Sunday, February 28, 2010

रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी

रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी

राजस्थान रंगीलो प्रदेस। राजस्थान नै परम्परागत रूप सूं रंगां रै प्रति अणूंतो लगाव। सगळी दुनिया रो मन मोवै राजस्थान रा ऐ रंग।
बरसां पैली नेहरूजी रै बगत नागौर में पंचायत राज रो पैलड़ो टणको मेळो लाग्यो। 2 अक्टूबर, 1959 रो दिन हो। राजस्थान रा सगळा सिरैपंच भेळा हुया। नेहरूजी मंच माथै पधार्या तो निजरां साम्हीं रंग-बिरंगा साफां रो समंदर लहरावतो देख'र मगन हुयग्या। रंगां री आ छटा देख वां री आंख्यां तिरपत हुयगी। मन सतरंगी छटा में डूबग्यो। रंगां रै इण समंदर में डूबता-उतरता गदगद वाणी में बोल्या- ''राजस्थान वासियां! थै म्हारी एक बात मानज्यो, आ म्हारै अंतस री अरदास है। वगत रा बहाव में आय'र रंगां री इण अनूठी छटा नै मत छोड़ज्यो। राजस्थानी जनजीवण री आ एक अमर औळखांण है। इण धरती री आ आपरी न्यारी पिछाण है। इण वास्तै राजस्थान रो ओ रंगीलो स्वरूप कायम रैवणो चाइजै।''
राजस्थानी जनजीवण रा सांस्कृतिक पख नै उजागर करता पंडतजी रा ऐ बोल घणा महताऊ है। 'रंग' राजस्थानी लोक-संस्कृति री एक खासियत है। अठै कोई बिड़दावै, स्याबासी दिरीजै तो उणनै 'रंग देवणो' कहीजै- 'घणा रंग है थनै अर थारा माईतां नै कै थे इस्यो सुगणो काम कर्यो।' अमल लेवती-देवती वगत ई जिको 'रंग' दिरीजै उणमें सगळा सतपुरुषां नै बिड़दाइजै।
राजस्थान री धरती माथै ठौड़-ठौड़ मेळा भरीजै। आप कोई मेळै में पधार जावो- आपनै रंगां रो समंदर लहरावतो निगै आसी। लुगायां रो रंग-बिरंगो परिधान आपरो मन मोह लेसी। खासकर विदेसी सैलाणियां नै ओ दरसाव घणो ई चोखो लागै। इण रंगां री छटा नै वै आपरै कैमरां में कैद करनै जीवण लग अंवेर नै राखै।
राजस्थानी पैरवास कुड़ती-कांचळी अर लहंगो-ओढणी संसार में आपरी न्यारी मठोठ राखै। लैरियो, चूंनड़ी, धनक अर पोमचो आपरी सतरंगी छटा बिखेरै। ओ सगळो रंगां रो प्रताप।
इणीज भांत राजस्थानी होळी एक रंगीलो महोच्छब। इण मौकै मानखै रो तन अर मन दोन्यूं रंगीज जावै। उड़तोड़ी गुलाल अर छितरता रंग एक मनमोवणो वातावरण पैदा करै। रंगां रो जिको मेळ होळी रै दिनां राजस्थान में देखण नै मिलै, संसार में दूजी ठौड़ स्यात ई निजरां आवै।
मानवीय दुरबळतावां रै कारण साल भर में पैदा हुयोड़ा टंटा-झगड़ा, मन-मुटाव अर ईर्ष्या-द्वेष सगळा इण रंगीलै वातावरण में धुप नै साफ होय जावै, मन रो मैल मिट जावै।
इण रंगीलै प्रदेस री रंगीली होळी रै मंगळ मौकै आपां नै आ बात चेतै राखणी कै वगत रै बहाव में आय'र भलां ई सो कीं छूट जावै पण आपणी रंग-बिरंगी संस्कृति री अनूठी छटा बणायां राखणी।
कंवल उणियार रो लिख्योड़ो ओ दूहो बांचो सा!
चिपग्या कंचन देह रै, कपड़ा रंग में भीज।
सदा सुरंगी कामणी, खिली और, रंगीज॥

Saturday, February 20, 2010

सेठियाजी री पाती

विश्व मातृभाषा दिवस (21 फरवरी) विशेष


राख्यां चावो जड़ां जीवती,

द्यो मायड़ नै मान
भारत नै आजाद हुयां 57 बरस होग्या, पण राजस्थानी भाषा नै, जिकी 15 करोड़ (प्रवासी 7 करोड़) लोगां री भाषा है, भारत रै संविधान में मान्यता नहीं देणो - संविधान री घोर अवमानना है। जनतांत्रिक संविधान में संविधान री जड़ पर कुठाराघात कर्यो गयो है, आ घणी चिन्ता री बात है। राजस्थान विधानसभा में राजस्थानी नै सर्वसम्मत संकल्प सैं पारित कर केन्द्रीय सरकार नै भेज्यो, पण बीं पर तानाशाही राजनेता विचार तक कोनी कर्यो, आ राजस्थानियां सारू अपमानजनक बात है। अब समै आग्यो है कै सब राजस्थानी एकजुट होय जन-जागरण वास्तै अभियान सरू करै। ईं अभियान रो पैलो चरण होसी राजस्थानी रै लियै जन-जागरण - अर ईं काम रै लियै राजस्थान रै हर जिलै में एक समिति गठित करी जावै। इण रा कार्यकर्ता तहसीलां अर पंचायत समितियां ताईं लोगां नै राजस्थानी भाषा री महत्ता री जाणकारी देवै अर उणां नै ईं मुद्दै पर सावचेत करै। जन-जागरण नै प्रभावशाली बणाणै सारू कार्यकर्ता पैदल यात्रा करै अर ढाणी-ढाणी ताईं राजस्थानी रो संदेश पुगावै। ईं जन-जागरण रै बारै में गठित समिति 'राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी' नै सही रपट भेजै। ईं रै बाद में दूसरो चरण जन-आंदोलन होसी। ईं आंदोलन में रेल रोको, स्कूल-कालेजां में हड़ताल, वकीलां री ओर सूं अदालतां रो बहिस्कार अर हरेक कस्बै-शहर में राजस्थानी भाषा नै मान्यता नहीं देणै रै विरोध में काळा झंडां रो जलूस निकळै। ईं सारै कार्यक्रम नै पूरो कर कै कम सैं कम 20 हजार आदमी नई दिल्ली पूंचै। जलूस निकाळ कै महात्मा गांधी री समाधि पर धरणो देवै अर अनशन करै। राजस्थान रा जित्ता भी सांसद है, बांकै घरां पर धरणो देवै अर उण सूं इस्तीफै री मांग करै। सागै-सागै संसद में भी ईं मान्यता सारू राजनैतिक पार्टियां सूं प्रस्ताव रखावै। राजस्थान रा विधायकां नै आप रै क्षेत्र में भाषा री अलख जगाणी चायै।
अमेरिका रा भाषा-विद्वान (अमेरीकन कांग्रेस ऑफ लाईब्रेरीज) दुनियां री 13 समृद्ध भाषावां में राजस्थानी भाषा नै भी एक समर्थ भाषा मानी है। राजस्थानी भाषा री उप-शाखावां में हरियाणवी, मालवी, मेवाती, मारवाड़ी, हाड़ोती, ढूँढाड़ी, बागड़ी अर पश्चिम राजस्थान री गुर्जर भाषा मुख्य है। राजस्थान में करीब 72 बोलियां बोली जावै है। कैबत है 'तीन कोस पर पाणी बदळै, 12 कोस पर बोली।' जकी भाषा री जितणी बोलियां अर उप-शाखावां हुवै, बा उतणी ही समर्थ भाषा मानीजै। नेपाल अलग राष्ट्र होतां हुयां भी बठै री नेपाली भाषा में राजस्थानी रा मोकळा सबद है। कारण साफ है कै बठै रो राजवंश राजस्थान सूं जुड़ेड़ो है।
राजस्थान मरुधर देस है। बीं री परम्परा अर संस्कृति भारत रै अन्य प्रदेशां सूं बिलकुल अलग है। बठै रा लोकदेवता, लोकगीत, लोक-गाथावां, खान-पान-पहराण री आपरी अलग विशेषता है। राजस्थान रा पसु-पाखी, बठै रा रूंख सब अलग हैं। इण री सही अभिव्यक्ति राजस्थानी में ही सम्भव है। बठै री प्रेम-कथावां दूजै साहित्य में कोनी। भारत रै इतिहास में राजस्थान आप री न्यारी पिछाण राखै है। बठै सूं राष्ट्रीय स्वतंत्रता रा सब क्रांतिकारी प्रेरणा ली है।
राजस्थानी भाषा नै मान्यता मिले बिना बठै री महान परम्परावां नै, अनूठी संस्कृति नै टाबर किंया जाणसी?
टाबरियां नै किंया हुवैलो, निज धरती रो ज्ञान।
राख्यां चावो जड़ां जीवती, द्यो मायड़ नै मान॥
-कन्हैया लाल सेठिया
(राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन रा पर्याय-पुरुष श्री सेठिया कोलकाता सूं 21 दिसम्बर 2004 नै अखिल भारतीय राजस्थानी समारोह रासंयोजक श्री रतन शाह रै नांव लिखियोड़ी पाती रो एक अंश।)
-प्रस्तुति- सत्यनारायण सोनी

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