावी। 'पातळ' पीथळ', 'धरती धोरां री' आद कवितावां जगचावी। आं री रचनावां में राजस्थानी माटी री मीठी सौरम आवै। आपरी कवितावां में भाव, भासा, चिंतन अर दरसण री गंभीरता खास रूप सूं उल्लेखजोग है।
'गळगचिया' आपरी चिंतन प्रधान गद्य-काव्यमयी रचना। रचना 1960 ई। में छपी। इण में चौसठ गद्य-काव्य हैं। आं गद्य गीतां मांय कवि लोकजीवण रा न्यारा-न्यारा चितरामां नै मिनख जीवण सूं जोड़या है। कई सवालां रा जवाब जिका दरसण सूं समझणा भी अबखा हुय जावै कवि आं रै मारफत सरल सरूप में समझावण री कोसिस करी है।
'गळगचिया' नदी रा चिकणा अर गोळ पत्थरां नै कैवै। पत्थर देखण में अर परसण में घणा व्हाला लागै। इण वास्तै स्यात आं प्यारी-प्यारी रचनावां रो नांव कवि गळगचिया राख्यो। भूमिका रूप में कवि 'परचो' सिरैनांव सूं फगत दो वाक्य मांड्या है- ''मन रो अचपळो बाळकियो विचार री गंगा स्यूं गळगचिया छाँट छाँट'र चुग्या है। आं में किस्यो गळगचियो शिव है'र किस्यो गळगचियो लोढो है ईं री पिछाण तो पारखी ही कर सकैला।''
तो आओ, आज बांचां कीं गळगचिया।

(1)

मैणबत्ती कयो- डोरा, मैं थारै स्यूं कत्तो मोह राखूं हूं ? सीधी ही काळजै में ठोड़ दीन्ही है।
डोरो बोल्यो- म्हारी मरवण, जणां ही तो तिल तिल बळूं हूँ।


(2)

तांबै रै कळसै माटी रै घड़ै नै कैयो- घड़ा, थारै में घाल्योड़ो पाणी ठंडो किंया रवै'र म्हारै में घाल्योड़ो तातो कियां हुज्यावै?
घड़ो बोल्यो- मैं पाणी नै म्हारै जीव में जग्यां द्यूं हूँ'र तूं आंतरै राखै, ओ ही कारण है।


(3)

पानड़ां कयो- डाळां, म्हे नहीं हूंता तो थे कत्ती अपरोगी लागती?
फूल कयो- पानड़ां, म्हे नहीं हूंता तो थे कत्ता अडोळा लागता?
फळ कयो- फूलां, म्हे नहीं हूंता तो थांरो जलम ही अकारथ जातो?
फळ में छिप'र बैठ्यो बीज सगळां री बात सुण'र बोल्यो- भोळां, मैं नहीं हूंतो तो थे कोई कोनी हूंता।


आज रो औखांणो

कीरत हंदा कोटड़ा, पाड़्यां नांह पड़ंत।
कीर्ति के गढ़-कांगुरे कभी नहीं ढहते।
पत्थर से बने कैसे भी मजबूत गढ़-किले व स्मारक समय के हाथों ध्वस्त हो जाते हैं पर आदर्श पुरुषों की कीर्ति व यश के महल सदा अक्षुण्ण रहते हैं।
पूरा दोहा इस प्रकार है-

नांव रहसी ठाकुरां, नांणौ नांह रहंत।
कीरत हंदा कोटड़ा, पाड़्यां नांह पड़ंत।।


मैणबत्ती-मोमबत्ती, नांणो-रिपिया।

राजस्थानी चितराम

राजस्थानी चितराम

राजस्थानी चितराम

Friday, February 27, 2009

२८ ढूंढ तो करावो थांरै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २८/२/२००९

ढूंढ तो करावो थांरै मौबी बेटा री

-प्रो. जहूरखां मेहर

बीजी जागां तो सोळा संस्कार पण राजस्थान में होळी सूं जुड़ियो थको सतरवों संस्कार भी मौजूद। ढूंढ संस्कार। ढूंढ होळी नै घणै ई लाडां-कोडां लडाईजण री साख भरै। किणी टाबर रै जलम्यां पछै पैली होळी आवै जद ढूंढ करीजै। इण वेळा टाबर रै झांझरिया घड़ावै। टाबर री मां रै वेस सिड़ावै। ढूंढ करण सारू न्यात-बास रा लोग फागण गावता टाबर रै घरै पूगै। टाबर रो काको क गवाड़ रो कोई मोटियार बारणै बिचाळै बाजोट ढाळै। बाजोट रा दो पागा फिळै रै मांय अर दो बारै राखै। उण माथै खुद बैठै। टाबर नै बो आपरै खोळै में सुवावै। आवण वाळा गैरियां मांय सूं दो जणा आगै आवै। टाबर रै ऊपर आडी लाठी ताण देवै। बाकी रा गैरिया आप-आप री लकड़ियां सूं बीं लाठी पर वार करै। तड़ातड़-तड़ातड़ बाजती जावै। सगळा गावण लागै-

चंग म्हारो गैरो बाजै
खाल बाजै घेटा री
ढूंढ तो करावो थांरै मौबी बेटा री
म्हांनै खाजा दो क हां रे खाजा दो।

खासी ताळ तड़ातड़-भड़ाभड़ करियां पछै गैरियां री अगवाई करतो व्है जको टाबर रो लाड करै। उणनै हजारी उमर री आसीस देवै। इण पछै टाबर रै घर रो बडेरो गैरियां नै आपरी सरधा मुजब गुळ, खाजा, टक्का अर मिठाई देवै। कठैई बामण एकलो घर में जाय अर सगळी रीत सूं एकलो ई निवड़लै। बीजा गैरिया फिळै रै बारै ई ऊभा रैवै। ओ ढूंढ संस्कार। ढूंढ सूं जुड़ियोड़ो एक औखांणो ई चावो। एक होळी रा ढूंढियोड़ा। कोई साईनो अणूंती डींगां हांकै अर हेकड़ी पादै जद कहीजै क भाई क्यूं घसकां धरै, हां तो आपां एक ई होळी रा ढूंढियोड़ा।

आज रो औखांणो

फागण फरड़ियो अर गवूं करड़ियो।
फागुन का रुख बदला और गेहूं पका।
मौसम आने पर प्रत्येक वनस्पति फलती है, पकती है। फागुन में गेहूं ही या पुरुषों की उत्तेजना भी पकने लगती है।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.

कानांबाती-9602412124, 9829176391

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सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
email- aapnibhasha@gmail.com
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Thursday, February 26, 2009

२७ म्हारै होटां मायड़भासा ई ओपै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
- २७//२००९

स्टार वन रा लाफ्टर चैंपियन हास्य सम्राट ख्याली सहारण नै कुण कोनी जाणै! आपरो जलम सन 1975 में पीळीबंगा तहसील रै गांव 18 एसपीडी में होयो। कई फिल्मां में आप प्रमुख भूमिका निभाई है। इंटरनैट पर आप 'आपणी भाषा-आपणी बात' लगोलग बांचता रैवै। ओ लेख आप 'भास्कर' रै पाठकां सारू खासतौर सूं भेज्यो है।



म्हारै होटां मायड़भासा ई ओपै

-ख्याली सहारण

आपणी भासा में जित्तो रस, बित्तो दुनियां री किणी भासा में नीं। म्हैं कई भासावां में प्रोग्राम करूं। पण गांव में भाई-बेलियां सागै जिका हांसी-ठट्ठा होवै, बां में जिको मजो आवै, बिस्यो मजो और कठैई कोनी आवै। प्रोग्राम करण खातर देस अर विदेस में भी जिग्यां-जिग्यां जावणो पड़ै। आजकाल मुम्बई में बसूं। पण मन तो मायड़भोम अर मायड़भासा में ई रमै। म्हनै चंद्रसिंह बिरकाळी रो ओ दूहो हमेस चेतै रैवै-

जावां च्यारूं कूंट में, जोवां जगत तमाम।
निसदिन मन रटतो रवै, प्यारो मरूधर नाम।।

'ख्यालीजी, ख्यालीजी' सुणतां-सुणतां आखतो हुय ज्यावूं जणां 'ख्यालियो' सुणन खातर गांव में आवूं। 'ख्यालियै' में जिकी अपणायत अर प्यार ढुळै बो 'ख्यालीजी' में कठै! ख्यालियो सुण्यां काळजो ठंडो हूज्यै, काया तिरपत हूज्यै। मां री गोद में जिकी ममता है, बा दूजी ठोड़ कठै! म्हैं मायड़भोम अर मायड़भासा नै कदे को भूलूं नीं।
जद-जद राजस्थान, पंजाब, दिल्ली या हरियाणै आवणो हुवै, गांव जरूर आवूं। लारला दिनां गांव आयो जणां सौळा गोळी खरीदी काच री। हेलो मारयो, संगळियां नै कै आ ज्याओ भई, मांडल्यो पाणा, खोदल्यो घुच्ची। इंचल्यो! सारै दिन काच गोळी खेलता। इत्ता ठाट आया कै मत पूछो बात!
बडा-बडा फाइव स्टार होटलां में बो मजो कठै जको सूरतगढ़ में काळियै आळै ढाबै री चा में है। काळियो धारी आळै गिलास में जकी चा प्यावै, बा इमरत सूं मूंघी।
म्हनै पढाई सूं भोत प्यार हो। इत्तो प्यार हो, इत्तो प्यार हो, कै तीन-तीन साल एक ई क्लास झाल्यां राखी। दसवीं में तीन साल रैयो। अर आगै को सरक्यो नीं। फेर प्राइवेट पास करी। पण म्हैं दुनियां नै भोत बांची। म्हनै म्हारी मायड़भोम सूं डाडो लगाव है। मायड़भोम रो हेत म्हनै गांव कानी खींचै। अब म्हैं एज्यूकेशन आळो बाजार गाम में ई खोलण लागरयो हूं। जकै नीम रै नीचै मेरो पढण नै जी कोनी करतो, बीं नीम रै साम्हीं इस्यो स्कूल बणसी, जठै पढण नै जी करसी।
मायड़भासा री मान्यता सारू म्हैं लगोलग अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिति रै पदाधिकारियां सूं बंतळ करतो रैवूं। देस रा नामचीन नेतावां-मंत्रियां सूं भी इण मुद्दे पर बातां करी। म्हैं आजकाल राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति नै गहराई सूं जाणन री कोसिस कररयो हूं। राजस्थानी रै साहित्यकारां सूं चर्चावां चालती रैवै। राजस्थानी में हास्य अलबम री तैयारी में हूं। मायड़भासा में काम म्हैं म्हारै सुकून वास्तै कररयो हूं। असल में तो म्हारै होटां मायड़भासा ई ओपै। जिकी बातां मायड़भासा में कर सकूं। बै दूसरी भासा में जचै ई कोनी। गाम री बातां करतां-करतां एक बात याद आ'गी। सुणो-
छोटो सो गाम होवै। गाम में एक डाक्टर दुकान खोलै। तंदरुस्त रैवै गाम गा लोग। गामैं बीमार-बीमूर कोई होवै कोनी। डाक्टर गो काम चालै कोनी। तो डॉक्टर दवाई गै सागै-सागै पैंचर काढण आळो समान रखल्यै। कीं चप्पल-चूप्पल रखल्यै, कीं कापी-किताब, कीं मटियो तेल, कीं डीजल अर कीं पैंट्रोल रखल्यै।
रातनै एक दिन एक ताई आ'गी। बोली, बेटा! पेट दूखै। डाक्टर आंख मसळतां-मसळतां खड़्यो होयो। दवाई आळी सीसी तो हाथ आई कोनी। पैंट्रोल आळी आ'गी। भरगे ठोक दियो इंजैक्सन। अब ताई तो हो'गी स्टार्ट। ताई आगै अर डाक्टर लारै। गामैं काटै गे़डा। हाथ क्यांगी आवै! जणां रोळो मचायो, भाजो रे भाजो, ताई स्टार्ट हो'गी, ताई स्टार्ट हो'गी!

गाम गां टैक्टर काढ लिया। आगै ताई लारै टैक्टर। ताई किस्सी हाथ आज्यै! बोलो, हाथ कियां आवै! टैक्टर डीजल पर, ताई पैट्रोल पर। ........दिनगे च्यार बजे जा'गे ताई पड़ी। जणां लोग भेळा होया, अरै सुट्टो मारगी रै,...ताई सुट्टो मारगी।

आज रो औखांणो
आपरो घर सूझै सौ कोसां।
देश-परदेश कहीं भी जाओ अपना घर कभी आँखों से ओझल नहीं होता।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.

कानांबाती-9602412124, 9829176391

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Wednesday, February 25, 2009

२६ भाषा खूट्यां आप री

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २६//२००९


भाषा खूट्यां आप री,

ईं बचैलो मान

-ओम पुरोहित 'कागद'


परी भासा पिछाण बणावै। भासा गमै तो पिछाण गमै। होड़-ठिकाणां रा नांव। गांवां रा नांव। चीज-बस्त रा नांव। भासा पाण चालै। भासा खुरै या मिटै तो ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्त रा नांव खुरै-मिटै। दूजी भासा रै राज में नांव बदळै। अंग्रेजां री टैम कोलकाता सूं कलकत्ता, चैन्नई सूं मद्रास, बैंगलूरु सूं बंगलोर अर मुम्बई सूं बोम्बे या बम्बई होग्या। ओ बदळाव बठै री मायड़भासा री संकड़ाई अर अंग्रेजी रै बिगसाव पेटै होयो। ड़ा उदाहरण इतिहास में पण भरियोड़ा है। आ ई हालत आज राजस्थान री है। अठै री मूळ भासा राजस्थानी माथै धूळ जमाय दी। हिन्दी-अंग्रेजी रै प्रभाव में आय'र ठोड़-ठिकाणां, गांव-सैर अर चीज-बस्तां रा नांव ओळ-पंचोळा होयग्या। अब ऐड़ा नांव ना हिन्दी रा रैया, नां राजस्थानी रा।
आपणै अठै मूंग-मोठ-चीणां री दाळ होंवती। पण आ दाळ, दाळ सूं दाल होयगी। चावळ सूं चावल, बळीतै सूं बलीतो, कळ सूं कल, फळ सूं फल, बळ सूं बल, झळ सूं झल, टाळ सूं टाल, नाळी सूं नाली, फळी सूं फली, काळ सूं काल, पाणी सूं पानी, दळियै सूं दलिया, कांधळ सूं कांधल, बणीरोत सूं बनीरोत, बीकाणो सूं बीकानो, कांधळोत सूं कांधलोत होग्या। ऐड़ा उदाहरण है। आप कीं मैणत करो अर फड़द बणाओ।
इणी भांत गांव-सैरां रा नांव ओळ-पंचोळा होग्या। बिगड़ीयोड़ा नांव बांच-बांच हांसी भी आवै अर झाळ भी। पण करां कांई। किण रै आगै कूकां। आओ देखां, आपणी निजरां साम्हीं कांईं रैयो। कींया खुर रैयी है आपणी मायड़ भासा राजस्थानी। गांव रा नांव आपां बोलां कांई हां अर लिखां कांई हां। गांव सैरां रा नांव बदळतां-बदळतां एहलकारां रै हाथां राज रै कागदां में कींया चढग्या।
आपणो गांव धोळीपाळ हो। धोळी यानी सफेद। पाळ यानी 'बट' का रेत री भींत। बदळ'र होग्यो धोलीपाल। अब कठै रैयो धोलीपाल में धोळीपाळ रो अरथ? इयां ई परळीका सूं परलीका, जसाणा सूं जसाना, कमाणां सूं कमाना, दुलमाणां सूं दुलमाना, दीपलाणा सूं दीपलाना, पीळीबंगा सूं पीलीबंगा, काळीबंगा सूं कालीबंगा, अयाळकी सूं अयालकी, गोरखाणा सूं गोरखाना, ढाळिया सूं ढालिया, भिराणी सूं भिरानी, फेफाणा सूं फेफाना, गाढवाळो सूं गाढवालो, किळचू सूं किलचू, रूणीचै सूं रूनीचा, काळियां सूं कालियां, डबळी सूं डबली देखतां-देखतां ई बणग्या। राज रै कागदां में चढग्या। कीं रै कह्यां बदळ्या? कोई ठाह नीं। अब पण पाछा कींया बदळीजै। इण सारू खेचळ री पण दरकार। पाठक आप-आप रा गांवां रा नांव संभाळो। सागी जूनो अर इतिहासू नांव सोधो अर सूची बणाओ। आपरो इतिहास अंवेरण में संको क्यां रो!

भाषा राखै देस री, आन-बान अर स्यान।
भाषा खूट्यां आप री, नईं बचैलो मान।।

आज रो औखांणो

गांव रो जोगी जोगड़ो अर पार गांव रो सिद्ध।
अपनों की प्रतिभा आसानी से पहिचानी नहीं जाती और दूसरे की थोड़ी प्रतिभा भी बड़ी दिखती है।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.
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Tuesday, February 24, 2009

२५ पीसण वाळी रो चु़डलो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २५//२००९


पीसण वाळी रो चु़डलो

अमर रहियो म्हारा राज


-रामस्वरूप किसान

म्हैं चाकी। घट्टी अर घटूली म्हारानांव। पाथर री काया, लकड़ी रो हाथ। जुगां-जुगां सूं मिनखां रै साथ। मिनख जद घर बसायो। पैलपोत म्हनैं ल्यायो। क्यूंकै रोटी? मिनख री जरूरत मोटी। रोटी रो पैलो पड़ाव म्हैं। चूल्है तांईं चून म्हैं पूगावूं। म्हारो अर चूल्है रो गै'रो नातो। पण नातै में म्हैं बडी। म्हैं चूल्है री मौताज नीं। पण चूल्हो म्हारो मौताज। म्हारै बिना चूल्हो ठंडो। म्हारी मरजी बिना तोवो नीं टिकै। बोलो, रोटी कियां सिकै?
म्हैं जद-जद अणसारी रैवूं, चूल्हो भिणभिणो हुवै। म्हारै कानी आंख्यां फाड़ै। म्हारै ठीक होवण री बाट जोवै। म्हैं ठीक होवूं। चूल्हो हड़-हड़ हाँसै। अर हाँसतै चूल्है नै देख आखो घर खिलै। जदी स्यात हिन्दी रै नांमी कवि नागार्जुन कैयो-
बहुत दिनों तक चूल्हा रोया
चक्की रही उदास.....

म्हारी उदासी पर चूल्हो रोवण लागज्यै। आखो घर फीको हूज्यै। सगळां रै चै'रां पर दुवाड़ फिरज्यै। अर जद म्हैं हाँसूं, मरियोड़ो सरजीवण हूज्यै। आखा जी-जिनावर चेळकै में आज्यै। कैबा चालै-

घर में घट्टी न घर में चूल्हो, पर घर पीसण जाय।
पाड़ौसण सूं बातां लागी, चून गिंडकड़ा खाय।।

म्हैं घर रै जींवतै होवणै रो परमाण। म्हारी चाल में जीवण-राग। म्हैं बाग-बाग तो घर बाग-बाग। घर धिराणी आथण पीसणो कर, झावलियै में घाल म्हारै कनै छोडै। झांझरकै उठै। पीढै बैठ, एक हाथ सूं म्हनै झोवै। दूजै हाथ सूं दाणा गेरै। म्हारी काया सूं सुरीलो संगीत फूटै। झांझरकै रै सरणाटै में घुळै। च्यारूं कूंटां इमरत-सो ढुळै। गांव, गांव-सो लागै। म्हैं गांव री लोरी। गांव सूत्यो, जागै गौरी। गौरी ओ साज बजावै। साथै चू़डी खणकावै। साज सजोरो हो ज्यावै। अर इण सजोरै साज री लोरी में आखो गांव सोवै। मीठै सुपना में खोवै।
म्हैं चाकी। म्हनैं म्हारै पर गुमेज। म्हारै बिन्यां क्यां रो गांव! म्हैं गामाऊ परम्परा रो अटूट हिस्सो। म्हारो होवणो घर में सुभ मानीज्यै। ब्याह-सावै, बार-त्यूंहार म्हारी पूजा हुवै। नाळ बांधीज्यै। बान बैठै जद सात सुहागण्यां हळदी पीसै अर गावै-
हळदी पीसै फलाणै री नार
कोई घटूली रै पाट
पीसण वाळी रो चु़डलो
अमर रहियो म्हारा राज....

इणी भांत रातीजगै नै मैंदी पीसती बेळा मैंदी रो गीत गाइज्यै।
काम रै बटवारै में ओ लुगाई रो काम। आपणी परम्परा में म्हनैं लुगाई ई फेरै। मरद फेरतो अपरोगो लागै। मजबूरी में ओलै-छानै फेरै। साम्ही फेरतो हेठी मानै। कणतावै। बियां मरद नै चाकी ओखी ई हुवै। कैबा है कै मरद नै चाकी अर घोड़े नै छाटी ओखी। इण बावत समाज में एक किस्सो ई चालै-
एक जणो चाकी पीसै हो। अर साथै फाका मारै हो पीसणै रा। माची पर बैठी ही बीं री लुगाई। इतराक में उणरो सग्गो आयग्यो। जकै ने देख'र बीं रो पाणी उतरग्यो। धोळो हुग्यो। सग्गो बात नै ताड़ग्यो। अर बीं री कणतावणी दूर करण सारू बात बणांवतै थकां बोल्यो- ''पीसणै रा फाका मारो! थारी सग्गी तो दांणो ई कोनी चाखणद्यै म्हनै।''
आ सुण'र उण रै मूं पर बिजळी-सी आयगी। चाकी छोड'र आंगणै में छलांग मारतो बोल्यो- ''इत्ती तो छूट है यारां नै।''
आज रो औखांणो

धम्मड़-धम्मड़ पीसै अर जाती रा पग दीसै।
धम्मड़-धम्मड़ पीसे और जाने की सूरत दीसे।।

आदमी के कार्यों से उसकी मन:स्थिति का पता चल जाता है।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504


कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
कानाबाती- 9602412124, 9460102521

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राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

Monday, February 23, 2009

२४ जीव दया पाळणी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २४//२००९


जीव दया पाळणी,

रूंख लीलो नीं घावै

मनोहर लाल विश्नोई रो जलम 15 नवंबर, 1951 नै टिब्बी तहसील रै गिलवाळा गांव में होयो। आजकाल आप संगरिया रै राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मांय राजस्थानी रा प्राध्यापक हैं। मुक्तिधाम 'मुकाम' मेळै रै मौकै बांचो, आं रो लिखियोड़ो, ओ खास लेख।

-मनोहर लाल विश्नोई

राजस्थानी समाज रा आपरा न्यारा देवी-देवता। रामदेवजी, जांभोजी, तेजोजी, गोगोजी अर करणी माता लोक में सिरै। आं री मोकळी चावना-ध्यावना। आं री खास बात आ कै ऐ खुद वीर हा। संत हा। समाज हित में उपदेस दिया। समाज हित में वीरता दिखाई। आं रा मेळा भरीजै। मेळां में आखै देस रा जातरू धोक देवण आवै। बाबा रामदेव क्रसण भगवान रा, तो जांभोजी विस्णु रा अवतार मानीजै। ऐ देवता सांचमांच में मिनख हा अर करड़ै बगत में मिनखां रै आडा आया। आज आं री पूजा देव रूप में होवै।
बाबा रामदेव ऊंच-नीच रो भेद मिटावण री सीख दीवी तो जांभोजी मिनख में नैतिक गुणां रै विकास माथै जोर दियो। सदाचार नै सिरै मान्यो। जांभैजी रै जलम बावत दो बातां मिलै। पैली तो आ कै आपरो जलम वि. सं. 1508 री भादवै बदी आठम (सन 1451) नै पीपासर (नागौर) में पंवार राजपूत लोहटजी रै घरै होयो। वां री माता रो नांव हंसा देवी हो। दूजी धारणा आ है कै आप लोहटजी रै घर रै नजदीक खेजड़ै हेटै मिल्या।
मध्यजुग रा दूजा संता री भांत जांभोजी भी चमत्कारी हा। सुरजनजी लिख्यो है कै वां री पलकां कोनी पड़ती ही। न वै पीठ रै बळ सोंवता अर ना ई कीं खांवता-पींवता हा। बाळपणै में ई वां कई चमत्कार दिखाया। लोग वां नै अवतारी पुरख मानता। ख्स्त्र बरसां री उमर तक आप गायां चराई। पछै काम-धंधो छोडनै मानव सेवा रो संकळप लियो। सन 1485 मांय आप बिस्नोई पंथ री थापना कीनी। उणतीस सिद्धांत बणाया। वां सिद्धांतां नै मानणिया लोग बिस्नोई बाज्या। ऐ बिस्नोई आगै जाय'र एक जात रै रूप में ढळग्या। बिस्नोई मूळ रूप सूं खेती-बाड़ी करै। कुळ देवता रै रूप में जांभोजी नै पूजै। जीव-दया राखै। सदाचारी जीवण जीवै अर पर्यावरण रा रूखाळा हुवै।
जांभोजी इक्यावन बरस रा होया जित्तै 'सबद' कैया। बां आपरा घणकरा सबद समराथळ धोरै हेटै हरि कंके़डी हेटै दिया। जनसेवा रा मोकळा काम करिया। आप कैयो- 'जीव दया पाळणी, रूंख लीलो नीं घावै।' आप पिच्यासी बरस री उमर पाई। वि. सं. 1593 री मिंगसर बदी नौम्यूं (सन 1536) नै तलवा रै नजीक एक धोरै माथै आपरो बैकुंठवास हुयो। तद सूं ओ धोरो जांभोजी रो मुकाम मानीजै। अठै एक मिंदर है, जठै आयै साल दो वार आसोज अर फागण री अमावस नै तीन-तीन दिनां रो मेळो लागै। लाखूं जातरी न्यारै-न्यारै प्रांतां सूं आवै। माथो निवावै अर होम करै।
जांभोजी रै पर्यावरण आंदोलन नै बिस्नोई पंथ रा लोगां आगै बधायो। वां रै चेलै वील्होजी रूंख लगावण अर पाणी छाण'र पीवण सारू जोर दियो। वां कैयो, 'बिरछ काटण वाळै मिनख नै नरक मांय भी जाग्यां नीं मिलैली।' जांभोजी री सीखां रो ई असर हो कै रूंखां री रूखाळी सारू वि. सं. 1661 मांय दो सगी बैनां करमां अर गोरां आपरा माथा कटाया। तिलवासणी गांव री खिवणी, नेतू अर मोटू भी आपरा पिराण बिरछां री रिछ्या सारू दिया। वि. सं. 1700 मांय पोलावास (मे़डता) रा बूचोजी ऐचरा आपरो बलिदान रूंखां री खातर दियो। बिरछां री रिछ्या सारू सै सूं बडो बलिदान सन 1730 मांय जोधपुर राज रै खेजड़ली कलां गांव मांय होयो। अठै खेजड़ियां री रिछ्या सारू 363 बिस्नोईयां आपरो बलिदान दियो। आं 363 मांय सै सूं पैलां बलिदान इमरता देवी दियो।
बिस्नोइयां रो नारो है- 'सिर साटै रूंख रहै तो भी सस्तो जाण।' आज पर्यावरण रिछ्या सारू जित्ता भी आंदोलन होय रैया है, वां री जड़ां मांय गुरु जांभोजी रै उपदेसां रो ई हाथ है।

आज रो औखांणो

संतोखी नर सदा सुखी
जिस व्यक्ति को कुछ भी अभाव नहीं खटकता, वही सबसे अधिक सुखी और समृद्ध है।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.

कानांबाती-9602412124, 9829176391

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Sunday, February 22, 2009

२३ सिव-सिव रटै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २३/२/२००९

सिव-सिव रटै, संकट कटै

-ओम पुरोहित 'कागद'


तीन महादेव बिरमा-बिसणु-महेस। ऐ तीन देव एड़ा, जकां रै मां-बाप रा नांव किणी ग्रंथ मांय नीं लाधै। आं में ओ भेद भी नीं कै तीनां में सूं कुण पैली परगट हुयो। रिषि-मुनि सोध-सोध थक्या। छेकड़ आदि-अनादि-अनन्त कैय'र पिंड छुडायो। इण में सूं भगवान महेस नै देवां रो देव महादेव बतायो। इणी महादेव रै बिरमा-बिसणु रै बीच ज्योतिर्लिंग रूप में प्रगटण री रात नै कैवै- स्योरात। आ फागण रै अंधार-पख री चवदस नै आवै। मानता है कै जको इण दिन बरत राखै। अभिसेक करै। गाभा, धूप अर पुहुपां सूं अरचना करै। जागण करै। 'ऊँ नम: शिवाय' पांचाखर रो जाप करै। रूद्राभिषेक, रूद्राष्टाध्यायी अर रूद्री पाठ करै। बो शिव नै पड़तख पावै। उणमें सूं विकारां रो खैनास व्है जावै। उणनै परमसुख, शांति अर अखूट सुख मिलै।
स्योरात नै शिवपुराण में महाशिवरात्रि, इणरै बरत नै बरतराज कैयीज्यो है। स्योरात जम रो राज मिटावण वाळी। शिवलोक ढुकावण वाळी। मोक्ष देवण वाळी। सातूं सुख बपरावण वाळी। पाप अर भै नास करण वाळी मानीजै।
राजस्थान सूरवीरां री धरा। शिव अर सगति री मोकळी ध्यावना। अठै गढ़ां अर किलां में माताजी, भैरूंजी अर शिवजी रा मोकळा मिंदर। धरणीधर महादेव, शिवबाड़ी, गोपेश्वर महादेव, जैनेश्वर महादेव (बीकानेर), नीलकंठ महादेव (अलवर), हरणीहर महादेव (भीलवाड़ा), मंडलनाथ महादेव, सिद्धनाथ महादेव, भूतनाथ महादेव, जबरनाथ महादेव (जोधपुर), गुप्तेश्वर महादेव, परसराम महादेव (पाली), एकलिंगनाथजी (उदयपुर), ताड़केश्वर महादेव, रोजगारेश्वर महादेव, गळताजी (जयपुर), शिवमंदिर (बाड़ोली), पाताळेश्वर महादेव, पशुपतिनाथ महादेव (नागौर), रा मिंदर नांमी। महादेवजी रा इण मिंदरां में महाशिवरात्रि रा मेळा भरीजै।
अर अबार बांचो, एक लोककथा-

मैणत-सार

एकर मादेवजी दुनियां माथै घणो कोप कीधो। खण लियो कै जठा तांईं आ दुनियां सुधरै नीं, तठा तांईं संख नीं बजावै। मादेवजी संख बजावै तो बरसात व्है। काळ माथै काळ पड़िया। पांणी री छांट ई नीं बरसी। दुनियां घणी कळपी। घणो ई पिरास्चित करियो। पण मादेवजी आपरै प्रण सूं नीं डिगिया।
एक मादेवजी अर पारवतीजी गिगन में उडता जावै हा। कांईं देख्यो कै एक जाट सूखा में ई खेत खड़ै। परसेवा में घांण व्हियोड़ो। लथौबत्थ। भोळै बाबै मन में इचरज करियो कै पांणी बरसियां नै तो बरस व्हिया, पण इण मूरख रो ओ कांई चाळो! विमांण सूं नीचै उतरया। चौधरी नै पूछ्यो- बावळा, बिरथा क्यूं आफळै? सूखी धरती में क्यूँ पसीनो गाळै? पांणी रा तो सपनां ई को आवै नीं। चौधरी बोल्यो- साची फरमावो। पण खड़ण री आदत नीं पांतर जावूं, इण खातर म्हैं तो आयै साल सूड़ करूं, खेत जोतूं। जोतण री जुगत पांतरग्यो तो म्हैं पाणी पड़ियां ईं नीं जै़डो। बात महादेवजी रै हीयै ढूकी। मन में बिचार करियो... म्हनै ई संख बजायां नै बरस बीत्या। संख बजांणो भूल तो नीं गियो। खेत में ऊभा ई जोर सूं संख पूरियो। चौफेर घटा ऊमड़ी। आभै में गड़गड़ाट माची। अणमाप पांणी पड़्यो। जठै निजर ढूकै, उठी जळबंब-ई-जळबंब!


आज रो औखांणो

सिव-सिव रटै, संकट कटै।

किसी देवी-देवता का अस्तित्व हो-न-हो, पर मन की प्रबल भावना की शक्ति अदम्य होती है। शिव-शिव के निरंतर जाप से संकट टल जाते हैं या उनसे सामना करने की ताकत स्वत: बढ़ जाती है।

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Saturday, February 21, 2009

२२ सासू बिना किसो सासरो

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२२/०२/२००९

सासू बिना किसो सासरो

अर मां बिनां किसो पी'


हाजन रा रैवासी श्रीमती स्वाति लढा अर्थशास्त्र में एमए है। मायड़भाषा मानता आंदोलन सूं गहरोजु़डाव। सामाजिक सरोकारां सूं जु़ड्या आपरा आलेख पत्र-पत्रिकावां में छपता रैवै। आज बाँचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

-स्वाति ढा

पुराणै जमानै रा लोग जिकी बातां कैयग्या, बां रो सांच-मांच गैरो अर सही अरथ हुवै। जियां बात साव साची है- 'सासू बिना किसो सासरो अर मां बिनां किसो पी'' रामजी म्हाराज री किरपा सूं म्हारै तो सासू अर मां दोनूं है। अर भगवान सूं अरदास करूं कै दोन्यां री उमर लाम्बी करै।
जे सासू सा घरां रैवै तो डर अर संको रैवै। 'जिवड़ा, अबै तो उठ जावां, सासूजी जागग्या।' 'फलाणो काम बां भोळायो है जे नीं करस्यां तो लड़सी।' इसी बातां रो सगळै दिन डर खायां जावै। कैबा चालै- फोग आलो बळै अर सासू सूधी लड़ै। म्हारा सासू लड़ै तो है तो पण बां रै लड़णै में म्हारो हित है। बां रो हेत है। जे कीं नुकसाण हुय जावै तो घणो डर लागै। 'सासूजी लड़सी जे म्हारै सूं घी एक मिरकली ढुळग्यो तो।' 'गेऊं कोठी में घालां तो सावळ घालां, जे दाणा बिखरग्या तो लड़सी।' इसी बातां रो सगळै दिन डर खायां जावै। अबै कीं कैवैला! अबै कीं कैवैला! इण डर रै कारण घर रो नुकसाण नीं होवै। सावचेती राखीजबो करै। जे सासू थोड़ा दिनां वास्तै घर भळाय' आपरै पी' गया परा तो जणां पछै देखो। आज कुण कैवै- फलाणकी बहू, उठो, चाय बणाय' द्यो! आज तो कीं डर-भौ कोनी। मरजी आवै जणां उठो। मरजी आवै जियां करो। कुण चोखै काम करियोड़े नै सरावै अर कुण भूंडै नै बिसरावै? चालो, सगळो काम-काज निवे़ड' दोपार में घंटैक पड़ ज्यावां कमरै में जा'र। सासूजी घरां होवै तो बारलै कमरै में पोढ्या रैवै। कोई आवै-जावै तो बै जाणै। आज सगळो घर जाणै माथै आय पड़्यो। थोडीक देर में ठा पड़ी कै काकीजी आयग्या- 'सा, म्हानै फलाणी चीज उधार द्यो, काल-परस्यूं तांईं पाछी कर देस्यां।' किसीक तूमत! हां करी तो मरया अर नां करी तो मरिया। जे अबार सासूजी घरां हुवै तो म्हानै कांई मुतलब! बै जाणै बां रो राम जाणै। सांच-मांच सासूजी घरां नीं है तो किसीक गिरै आयगी है। लोगां साची कैयी है- 'सासू बिना किसो सासरो!'
अबै मां कानी अर पी' कानी देखल्यो। मां हुवै जणै आंख्यां फाड़' उडीकै- आज म्हारी लाडेसर घरां आवैली! जावां जणै- 'बाई तूं तो थकगी घणी। सावळ खाया-पीया कर। लै, तनै भावै तो बणा' द्यूं, बो बणा' द्यूं। भोजाई भलां उठो, मत उठो पण मां उठ' बणासी।
'मां, म्हैं फलाणी सहेली कनै जा' आऊं!' तो माऊ कैवै, काल तो आई है बाई, हाल तो बातां कोनी करी, सहेली कनै पछै जाज्यै।' 'मां, जावण द्यो नीं!' 'हां, थांनै घूमणो चोखो लागै, बाई, सासरै में कांईं निहाल करती हुवैला?' ल्यो, बिसरा दिया लाड करतां-करतां!
अर सासरै जावण रो दिन आवै जणै- 'थारै सागै मैलद्यूं, थारै सागै बो मैलद्यूं।' भाभी नै कैवै- फलाणो करो, ढीकड़ो करो बाई खातर।' भाई नै दोड़ावै- 'अबार रा अबार चीज ल्या' द्यो।' बापू नै कैवै- 'थांनै कीं ध्यान कोनीं! बाई सारू चीज ल्याणी है, बा चीज ल्याणी है।'
सो रामजी म्हाराज, आं दोन्यां री उमर बडी करज्यो। जणै सासरै अर पी' में भदरक है। क्यूँकै सासरै में सार नीं सासू बिना, अर पी'रै में प्यार नीं मां बिनां।

आज रो औखांणो

सासूजी थे सांस ल्यो, म्हैं कातूं थे पीसल्यो।
सास-मां तुम सांस लो, मैं कातूं तुम पीस लो।
जो चालाक व्यक्ति फुसलाकर दूसरों को तो भारी और कष्टप्रद काम सौंपने की चेष्टा करे और स्वयं हलके काम की जिम्मेवारी संभालना चाहे तो यह कहावत उस पर कटाक्ष के रूप में कही जाती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504

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Friday, February 20, 2009

२१ मायड़भासा/रुत आई रे

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २१//२००९

देथाजी रो ओ लेख आज 'दैनिक भास्कर 'रै संपादकीय पानै माथै सगळा संस्करणां मांय छप्यो है।

मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा

रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो


21 फरवरी, 1952 रै दिन बांगला भासा रो मान बचावण सारू ढाका में नौ जणां आपरो बलिदान दियो। इतिहास में प्रेम सारू, देस सारू बलिदान हुवण री बातां तो घणी सुणी पण भासा-प्रेम सारू आ निराळी घटना ही। इण घटना री याद में हर बरस 21 फरवरी नै आखै संसार रा मायड़भासा-हेताळु, खासतौर सूं बांगला-भासी इण दिन नै भासा-शहीद-दिवस रै रूप में मनावै। यूनेस्को इण दिन नै अंतरराष्ट्रीय मायड़भासा दिवस घोषित कर राख्यो है। इण मौकै आपां राजस्थानी रा लूंठा लिखारा पद्मश्री विजयदांन देथा सूं दूरवाणी माथै बातचीत करी। अठै पेस है वां सूं हुयी बातचीत रा कीं टाळवां अंस।

-पद्मश्री विजयदांन देथा

भासा कोई थोथो नारो नईं है। सरीर रो हिस्सौ व्है मायड़भासा। भासा खतम व्है तो लाखां सालां री सांस्क्रतिक परम्परा खतम व्है। आपरै सांस्कृतिक वातावरण मांय पनप'र जको सबद निकळै उण री कोई होड़ नीं व्है। भासा शास्त्री भासा नईं बणावै। भासा सिरजै है- औरत वर्ग, खेत-खळां अर दूजी ठोड़ पचण वाळा, पसीनो बहावण वाळा मजूर-किरसाण।
अठारवी सताब्दी में रूस में जका अभिजातीय वर्ग हा, वै फ्रेच बोलता और बाकी गरीब तबको रूसी। पण कोई भी रूस रो, जर्मनी रो, जापान रो मातृभाषा बिना आगै नीं बध सक्यो। किणी देस रो लिखारो व्हो, आपरी मायड़भासा बिना कोई रवीन्द्र बाबू, बंकिम या झंवेर चंद मेघाणी नीं बण सकै। कोई भी क्लासिकल साहित्य मायड़भासा टाळ नीं रचीजै। अठै रो आकास, अठै री जमीन, अठै रो पांणी सगळो मातभासा रै पांण ई अभिव्यक्त व्है। नौकरी लागण वास्तै तो भलां ई दस भासावां सीख लो, पण रचनात्मक साहित्य री सिरजणा तो मायड़भासा में व्है ई सकै।
छव बरस री उमर में टाबर कनै आपरी मायड़भासा री जित्ती सबदावळी व्है जावै, वा दूजी भासा में बीए करै जद तक नीं व्है सकै। आपणा कित्ता-कित्ता सबद है, लोकगीत है, मुहावरा है, औखांणा है, बातचीत रा कित्ता लफ्ज है। ब्रजमोहन जावलिया आपरी लोकजीवन सबदावली में जिका सबदां रो संकलन करियो है, वो घणो अनोखो काम है। आप बांचो। एक-एक प्रक्रिया रा आपरा न्यारा-न्यारा सबद है।
लोकगीत आपणै राजस्थान में करीब-करीब सब समान है। बोली में थोड़ो-घणो फरक है। डिंगळ, जो राजस्थानी रो ई प्राचीन रूप है, एक हजार साल तक अठै काव्य रो माध्यम रैयी। म्हैं जद पढणो-लिखणो सरू करियो जद सूं लेयनै एमए करी जित्तै राजस्थानी री किताबां कोनी मिळती। पण म्हारै अवचेतन में राजस्थानी रा दाणा हा। वां सूं लिखणो पोळायो। 1958 में संकळप लीन्यो कै राजस्थानी टाळ किणी दूजी भासा में कागद ई नीं लिखूंला।
राजनीतिक इच्छाशक्ति बिना कोई भासा नै मान्यता नीं मिळ्या करै। आपणै देखतां-देखतां बोडो, संथाली, डोगरी, नेपाली, कोंकणी, मैथिली अर पतो नीं कित्ती भासावां नै मान्यता मिळगी। वां रै नेतावां में दम हो। आपणा नेता वोट री वगत तो भासण मायड़भासा में करै, पण मायड़भासा रै मान-सनमान री बात नीं जाणै। वै नीं जाणै कै मायड़भासा सूं वंचित रैवणो, कित्ती बड़ी सम्पदा सूं वंचित रैवणो है।
आज भण्या-गुण्यां मोट्यारां रो फरज बणै कै वै जनता नै इण मुद्दे सारू जागरूक करै। आजादी वास्तै सगळो देस नीं लड़्यो। गिण्या-चुण्या मिनख व्है जो आंदोलन में आगीवाण व्हिया करै। आज हरभांत रो भेद मेट'र मायड़भासा रै सनमान सारू एकठ व्हैण री जरूरत है, क्यूंकै आपणी संस्क्रति में मां, मांयड़भोम अर मायड़भासा रो दरजो सुरग सूं ई ऊंचो है।
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रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की

-रामदास बरवाळी

फागण रै रंग में अंग-अंग रमै। मैहरी करै मस्ती रो सिणगार। घाघरियो-कु़डतियो, ओढणियो। मूंछां लकोवण खातर काढै घूंघटो। बांधै पेटी। पगां मांय बंधावै मोटा-मोटा घूघरिया। दिखावै घूम-घूमाळो नाच। उठै डंफां रा धमीड़ा। गावै धमाळ।

रुत आई रे पपईया तेरै बोलण की।
रुत आई रे......।
कठै रवै रे तेरा मोर-पपईया रे,
कठै रवै रे प्यारी कोयलड़ी ?
रुत आई रे......।
बागां में रवै रे मेरा मोर पपईया,
म्हैलां में रवै रे प्यारी कोयलड़ी।

कोई मुरळी बजावै। कोई जोड़ी-खड़ताळ, कोई झुझणिया बजावै। टेरिया नाचै दे दे गे़डा। सुणीजै धमाळां री मीठोड़ी लवा। दूर-दूर तांईं मो'वै काळै नै बीण दांईं। जो'ड़ा, कुवा, बावड़ी, पणघट मांय दीसै-मुळकता मूंडा। धमाळां री रणुकार। 'धीमी चालो ए पणिहारी लहंगो गरद भरै।' बारियो किल्ली काढतो गावै। पणघट में पणिहारी घड़लो डबोंवती गावै। बाणियो धड़ी भरतो ई गुणगुणावै- 'लहंगो गरद भरै।' कड़तू पर बोरी उंचायां पलदार ई गावै- 'धीमी चालो ए पणिहारी।' ऊंट चढ्यो हाळी गावै। भेडिया चरांवतो पाळी गावै। फूल तोड़तो माळी गावै। दूध काढती घरहाळी गावै। आ मीठोड़ी लवा, तो भूखी भैंस पावसज्यै। गधो ई डंफां रै साथै आपरै सुर में गावै- 'सूवो पाळ्यो ए बंगालण छोरी जुलम करयो, सूवो पाळ्यो ए।' राख में लिटती बीं री जोड़ायत भी लारै क्यूं रैवै- 'देवर म्हारो ए ओ हरियै रुमाल वाळो ए.....देवर म्हारो ए।'
टाबर मनावै फागण री मौज। छोरियां बड़कूलियां री माळा बणावै। गांव रै गौरवैं जद होळी मंडै, मैहरी होळी मंगाळण जावै। धमाळ गांवता-नाचता। छोरियां बड़कूलियां री माळा होळी नै पै'रावै। मोट्यार आपसरी में होळी खेलै। होळी री झळ सूं जमानै रा सुगन मनावै। झळ री लकड़ी सै लोग आप-आपरै घरां लावै। हाँसता-मुळकता, नाचता-गावता, उठै मस्ती रा रमझोळ। बाजै चंगां रा धमीड़ा। मैहरी गावै- 'राजा बलि कै दरबार मची रे होळी, राजा बलि कै।' आखी रात घालै धींगड़।
झांझरकै ई होळी रो नारेळ बधारै। चिटकी बांटै। मुळकतै मूंडै गावै- 'लेवण आयो ए सहेली म्हारो देवर चिटकी... लेवण आयो ए।' दिनूगै ई गैर खेलण सारू रामरूमी करता घर-घर जावै। बोलै मीठोड़ा बोल। रांग-रंगीलो मस्ती भरियो होळी रो तिंवार। लागै जोबण री फटकार। रंग बरसावै मूसळधार। भाभी-देवरियै रो प्यार। हरयै-लाल-गुलाबी रंग री बिरखा हुवै। देवरियां री कड़्यां में बाजै कोरड़ा। उछळै खोपरां री चिटकी। खेलै देवर फाग-पिचकारी, भाभिया सागै। करद्यै रंग-रंगीली। छैल-छबीली। आखै दिन बाजै बिड़दंग। बरसै रंग। उडै गुलाल। आगै मैहरी गांवता-नाचता चालै। लारै टाबरां रो टोळ। गळी-गळी गैर खेलता। सगळां सूं मिलता। धमाळ गांवता। रंग बरसांवता। पूगै उगाड़। दिखावै घूम-घूमाळो नाच। सुणावै मीठोड़ी लवा- 'सुख-बसियो रे गांव, नगर-खे़डो सुख-बसियो।'

आज रो औखांणो

मौका री राग अर बेमौका री रागळी।
अवसर की उपयोगिता ही वास्तविक कसौटी है, कि कौन-सी बात सही है और कौनसी गलत। अवसर के अनुरूप ही गाई जाने वाली राग ही श्रेष्ठ है, बाकी सब चिल्लपों।

प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504
कानांबाती-9602412124, 9829176391

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सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
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Thursday, February 19, 2009

२० मायड़भासा मीठी खासा

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २०//२००९


मायड़भासा मीठी खासा

सगळां रै मन भावै रे

21 फरवरी आखी दुनिया में 'विश्व मातृभाषा दिवस' रै रूप में मनाइजै। जिकी भासा आपां आपणी मां सूं सीखां, बा आपणी मातृभाषा। मतलब मायड़भासा। जिकी भासा मां आपरै लाडलै नै गोदी खिलांवती, पालणै झुलांवती, लाड लडांवती, दूध चूंघांवती सिखावै। जिकी भासा आपां खेत-खळै-आंगण-उगाड़ में बोलां। जिकी भासा में आपणा सगळा संस्कार हुवै। अर जिकी भासा रा लोकगीत, लोककथावां, कहावतां, अर प्यारी-प्यारी बातां आपां नै संस्कारित करै। बा है आपणी मायड़भासा। मायड़भासा रो मान बधावणो आपणो सै सूं मोटो फरज। क्यूंकै मां, मायड़भासा अर मायड़भोम रो दरजो सुरग सूं ऊंचो। मायड़भासा दिवस नै आपां आपरी मायड़भासा रो मान बधावण सारू सभावां, गोष्ठियां करां। मायड़भासा अर संस्कृति रो मान बधावण वाळा कार्यक्रम आयोजित करां। जठै इण भांत रा आयोजन राखीज्यै, बठै अवस पूगां। ल्यो, आज बांचो, कवि रामदास बरवाळी रा दूहा अर आ धमाळ। होळी री धमाळां साथै आजकाल मायड़भासा रो मान बधावण वाळी धमाळां भी खूब चलण में है।

धरती राजस्थान री, रणवीरां री खैंण।
भासा री बिन मानता, आंसू टळकै नैण।।

चूंघ्या जिणरै हांचळां, करां मोकळो हेत।
मान बिना म्हे दूबळा, ज्यूं कालर रो खेत।।

मान बिना मायड़ दुखी, दुखिया मायड़ बैण।
हिवड़ै चिमकै बीजळी, झरै चौमासो नैण।।

धमाळ

भासा म्हारी रे बोलण में डाडी लागै प्यारी रे
भासा म्हारी रे।
मायड़भासा मीठी खासा सगळां रै मन भावै रे।
सुणबा लागै बैण, भूलज्या तोल, बोपारी रे।
भासा म्हारी रे।
डेडर मोर पपईया गावै, कोयल राग सुणावै रे।
सुणबा लागै राग, भूलज्या गाम, सवारी रे।
भासा म्हारी रे।
पणिहारी बतळावै पणघट, भूली बाट घरां री रे।
गोदी टाबर, सिर पर घड़ो, घड़ै पर झारी रे।
भासा म्हारी रे।
भांत-भांत रा सबद मोकळा, मिसरी सी घोळै रे।
सबदां रो नीं पार, साळ ज्यूं, भरी बखारी रे।
भासा म्हारी रे।


आज रो औखांणो

मां, दो कवा है, एक थूं खायलै अर एक म्हैं खायलूं। कै नीं बेटा, दोनूं ईं थूं खायलै।

माँ, दो कौर हैं, एक तू खा ले और एक मैं। कि नहीं बेटे, दोनों ही तू खा ले।

बेटे की दृष्टि में और माँ की ममता में बहुत फर्क है। बेटे की दृष्टि में तो हिसाब रहता है, पर माँ की ममता रंचमात्र भी हिसाब नहीं जानती। उसकी आँखें तो ममता के पानी से हरदम आप्लावित रहती हैं। बेटा हिसाब में प्रवीण है तो माँ त्याग में पारंगत है।


प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504
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Wednesday, February 18, 2009

१९ मस्त महीनो फागण रो

आपणी भाषा-आपणी बात तारीख- १९//२००९

रामदास बरवाळी राजस्थानी रा चावा गीतकार अर लोकगायक। आपरो जलम हनुमानगढ़ जिलै रै बरवाळी गांव में सन १९७८ ने होयो। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपै। आकाशवाणी सूं प्रसारित हुवै। आपरी लिख्योड़ी सैकड़ूं धमाळां जन-जन रै कंठां पूगी। लोकगीतां रा कई लबम बाजार में आया अर चावा हुया। आज बांचो आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

मस्त महीनो फागण रो

-रामदास बरवाळी

स्त महीनो फागण रो। घणो सुहावणो। मन-मोवणो। आखी जीयाजूण करै किलोळ। टाबर-टीकर। बूढा-ठेरा। लुगायां-पतायां। पसु-पंखेरू। जीव-जिंदावर। मुळक-मुळक मारै दूहा-

हरी-भरी बणराय में, फागण रा रमझोळ।
किरसा मुळकै खेत में, पाळी चढर्या छोळ।।

सरस्यूं ओढ्यो पीळियो, माखी करै मजाक।
चूसै फूलां गालड़ी, भूंड बजावै काख।।

चिड़ी-कमेड़ी-कागला, उडै अधर बण झ्याज।
चूसा नाचै धोरियै, ऊपर नाचै बाज।।

कोयल नाचै बाग में, पाळां नाचै मोर।
मारू नाचै पीसती, चाकी तळै रतोर।।

नाचै सांप-सळीटिया, फिरै कूदती गोह।
सगळां रै मन-भावणो, फागणियै रो मोह।।

मो'वै जीयाजूण नै, फागण रो सिणगार।
बतळावै घण हेत सूं, पणघट में पणिहार।।

रांग-रंगीली मोवणी, आई, फूल्लर दूज।
ब्याव मंडै घण गामड़ां, पतड़ै बिना, अबूझ।।

फुलरिया दूज रो दिन। घणो मोवणो। सावां रो भंडार। गांव री गळी में होवै रंग-चाव। बाखळ, आंगणै, चूंतरी, उगाड़। उमड़ै मस्ती रा टोळ। कठैई भात गाईजै- 'म्हैं तो बगड़ भुवार आई ए.... कै भाती आवैगा। मेरो चूंडो फरकै ए... कै चूंदड़ ल्यावैगा।' कठैई डीजे, ढोल, डंफ बाजै। बराती नाचै। कठैई ढुकाव। कठैई फेरा हुवै। गावै- 'होळै-होळै चाल लाडो म्हारी, तनै हाँसैली सहेलड़ी ए.... कड़बी-सी मत काट लाडो म्हारी, तनै हाँसैली सहेलड़ी ए...।' कठैई चूंतरियां पर छोरियां गावै- 'होळी खेलो रे कन्हैया, रुत फागण री।' नाचै-गावै। ताळी-पटका करै। उगाड़ मांय घलै धींगड़। जमै फागण रो रंग।

आज रो औखांणो
होळी पछै धाबळो, मार खसम रै सिर में।
हर वस्तु की उपयोगिता समय सापेक्ष होती है। समय बीतने पर उसकी उपयोगिता नहीं रहती।
धाबळो- एक प्रकार का मोटा ऊनी वस्त्र जो स्त्रियां कटि के नीचे पहनती हैं। बड़ा घेरदार व सुंदर होता है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504

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व्हाइट हाउस ने तो मान
बढ़ा दिया मायड़ भाषा
का

-कीर्ति राणा

मायड़ भाषा को व्हाइट हाउस में तो सम्मान मिल गया। बराक ओबामा की इस पहल से निश्चय ही सारा राजस्थान और मायड़ भाषा के मान-सम्मान की वर्षों से लड़ाई लड़ रहे रणबांकुरे खुश होंगे। ऐसा सम्मान हमारी संसद से कब मिलेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति ने यह काम जितनी आसानी से किया है काश उतनी ही सरलता से भारतीय संसद भी यह कर दिखाए तो मायड़ भाषा को मान्यता दिलाने के लिए संघर्षरत लक्ष्मणदान कविया, राजेन्द्र बारहठ, विनोद स्वामी, सत्यनारायण सोनी, हरिमोहन सारस्वत, रामस्वरूप किसान सहित इस भाषा के साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी आत्मग्लानि के बोझ से मुक्त हो जाएं।
मुझे लगता है भाषा को मान्यता के आंदोलन की सफलता के मार्ग में हमारी सोच ही सबसे बड़ी परेशानी भी बनी हुई है। चार कोस पर पानी और आठ कोस पर वाणी बदल जाने के बाद भी लोग दबी-जुबान से इस भाषा को संवैधानिक दर्जा देने की बात तो करते हैं लेकिन अपने जिले, समाज, संगठन की सीमा में प्रवेश करते ही उन सभी के स्वर बदल भी जाते हैं। मेवाड़, मारवाड़, शेखावाटी आदि क्षेत्रों में जिस दिन मायड़ भाषा के लिए 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' गीत वाला भाव नजर आने लगेगा उस दिन मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक के आगे गिड़गिड़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
(भास्कर संपादक श्री कीर्ति राणा के 'पचमेल' से) www.pachmel.blogspot.com

Tuesday, February 17, 2009

१८ आपणा इलाका : आपणा नांव

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १८//२००९


आपणा इलाका : आपणा नांव

-ओम पुरोहित 'कागद'

राजस्थान जूनो प्रदेश। जूनी मानतावां। जूनो इतिहास। जूनी भाषा। जूनी परापर। परापर एड़ी कै आज तक इकलग चालै। खावणै-पीवणै, उठणै-बैठणै अनै बोवार री आपरी रीत। रीत में ठरको। ठरकै में इतिहास री ओळ। ग्यान-विग्यान अर भूगोल री ओळ। बात-बोवार अर नांव में राजस्थानी री सौरम। इण सौरम रो जग हिमायती। आजादी सूं पैली राजस्थान में घणा ठिकाणा। घणा ई राज। राजपूतां रा राज। इणी पाण राजपूताना। राजा राज करता पण धरती प्रजा री। प्रजा राखती नांव धरती रा। नांवकरण में ध्यान धरती रै गुण रो। राजवंश, फसल, माटी, पाणी, फळ, पसु-पखेरू धरती रा धणी। आं री ओळ में थरपीजता इलाकै रा नांव।
बीकानेर रा संस्थापक राव बीकाजी रै नांव माथै बीकाणो। बीकाणै में बीकानेर, गंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, भटिंडा, अबोहर, सिरसा अर हिसार। राव शेखाजी रै नांव माथै शेखावाटी। शेखावाटी में चूरू, सीकर अर झुंझुणू। मारवाड़ में जोधपुर, पाली जैसलमेर, बीकानेर, बाड़मेर। मेवाड़ में उदयपुर, चितोड़ , भीलवाड़ा अर अजमेर। बागड़ में बांसवाड़ा अर डूंगरपुर। ढूंढाड़ में जयपुर, दौसा, टोंक, कीं सवाईमाधोपुर। हाड़ौती में कोटा, बूंदी, बांरा, झालावाड़, कीं सवाईमाधोपुर। मेवात में अलवर, भरतपुर। जैसलमेर में माड़धरा, हनुमानगढ़ नै भटनेर, करोली-धोलपुर नै डांग, अलवर नै मतस्य, जयपुर नै आमेर, अजमेर नै अजयमेरू, उदयपुर नै झीलां री नगरी, जैसलमेर नै स्वर्णनगर, जोधपुर नै जोधाणो अर सूर्यनगरी, भीलवाड़ा नै भीलनगरी, बीकानेर नै जांगळ अर बागड़ भी कैईजै। राजस्थान रै हर खेतर रा न्यारा-निरवाळा नांव। कीं नांव बिणज-बोपार माथै। कीं नांव जमीन री खासियतां रै पाण। बीकाणै में भंडाण, थळी, मगरो अर नाळी जे़डा नांव सुणीजै। ऐ हाल तो बूढै-बडेरां री जुबान माथै है। बतळ में उथळीजै। पण धीरै-धीरै बिसरीज रैया है। आओ आपां जाणां आं नांवां री मैमा।

भंडाण

भंडाण बीकानेर जिलै री लूणकरणसर, बीकानेर अर कीं कोलायत तहसील रै उण गांवां नै कैवै जकां रै छेकड़ में 'ऐरा' लागै। जियां- हंसेरा, धीरेरा, दुलमेरा, खींयेरा, वाडेरा।
भंडाण रा मतीरा नांमी होवै। मीठा। अठै री आल जबर मीठी होवै। आल लाम्बै मतीरै नै कैवै। भंडाण री गायां-भैंस्यां, भेड-बकरयां अर ऊंट नांमी। भंडाण रो घी, मावो अर मोठ नांमी। मतीरो भंडाण रो सै सूं सिरै। अठै रै मतीरै सारू कैबा है-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा।
बीकाणा थारै देस में, बड़ी चीज मतीरा।।

थळी

थळी चूरू जिलै रै रतनगढ़ अर सुजानगढ़ रै खेतर नै थळी कैवै। इण खेतर रा लोग थळिया। थळी री बाजरी, मोठ, काकड़िया, मतीरा नांमी हुवै। थळी री बाजरी न्हानी अर मीठी होवै। थळी रा वासी मोटो अनाज खावै। काम में चीढा अनै जुझारू अर तगड़ा जिमारा होवै। थळी सारू कैबा है-
खाणै में दळिया, मिनखां में थळिया।

मगरो

बीकानेर जिलै री कोलायत तहसील अर इणरै लागता जैसलमेर रा कीं गांवां नै मगरो कैवै। अठै री जमीन कांकरा रळी। मगर दाईं समतळ। पधर। इण कारण नांव धरीज्यो मगरो। मगरै रा ऊंट, गा-भेड अर बकरी नांमी। कोलायत धाम भी मगरै में पड़ै।

नाळी

हनुमानगढ़, सूरतगढ़, पीळीबंगा, अनूपगढ़, विजयनगर अर हरियाणा रै सिरसै जिलै रै गांवां नै नाळी कैवै। अठै बगण आळी वैदिक नदी सुरसती जकी नै अजकाळै घग्घर भी कैवै। इण नदी खेतर नै नाळी कैईजै। इण इलाकै रो नांव नाळी क्यूं थरपीज्यो। इण सूं जुड़ियोड़ी एक रोचक बात है। आओ बांचां-
जद घग्घर में पाणी आंवतो। बीकानेर रा राजा नदी पूजण हनुमानगढ़ आंवता। एकर राजाजी हनुमानगढ़ आयोड़ा हा। लारै सूं एक जणो अरदास लेय'र महलां पूग्यो। राजाजी नीं मिल्या। पूछ्यो तो लोगां बतायो, नदी पूजण गया है। बण पूछ्यो, नदी के होवै? एक कारिंदै जमीन माथै माटी में घोचै सूं लीकटी बणाई। लोटै सूं उण में पाणी घाल्यो। बतायो, नदी इयां होवै। बण कैयो, डोफा! आ क्यांरी नदी ? आ तो नाळी है, नाळी। बस उण दिन रै बाद इण इलाकै रो नांव नाळी पड़ग्यो। नाळी रा चावळ, कणक अर चीणा जग में नांमी। नाळी री जमीन घणी उपजाऊ होवै।

आज रो औखांणो

बूढळी रै कह्यां खीर कुण रांधै?
बुढ़िया के कहने से खीर कौन पकाए?
साधारण या आम आदमी की बजाय श्रीमंतों के आदेश की ही सर्वत्र अनुपालना होती है।

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Monday, February 16, 2009

१७ मान बध्यो मायड़ रो

आपणी भाषा-आपणी बात तारीख- १७//२००९

ओबामा सरकार नै घणा-घणा रंग

मान बध्यो मायड़ रो

-हरिमोहन सारस्वत

हरिमोहन सारस्वत रो जलम 14 सितम्बर, 1971 नै हनुमानगढ़ मांय हुयो। राजस्थानी रा समरथ लिखारा। 'गमियोड़ा सबद' कविता संग्रै माथै मारवाड़ी सम्मेलन, मुम्बई रो घनश्यामदास सराफ सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान। राजस्थानी आंदोलन रा आगीवांण। श्रीगंगानगर सूं आखै राजस्थान घूमता थकां नई दिल्ली तक री मायड़भासा-सनमान जातरा रा संयोजक रैया। अबार अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश पाटवी। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

राजस्थानियां वास्तै आज हरख-उमाव रो दिन है। खुशियां मनावण रो दिन है। नाचण-गावण रो दिन है। मौज मनावण रो दिन है। दुनिया रै सब सूं तागतवर मानीजण वाळै देस अमरीका राजस्थान री भासा नै सरकारी स्तर पर मान्यता देय'र राजस्थान अर राजस्थानी रो मान बधायो है। अमरीका सरकार रै राजनीतिक पदां सारू जका आवेदन करीजैला, वां में दुनिया री 101 भासावां में सूं किणी भासा रा जाणकार आवेदन कर सकैला। वां में सूं 20 भासावां भारत री है। जिणां मांय सूं मारवाड़ी, हरियाणवी, छतीसगढ़ी, भोजपुरी, अवधी अर मगधी ऐड़ी भासावां हैं जिकी अजे तांईं भारतीय संविधान री आठवीं अनुसूची में आपरी जिग्यां नीं थरप सकी।
राजस्थान रा जका लोग बारै बसै, वां नै मारवाड़ी अर वां री भासा पण मारवाड़ी नांव सूं जाणीजै। अमरीका में 'राजस्थान एशोसिएशन ऑफ नॉर्थ अमरीका' (राना) नांव सूं एक जबरो संगठन है। राना रा प्रतिनिधि डॉ. शशि शाह बतावै कै अमरीका में राजस्थानी रै पर्याय रूप में मारवाड़ी सबद घणो चलन में है। मारवाड़ी राजस्थानी रो ई दूजो नांव है।
अमरीका सरकार हरियाणवी नै भी मान्यता दीनी है। हरियाणवी भी राजस्थानी भासा रो एक रूप है। भासा वैग्यानिकां घणकरै हरियाणा प्रांत नै राजस्थानी भासी क्षेत्र रै रूप में गिण्यो है। हरियाणवी अर राजस्थानी संस्कृति एकमेक है, तो भासा री समरूपता रै ई कारण।
अमरीका री शिकागो यूनिवर्सिटी मांय भी राजस्थानी बरसां सूं पढ़ाई जावै। इण यूनिवर्सिटी मांय राजस्थानी रो न्यारो-निरवाळो विभाग भी थरपीजियोड़ो है। अमरीका री एक संस्था 'लायब्रेरी ऑफ कांग्रेस' बरसां पैली विश्व भासा सर्वेक्षण करवायो तो दुनिया री तेरह समृद्धतम भासावां में राजस्थानी आपरी ठावी ठोड़ थरपी।
जिकी भासा रो दुनिया में इत्तो मान-सम्मान। वा आपरै घर राजस्थान में ई दुत्कारीजै तो काळजो घणो ई बळै। आपरी मायड़ रो ओ अपमान सहन नीं हुवै। कित्ती अजोगती बात है कै राजस्थान रो एक विधायक, जको राजस्थान रो जायो-जलम्यो, राजस्थानी माटी में पळ्यो-बध्यो, राजस्थानी भासा रा संस्कार लेय'र विधानसभा पूग्यो। राजस्थान री विधानसभा में बो दूजी २२ भासावां में भासण देय सकै, पण आपरी मायड़भासा में शपथ भी नीं लेय सकै! राजस्थान रै स्कूलां में पैली भासा रै रूप मांय हिन्दी पढ़ाई जावै। राजस्थानी लोग उणरो स्वागत करै। पण दूसरी भासा रै रूप में राजस्थानी री मांग करै। पण राजस्थानी तो तीजी भासा रै रूप में भी नीं सिकारीजै। तीजी भासा रै रूप में दूजै प्रांतां री दर्जनभर भासावां पढ़ाई जावै, तो राजस्थान री राजस्थानी क्यूं नीं? सेठियाजी कैयो-
आठ करोड़ मिनखां री मायड़
भासा समरथ लूंठी।
नहीं मानता द्यो तो टांगो
लोकराज नै खूंटी।।
अमरीका में बसण वाळा राजस्थानियां नै घणा-घणा रंग! ओबामा सरकार नै घणा-घणा रंग! वां राजस्थान अर राजस्थानी रो मान बधायो है। 21 फरवरी दुनियाभर में 'विश्व मातृभाषा दिवस' रै रूप में मनाइजै। अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिति राजस्थानी नै संवैधानिक मानता री मांग नै लेय'र प्रदेश रा सगळा संभाग मुख्यालयां पर धरना-प्रदर्शन अर मुखपत्ती सत्याग्रह करैला। आपां नै भी आपणी भासा रै मान-सनमान वास्तै लारै नीं रैवणो है।

आज रो औखांणो
मां कैवतां मूंडो भरीजै।
माँ शब्द का उच्चारण ही ऐसा सार्थक है कि मुँह भरा-भरा लगता है। माँ का रिश्ता सब रिश्तों से बड़ा है। क्योंकि उसकी कोख से ही सारी दुनिया जन्म लेती है।

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Sunday, February 15, 2009

१६ रंगीलो राजस्थान

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १६/२/२००९


रंगीलो रास्था

राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रंग।
बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। २ अक्टूबर, १९५९ रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधारिया तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफा रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गद्-गद् वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम करियो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठोड़-ठोड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगा परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कु़डती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठोड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।

कंवल उणियार रो लिखियोड़ो दूहो बांचो सा!

चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज।।


आज रो औखांणो

फूहड़ रो मैल फागण में उतरै।
फूहड़ का मैल फागुन में उतरता है।
जो व्यक्ति अपने शरीर की साफ-सफाई पर ध्यान नहीं देता उस पर कटाक्ष स्वरूप यह कहावत कही जाती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़-335504
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

Saturday, February 14, 2009

१५ हूं रे हूं

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १५//२००९


हूं रे हूं

जाडी गवाड़ी रो धणी चालतो रह्यो तो उणरी घरवाळी कई दिनां तक रोवती नीं ढबी। न्यात अर कड़ूंबा रा जाट भेळा होय उणनै समझावण लागा। तद वा रोवती-रोवती ई कैवण लागी- धणी रै लारै मरणा सूं तो रीवी। आ दाझ तो जीवूंला जित्तै बुझैला नीं। अबै रोवणो तो इण बात रो है कै लारै घर में कोई मोट्यार कोनीं। म्हारी आ छह सौ बीघा जमीं कुण जोतैला, बोवैला?
हाथ में गेडी अर खांधै पटू़डो* लियां एक जाट पाखती ई ऊभो हो। वो जोर सूं बोल्यो- हूं रे हूं।
पछै वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै तीन सौ गायां री छांग अर पांच सौ लरड़ियां रो ऐवड़ है। उणरो धणी-धोरी कुण व्हैला?
वो सागी ई जाट वळै कह्यो- हूं रे हूं।
वा जाटणी वळै रोवती-रोवती बोली- म्हारै च्यार पचावा*, तीन ढूंगरियां* अर पांच बाड़ा है, वां री सार-संभाळ कुण करैला?
वो जाट तो किणी दूजा नै बोलण रो मौको ई नीं दियो। तुरंत बोल्यो- हूं रे हूं।
जाटणी तो रोवती नीं ढबी। डुस्कियां भरती-भरती बोली- म्हारो धणी बीस हजार रो माथै लेहणो छोड़नै गियो, उणनै कुण चुकावैला?
अबकी वो जाट कीं नीं बोल्यो। पण थोड़ी ताळ तांईं किणी दूजा नै इणरो हूंकारो नीं भरतां देख्यो तो जोस खाय कह्यो- भला मिनखां, इत्ती बातां रा म्हैं एकलो हूंकारा भरिया। थैं इत्ता जणा ऊभा हो, इण एक बात रो तो कोई हूंकारो भरो। यूं पाछा-पाछा कांईं सिरको!
(विजयदांन देथा री बातां री फुलवाड़ी सूं साभार।)
पटू़डो- ओढण रो ऊनी गाभो। पचावा-ज्वार-बाजरी रै पूळां रो ढिग। ढूंगरियां-सूकै घास रो ढिग।

हांसणियो

कई देर बोल्यां पछै एक आदमी जद माइक छोड्यो तो कनै बैठ्यो एक अंग्रेज बोल्यो- थारै देस रा नेता इतणी देर भासण दे सकै है?
आदमी बोल्यो- नेताजी तो अब आवण आळा है। ओ तो माइक टेस्टिंग आळो है।

आज रो औखांणो
परायै पगां कितरोक पैंडो!
पराये पांवों से कितना दौरा!
दूसरे के आसरे ज्यादा दिन निर्वाह नहीं हो सकता। आखिर अपनी कमाई ही अपने काम आती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
वाया-गोगामे़डी, जिलो- हनुमानगढ़ -335504.
कोरियर री डाक इण ठिकाणै भेजो सा!
सत्यनारायण सोनी, द्वारा- बरवाळी ज्वेलर्स, जाजू मंदिर, नोहर-335523
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Friday, February 13, 2009

१४ मरूधर रो अगनबोट ऊंट

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १४//२००९

सन १९४१ में जोधपुर में जाया-जलम्या प्रो. जहूरखां मेहर राजस्थानी रा विरला लेखकां में सूं एक। जिणां री भासा में ठेठ राजस्थानी रो ठाठ देखणनै मिलै। राजस्थान रै इतिहास, संस्कृति अर भासा-साहित्य पेटै आपरा निबंध लगोलग छपता रैवै। मोकळा पुरस्कार-सनमान मिल्या है। आज बांचो आं रो ओ खास लेख।


मरूधर रो अगनबोट ऊंट
प्रो. जहूरखां मेहर

रेगिस्तानी बातां सारू राजस्थानी री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो। सबदां सूं लड़ालूंब घणी राती-माती भासा है राजस्थानी। इण लेख में मरुखेतर रै एक जीव ऊंट सूं जुड़ियोड़े रो लेखो करता थकां आ बात जतावण री खप्पत करी है कै थळी रै जीवां अर बातां सारू राजस्थानी भासा री मरोड़ अर ठरको ई न्यारो।
ऊंट मरुखेतर रो अगनबोट कैईजै अर इण सारू राजस्थानी साहित, इतिहास अर बातां में इतरा बखाण लाधै कै इचरज सूं बाको फाड़णो पड़ै। दूजी भासावां में तो 'ऊंट' अर 'कैमल' सूं आगै काळी-पीळी भींत। मादा ऊंट सारू 'ऊंटनी' अर 'सी कैमल' या 'कैमलैस' सूं धाको धिकाणो पड़ै। पण आपणी भासा में इण जीव रा कितरा-कितरा नांव! कीं तो म्हे अंवेरनै लाया हां। बांच्यां ई ठा पड़ै-
जाखोड़ो, जकसेस, रातळो, रवण, जमाद, जमीकरवत, वैत, मईयो, मरुद्विप, बारगीर, मय, बेहटो, मदधर, भूरो, विडंगक, माकड़ाझाड़, भूमिगम, पींडाढाळ, धैंधीगर, अणियाळ, रवणक, फीणनांखतो, करसलो, अलहैरी, डाचाळ, पटाल, मयंद, पाकेट, कंठाळक, ओठारू, पांगळ, कछो, आखरातंबर, टोरड़ो, कंटकअसण, करसो, घघ, संडो, करहो, कुळनारू, सरढो, सरडो, हड़बचियो, हड़बचाळो, सरसैयो, गघराव, करेलड़ो, करह, सरभ, करसलियो, गय, जूंग, नेहटू, समाज, कुळनास, गिडंग, तोड़, दुरंतक, भुणकमलो, वरहास, दरक, वासंत, लंबोस्ट, सिंधु, ओठो, विडंग, कंठाळ, करहलो, टोड, भूणमत्थो, सढ़ढो, दासेरक, सळ, सांढियो, सुतर, लोहतड़ो, फफिंडाळो, हाथीमोलो, सुपंथ, जोडरो, नसलंबड़, मोलघण, भोळि, दुरग, करभ, करवळो, भूतहन, ढागो, गडंक, करहास, दोयककुत, मरुप्रिय, महाअंग, सिसुनामी, क्रमेलक, उस्ट्र, प्रचंड, वक्रग्रीव, महाग्रीव, जंगळतणोजत्ती, पट्टाझर, सींधड़ो, गिड़कंध, गूंघलो, कमाल, भड्डो, महागात, नेसारू, सुतराकस अर हटाळ।
मादा ऊंट रा ई मोकळा नांव। बूढी, ग्याबण, जापायती, बांझड़ी, कागबांझड़ी अर भळै के ठा कित्ती भांत री सांढां सारू न्यारा-न्यारा नांव। मादा ऊंट नै सांढ, टोडड़ी, सांयड, सारहली, टोडकी, सांड, सांईड, क्रमाळी, सरढी, ऊंटड़ी, रातळ, करसोड़ी, रातल, करहेलड़ी, कछी अर जैसलमेर में डाची कैवै। सांढ जे ढळती उमर री व्है तो डाग, रोर, डागी, रोड़ो, खोर, डागड़ जै़डै नांवां सूं ओळखीजै। सांढ जे बांझ व्है तो ठांठी, फिरड़ी, फांडर अर ठांठर कहीजै। लुगायां ज्यूं कागबांझड़ी व्है अर एकर जणियां पछै पाछी कदैई आंख पड़ै इज कोयनी। ज्यूं सांढ ई एकर ब्यायां पछै दोजीवायती नीं व्है तो बांवड़ कहीजै। बांवड़ नै कठैई-कठैई खांखर अर खांखी ई कैवै। पेट में बचियो व्है जकी सांढ सुबर कहीजै। जिण सांढ रै साथै साव चिन्योक कुरियो व्है वा सलवार रै नांव सूं ओळखीजै। कदैई जे कुरियो हूवतां ई मर जावै तो बिना कुरियै री आ सांढ हतवार कुहावै।
ऊंट रो साव नान्हो बचियो कुरियो कुहावै। कुरियो तर-तर मोटो व्है ज्यूं उणरा नांव ई बदळता जावै। पूरो ऊंट बणण सूं पैलां कुरियो, भरियो, भरगत, करह, कलभ, करियो अर टोडियो या टोरड़ो अर तोरड़ो कहीजै।
राजस्थानी संस्कृति में ऊंट सागे़डो रळियोड़ो, एकमेक हुयोड़ो। लोक-साहित इणरी साख भरै। ऊंट सूं जुड़ियोडा अलेखूं ओखाणा अर आडियां मिनखां मूंडै याद। लोकगीतां रो लेखो ई कमती नीं।
जगत री बीजी कोई जोरावर सूं जोरावर भासा में ई एक चीज रा इत्ता नांव नीं लाधै। कोई तूमार लै तो ठा पड़ै कै कठै तो राजस्थानी रै सबदां रो हिमाळै अर कठै बीजी फदाक में डाकीजण जोग टेकरियां। कठै भोज रो पोथीखानो, कठै गंगू री घाणी!

आज रो औखांणो

जांन में कुण-कुण आया? कै बीन अर बीन रो भाई, खोड़ियो ऊंट अर कांणियो नाई।
बारात में कौन-कौन आए? कि दूल्हा और दूल्हे का भाई, लंगड़ा ऊंट और काना नाई।
किसी प्रतिष्ठित आयोजन के उपयुक्त प्रतिनिधियों का जु़डाव न हो, तब परिहास में यह कहावत कही जाती है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका,
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