Friday, January 23, 2009

२४ फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २४/१/२००९

प्रहलादराय पारीक रो जलम १ मार्च, १९६४ नै बडोपळ गांव में हुयो। राजस्थानी रा चावा लिखारा अर शिक्षक। पीळीबंगा तहसील रा गांव १८ एसपीडी रा वासी। आपरी रचनावां पत्र-पत्रिकावां में छपती रैवै। आज बांचो आं कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई
भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई

-प्रहलादराय पारीक
रूंख मुरधर रा देवता। तुळछी-पींपळ-बड़ री पूजा अठै रो धरम। खेजड़ी अर बोरटी देवतावां रो ठावो ठिकाणो। पितरां-भैरूंआं, भोमियां-खेतरपाळां अर मावड़्यां जी रा थान रूंखां तळै। गोगैजी, हरीरामजी, बिग्गाजी, हड़बूजी, पाबूजी अर हड़मानजी रा थान तळै तो धजा रूंखां माथै। रूंख काटणो अठै पाप। 'सिर साटै रूंख रवै तो भी सस्तो जांण' री रीत पाळै राजस्थान। इण बात री साख भरै खेजड़ली गांव। खेजड़ली में ३६५ बिसनोई कट मर्या पण रूंख नीं कटण दिया।
रूंख हिमायती राजस्थान माथै प्रकृति री अणखूट किरपा। अठै नीम, कैर, बड़, फरांस, जाळ, रोहिड़ो, बांवळी, गूंदियो, कूमटो, हींगवांण, कीकर, बोरटी, कंके़डो अर फोग जे़डा नांमी रूंख। बांठ-झाड़ यां-घासां में अळाई, सीवण, धामण, बूर, सरकणो, प्याजी, बूई, कागारोटी, मामालूणी, दूधी, भूं-कटेरी, द्रोणियो, बेकरियो, गंठील, भुरट, गिरम, आसकंद, धतूरो, मोथियो, मुरायली, आकड़ो, डचाभ, खींप, रींगणी, सिणियो, अपूठ-कांटो अर सित्यानासी जग में सिरै। धरती रा मोभी। कम पाणी में पळै। काळ-दुकाळ-तिरकाळ अर सतकाळ पड़ै। पण अै नीं मरै। सूकै। पण मेह री छांट देखतां ई हर्या हुवै।
फोग पण धरती रो सैं सूं मोभी बांठ। बांठ कैवै झाड़की नै। इण बांठ रो अठै रैवणियां सूं जीव-जड़ी रो नातो। मरुधरा में रूंखां नै हर्या रैवण में अबखो। पण ऊंडी आस्था अर ऊंडी जड़-जूण रा जतन। मरुधर रा रूंख ऊंडी राखै जड़। फोग री जड़ भी ऊंडी। बंतळ करता लोग कैवै कै फोग-खेजड़ा पताळ रो पाणी पीवै। खोदता जावो, पण आं री जड़ नीं खूटै। फोग रो बोटेनिकल नांव 'केलिगोनम पोलिगोनियोलस'।
फोग बिरखा रै पाणी सूं ई जीवतो रैय सकै। गरमियां में हर्यो रैवै। इं रा जड़-बांठ सांगोपांग बळीतो। इणरा पत्तां नै ल्हासू कैवै। गाय, भैंस, बकरी, भेड अर ऊँट ल्हासूं कोड सूं खावै। इण बांठ रा फूलां नै फोगलो कैयीजै। फोगलै रो रायतो बणै लिज्जतदार। इण रायतै री तासीर ठण्डी। सरीर री गरमी रो बैरी। बैदंग में इण बांठ रो खासो नांव। लू रो ताव उतारण सारू रामबांण। डील माथै इणरा हर्या पानका नाखो अर लू रो ताव उतारो। लकवै रै रोग्यां रो इलाज भी फोग सूं हुवै। मरीज नै उघाड़ो कर`र मांचै सुवावै। मांचै नीचै सूं फोग रै पत्तां री भाप दिरीजै। बैद बतावै कै इणसूं लकवो ठीक हुवै। फोग रै फळ नै घिंटाळ कैवै। घिंटाळ डांगरां रो लजीज चारो। घिंटाळ ऊँटां नै भोत भावै। जे खोड़ में तिसाया मरो, फोग रा पानका चाबो। तिरस नै जै माताजी री।
फोग धोर्यां रो चूल्हो दोय तरियां सूं बाळै। एक तो लकड़ी सूं अर दूजो पानकां, घिंटाळ अर बळीतै रै बिणज सूं। इणी कारण मुरधर रै लोकजीवण में फोग री मोकळी महिमा। बैसाख री तपती लूवां में हर्यो कच्च रैवै। खारा खाटा ल्हासू खाय'र छाळ्यांक् मोकळो दूध देवै। बैसाख में गाय-भैंस रो दूध सूक ज्यावै, पण छाळ्यां धीणो बपरावै। इण सारू लोक में कैबा चालै- 'फोगलो फूट्यो, मिणमिणी ब्याई। भैंस री धिरियाणी, छाछ नै आई।' फोगलै रै रायतै सारू भी लोक में कैबा है- 'फोगलै रो रायतो, काचरी रो साग। बाजरी री रोटड़ी, जाग्या म्हारा भाग।'
लोक में रच्यै-बस्यै इण रूंख री इतिहास में भी ठावी थोड़ । एकर री बात, बीकानेर रा राजा रायसिंहजी रा भाई पीथळ नांव सूं ख्यातनांव कवि, दिल्ली पातस्याह अकबर रा भेज्या बुरहानपुर गया। बठै रा सूबेदार थरपीज्या। देस सूं घणा दिन अळगा रैया तो बीकाणै री ओळ्यूं आवण ढूकी। एक दिन बै तफरी करै हा। अचाणचकै बां नै फोग दीख्यो। फोग नै देखतां ई बै हर्या होग्या। फोग सारै जाय बैठ्या। बतळावण ढूक्या-
तूं सैंदेसी रूंखड़ो, म्हे परदेसी लोग।
म्हानै अकबर तेड़िया, तूं यूं आयो फोग।।
आज रो औखांणो
फोग आलो ई बळै, सासू सूदी ई लड़ै।
कहावत में कहा गया है कि जिस प्रकार फोग की लकड़ी गीली होने पर भी आग पकड़ लेती है, उसी प्रकार सास सीधी हो तब भी अधिकार पूर्वक बहू को फटकार लगा ही देती है। मौका मिलने पर असली स्वभाव उजागर हो ही जाता है।
छाळी अर मिणमिणी बकरी रा पर्याय है।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

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