Monday, April 25, 2011
Thursday, April 21, 2011
Tuesday, April 19, 2011
राजस्थानी को मान्यता बहुत जरूरी
जुझारू पत्रकार साथी विकास सचदेवा ने गत दिनों अपनी फेसबुक वाल पर एक चर्चा का सूत्रपात किया...जो काफी सार्थक रही और एक विचार खासतौर से उभर कर आया कि राजस्थानी भाषा को मान्यता की मांग वाजिब है और इसके लिए रणनीति बनाकर आन्दोलन किया जाना चाहिए...विकास जी का बेहद आभार। चर्चा को मूल स्वरुप में ही यहाँ संरक्षित कर रहे हैं....सत्यनारायण
Raj Jain Kuchh parampraayen bilkul galat nahi hoti VIKAS JI...
Ye to bas ek bhasha vishesh ko banaye rakhne ki muhim bhar hai,
Kya hume kisi bhi baat ko khule dil se swikaar nahi karna chahiye???
Raj Jain khair har insaan ko apne-apne vichar rakhne ka haq hai...
Satyanarayan Soni
---राजस्थानी का सर्वमान्य रूप सर्वविदित है... आप आइये राजस्थानी साहित्य तो पढ़िए....लोकग...ीत सुनिए....दुनिया की किसी भाषा में एकरूपता नहीं होती...विविधता जरूरी भी होती है, भाषा विकास के लिए...मगर जहाँ जरूरत हो वहां राजस्थानी में है..
राजस्थानी भाषा गत 30 वर्षों से माध्यमिक शिक्षा बोर्ड तथा राजस्थान स्थित विश्वविद्यालयों के पाठ्क्रम में वैकल्पिक विषय के रूप में शामिल है। विश्वविद्यालयों में दशकों से राजस्थानी विभाग भी स्थापित है। राज्य के बीएड पाठ्यक्रमों में राजस्थानी एक शिक्षण विषय रूप में शामिल है। यूजीसी भी राजस्थानी विषय में वर्ष में दो बार नेट व जेआरएफ की परीक्षाएं करवाती हैं और फैलोशिप प्रदान करती है। इस विषय में राजस्थान तथा राजस्थान से बाहर के कई विश्वविद्यालय पीएच.डी भी करवाते हैं। अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों तथा ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी सहित देश-विदेश के कई विश्वविद्यालयों में यह शोध व शिक्षण विषय के रूप में मान्य है, जिसके अंतर्गत हजारों शोध हुए हैं तथा हो रहे हैं। अमेरिका की लायब्रेरी ऑफ़ कांग्रेस ने राजस्थानी को विशव की तेरह समृद्धत्तम भाषाओँ में शामिल किया है। एनसीईआरटी ने इसे मातृभाषाओं की सूची में शामिल किया है। केन्द्रीय साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली ने भी वर्ष 1974 से इस भाषा को मान्यता प्रदान कर रखी है तथा प्रतिवर्ष राजस्थानी साहित्यकारों व अनुवादकों को पुरस्कृत करती है और इस भाषा और साहित्य से संबंधित सेमिनारों का आयोजन करती है। उस रूप को देखने का प्रयास भी कीजिये.....
ख़बरें छपवाने का मोह नहीं... राजस्थानी हमारी माँ है और हम उसका अपमान सहन नहीं कर सकते....बस इसीलिए मीडिया से सहयोग की अपेक्षा रहती है...हमने तो यही सुण रखा है कि मीडिया सच का पक्षधर होता है...
Satyanarayan Soni यह लेख आपके लिए उपयोगी होगा................
http://aapnibhasha.blogspot.com/2010/04/blog-post_15.html
Satyanarayan Soni
राजस्थान पत्रिका के मुखपृष्ठ पर 'पोलमपोल' शीर्षक से एक राजस्थानी दोहा एक दशक से भी अधिक समय से देख रहा हूं। शायद ही कोई पाठक हो जो सर्वप्रथम इसे न पढ़ता हो। क्या इसे हाड़ौती, वागड़, ढूंढाड़, मेवात, मालवा, मारवाड़, मेवाड़, शेखावाटी आदि अंचलों में समान रूप से नहीं समझा जाता? जब यह दोहा समान रूप से समस्त अंचलों में समझा और सराहा जाता है तो राजस्थानी की एकरूपता का इससे बड़ा क्या प्रमाण चाहिए? यही नहीं राजस्थानी लोकगीतों के ऑडियो-वीडियो सीडी समस्त अंचलों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। ग्यारहवीं से लेकर एम.ए. तक की पढ़ाई की पाठ्यपुस्तकों की भाषा समस्त अंचलों में एक ही जैसी प्रचलित है। बूंदी के सूर्यमल्ल मीसण, डूंगरपुर की गवरीबाई, मेड़ता की मीरांबाई, मारवाड़ के समय सुंदर, मेवाड़ के चतुरसिंह और सीकर के किरपाराम खिडिय़ा, बाड़मेर के ईसरदास, अलवर के रामनाथ कविया का काव्य पूरे राजस्थान में सम्मान्य है.
Anil Jandu विकास मेरा बहुत अच्छा और मेरे जेसे ही क्रांतिकारी विचारों वाला दोस्त है...................इसका हर मुद्दा लिक से हट कर और गरमाईश वाला होता हूँ................... पर आज में ''आहत'' हूँ ...| वेसे आपने अंत में लिखा है.......''यह विचार आपके सामने रखने का उधेश्य महज स्वस्थ परिचर्चा करना है''
Om Purohit Kagad
8.आजादी के तुरन्त बाद से राजस्थानियोँ ने राजस्थानी को आठवीँ अनुसूची मे शामिल करने के लिए आंदोलन शुरु कर दिया था जो लगातार 63 वर्षोँ से आज तक जारी है । शायद इतनी अनदेखी किसी भी आंदोलन की नहीँ हुई ।
9. राजस्थानी बोलने वाले 13 हैँ जो आज हिन्दीभाषी माने जाते हैँ। हिन्दी वालोँ को डर है कि यदि राजस्थानी को मान्यता मिल गई तो हिन्दी खत्म हो जाएगी । इसी लिए हिन्दी वाले /नेता राजस्थानी की मान्यता मेँ अडंगा लगा रहे हैँ । राजस्थान को त्याग का पाठ पढ़ाया जा रहा है क्योँ कि राष्ट्रपिता गांधी जी के गृहराज्य गुजरात सहित पुर्व,पश्चिम व दक्षिण का एक भी राज्य हिन्दी की स्थापना हेतु न कभी पहले आगे आए और न आज आगे आ रहे हैँ । बस राजस्थान के करोड़ोँ बच्चोँ को मातृभाषा मेँ शिक्षा से वँचित कर बलि का बकरा बनाया जा रहा है । यह राजस्थानियोँ के साथ खिलवाढ व षड़यंत्र नहीँ तो और क्या है ?
10.दुनियां भर के इतिहासकार, आलोचक,भाषा शास्त्री,भाषा विज्ञानी,शोधार्थी, विश्वविद्यालय राजस्थानी को हिन्दी से प्राचीन,संपूर्ण, अद्वितीय मानते हैँ ।अध्ययन करेँ, यह हमने नहीँ विद्वजन ने कहा है ।
आप से पुनः निवेदन है कि अन्यथा न लेँ । बहस से पीड़ा नहीँ है , अपमान, अवहेलना,प्रायोजन व आरोप से पीड़ा है । आप के विश्लेषण के सकारात्मक चर्चे सुने थे । मुझे आप अध्ययन कर इस बहस को सकारात्मक मौड़ देँगे । आप जानकारी हेतु मोहन आलोक जी से भी सम्पर्क कर लेँ तो समीचीन रहेगा ।
Vinod Saraswat
Satyanarayan Soni 13 करोड़ हैं कागद जी....मैं सूधार करद्यूं।
Vinod Saraswat
कुछ इधर जायेंगे तो कुछ उधर जायेंगे
बाग़ से द्रोह करके मिलेगा क्या क्यारियों
जल-पवन-मेह को तरस जाओगे
रूप लूट जायेगा और मेढ़ ढह जाएगी
और वन -संपदा सारी पशु चर जायेंगे
माला टूटी तो मनके बिखर जायेंगे ......
******
आप अभी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे होंगे, अगर नहीं तो जब करेंगे तो आप को मालूम पड़ेगा कि देश की प्रतिष्ठित परीक्षा आई.ए.एस. में भी राजस्थानी की मान्यता ना होने का नुकसान उठाना पड़ता है .......थोडा स्पष्ट करना बेहतर होगा। हजारों प्रतियोगी अपनी राज्य / मायड़भाषा के साहित्य को मुख्य परीक्षा में एक विषय के रूप में चुनते हैं, जैसे किसी ने संथाली चुन लिया, किसी ने मराठी या किसी और ने कन्नड़ या तमिल..........इस तरह अपनी मायड़भाषा का साहित्य चुनने से दो बड़े फायदे होते हैं --- पहला तो ये कि जिस जुबान में आप सोचते, समझते, खाते-पीते और बोलते हैं और जिसे अपने परिवेश से इस तरीके से आत्मसात कर चुके होते हैं कि आपको उसके लिए कोई अतिरिक्त प्रयास नहीं लगाना पड़ता, और आप कम समय में ज्यादा अंक प्राप्त करके चयनित हो जाते हैं और उच्चतर रैंक प्राप्त करते हैं..दूसरा फायदा यह है कि जब आप अपनी मायड़भाषा में लिखेंगे तो आपके उस भाषाई साहित्य की जांच निश्चित ही आपके राज्य का ही भाषाई विद्वान मूल्याङ्कनकर्त्ता होगा और उसे भी मालूम होगा कि यह कॉपी निश्चित तौर पर उसके ही राज्य के किसी युवक की है और आप मानेंगे ही कि अपने क्षेत्र के प्रति पूर्वाग्रह अंकन को व्यक्तिनिष्ट बना देता है...तमिल में लिखे साहित्यिक पेपर को तमिलियन [ राजस्थान या असम या महाराष्ट्र का मूल्याङ्कनकर्त्ता तो निश्चित ही नहीं होगा ] ही जांचेगा तो सोचिये कि उस प्रतियोगी को मिले अंकों में कितना पूर्वाग्रह होगा। लेकिन किसी राजस्थानी को यह फायदा नहीं मिल सकता है क्योंकि उसे या तो हिंदी साहित्य लेना होगा या फिर अंग्रेजी और अन्य के तो दुर्लभतम उदहारण ही होंगे....लेकिन एक राजस्थानी को राजस्थानी लिखकर जितनी सहूलियत मिलेगी उतनी क्या अंग्रेजी या हिंदी या किसी अन्य भाषाई साहित्य से मिल सकती है। विकास जी, एक अंग्रेजी कहावत है कि "यू स्क्रेच माई बैक एंड आई विल यूअर्स '........ सीधा सा मतलब यह है कि आप जैसे शिक्षित राजस्थानी हमारे साथ होंगे और हमारे साथ इस पवित्र उद्देश्य में हाथ बटाएँगे तो आगे आने वाले समय में मैं, आप, हमारा ही कोई मित्र, भाई, आने वाली पीढियां इसका फायदा उठाएंगी..........और हम कौनसा नाजायज मांग उठा रहे हैं, राजस्थानी का एक समृद्ध साहित्य और गौरवशाली अतीत है, अनेक विश्वविद्यालयों में एक भाषा के रूप में पढ़ाई जा रही है, नेट में यह विषय है, केन्द्रीय साहित्य अकादमी इसमें पुरस्कार दे रही है तो फिर हम मांग क्यों ना उठाएं............ जो अपने हक़ के लिए नहीं लड़ते हैं, वो अपनी गोद में लिए हुए को भी खो देते हैं।
आप गंगानगर से हैं, आप सोचिये कि घडसाना, रावला, सूरतगढ़ के रेतीले गाँवों से प्राइवेट स्नात्तक करने वाले हजारों बेरोजगारों को अगर राजस्थानी या हिंदी/अंग्रेजी में से एक चुनकर अपने परिवेश के ही साहित्य , संगीत, समाज, रीति-रिवाज, सामाजिक समस्याएं, भक्ति आदि पर लिखना हो तो किस में सहजता होगी ? इन्हीं सब बातों को आप अंग्रेजी में लिखकर सहूलियत महसूस करेंगे या अपनी उस माँ बोली में जिनमें आप आधी से ज्यादा चीजें तो शादी विवाह, परिवार, पास-पड़ौस से ही सीख चुके हैं और अभिव्यक्त कर सकते हैं .......
आप दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ रहे हैं, बेहद ख़ुशी की बात है आप मेहनत करें और क्षेत्र का नाम रोशन करें .......... मगर जब आप कामयाब होकर किसी दिन वापिस लौटेंगे तो आपके पड़ौस का बूढ़ा आपको राजस्थानी में ही बोलकर कहेगा -' चोखो बेटा, सूणो काम करयो' या जब आप किसी मित्र से मिलने उसके गाँव में जायेंगे तो वे हिंदी या अंग्रेजी में नहीं उसके परिवार वाले आप पर अपनी मायड़बोली में स्नेह उडेलेंगे !!!
आशा है कि आपका अनमोल सहयोग आपकी मिटटी के कर्ज को उतारने में मदद करेगा ......
जै राजस्थान अ'र जै राजस्थानी !!
जितेन्द्र कुमार सोनी (IAS)
LBSNAA mussoorii
Ratan Singh Shekhawat
इसलिए राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर जो मांग की जा रही है उसमे कहीं कोई गलत नहीं है |
Ratan Singh Shekhawat इस अभियान से सम्बंधित अनेक समाचार और आलेख पढने के बावजूद मैं इस मांग का औचित्य नही समझ पाया.
@ आपके द्वारा औचित्य समझना जरुरी है या १३ करोड़ लोगों की भावनाओं का सम्मान करना जरुरी है ?
Ratan Singh Shekhawat यदि ऐसा होता है तो यह निश्चित रूप से एक गलत परम्परा कि शुरुआत होगी
@ १३ करोड़ लोगों की मातृभाषा की मांग स्वीकार करना आपको गलत परम्परा नजर आती है | पर हमें तो आप द्वारा उठाया इस तरह का मुद्दा ही गलत लग रहा है | और सबसे गलत बात ये कि बहस शुरू कर खुद गायब ही हो लिए ,अरे बहस शुरू की है तो इसका सामना भी करना सीखो |
Om Purohit Kagad
आज राजस्थान के नेता राजस्थानी मेँ बोल कर वोट तो बटोर लेते हैँ मगर पंचायत,पंचायत समिति, जिला परिषद,विधान सभा, राज्य सभा और लोक सभा मेँ राजस्थानी बोल नहीँ सकते । आज 28 मेँ से 22 राज्योँ के सांसद जिस भाषा मेँ वोट मांगते है उसी भाषा को सदनोँ मेँ बोलते हैँ । राजस्थान के जनप्रतिनिधि ही भाग्यहीन हैँ जो अपनी मातृभाषा को जनता के बीच ही बोल पाते हैँ अन्य विधायी मंचो पर नहीँ । पूर्व, पश्चिम व धुर दक्षिण से आए IAS,IPS, प्रशासन चला रहे हैँ जो राजस्थानियोँ की भाषा ही नहीँ जानते वे उनकी मनगत को भला क्या जानेँगे ? राजस्थान मेँ शासन, प्रशासन व जनता के बीच भाषा के कारण भयंकर संवादहीनता है जो संघीय लोकतंत्र के लिए घातक है । आज राजस्थान के न्यायालयोँ मेँ अंग्रेजी व हिन्दी मेँ काम हो रहा है । ठेट ग्रामीण वादी परिवादी ना बहस को समझता है न बहस मेँ भाग ले सकता है । भले ही उसके सामने उसके विरुद्ध ही क्यों न बोला जा रहा हो । राजस्थान मेँ चंद अंग्रेजीदां व हिन्दीदां तथाकथित पढ़े लिखे लोग ही ब्यूरोक्रेसी का सामना कर पाते हैँ मगर ठेट ग्रामीण राजस्थानी ब्यूरोक्रेट्स के सामने जाने से कतराता है । जब वह अपनी बात ही नहीँ कह पाता और कोई उसके दिल की सुनता नहीँ तो उसे क्या खाक न्याय मिलेगा ? आज राजस्थान सरकार का प्रचारतंत्र अंग्रेजी व हिन्दी मेँ सरकारी योजनाओँ का प्रचार करता हैँ जिनके नतीजे ठनठनगोपाल ! यही अगर राजस्थानी मे हो तो आम तक योजनाएं पहुंचेँगी और हर राजस्थानी मुखर हो कर उनका लाभ उठा पाएगा ।
बड़ा अजीब लगता है जब राजस्थान का शासन सचिव व जिला कलक्टर पूछता है कि ये अड़ुआ,राध, बूर, सीवण,धामण,इरणा,कंकेड़ा, कूमटा,केरड़ा,केल, छनाबड़ी,मामालूणी,कागा रोटी,पील,गूंदा,ढिँचकनाळियो, बुगचो,फीँच,साथळ, पिँडी,रूं,झिँडियो, क्या होता है ?
राजस्थानी भाषा का शब्दकोश विश्व का सबसे बड़ा भाषाई शब्दकोश है जिसे क्या जानेँ बेचारे गैरराजस्थानी IAS व IPS । इसी लिए बेचारे राजस्थानियोँ के मनोरथ व दुख दर्द दिल मेँ ही घुटते रहते हैँ । बस इसी लिए हर राजस्थानी अपनी मातृभाषा को आठवीँ अनुसूची मेँ शामिल करने की मांग करते।
Om Purohit Kagad
Satyanarayan Soni
Om Purohit Kagad
म्हारी रोटी बेटी राजस्थानी
म्हारी बोटी बोटी राजस्थानी
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas राज मैÓम बात किसी भाषा विशेष या खुले दिल की नहीं है, बल्कि एक ऐसे मुद्दे पर विचार-विमर्श करने की है, जो हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में दरपेश आ रहा है।
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas
Sachdeva Vikas
Vinod Saraswat
Sachdeva Vikas Thanx vinod जी
Om Purohit Kagad
Vinod Saraswat
Satyanarayan Soni
HanvantSingh Gundecha
Satyanarayan Soni विकास जी इस चर्चा को विस्तार देने के लिए अपनी मित्र-सूची में से कुछ और बुद्धिजीवी साथियों को टेग करें... सुनने वाले अधिक हों तो वक्ता का जोश बढ़ जाता है....
Om Purohit Kagad
कुछ अन्यथा लिख दिया है तो क्षमा !
आपणो राजस्थान
आपणी राजस्थानी
लिंक देखिये.......सचदेवा जी यह फोटो आप देखें....
Satyanarayan Soni http://www.facebook.com/note.php?note_id=10150097620469363
Satyanarayan Soni दो लेखों के लिंक दे रहा हूँ.....इन्हें आप सब और सचदेवा जी, खासतौर से आप जरूर पढ़ें इन्हें......
http://www.facebook.com/note.php?note_id=15511942116९९७७
Satyanarayan Soni http://www.facebook.com/note.php?note_id=150082471673672
aapke shabd..... ''कागद जी, प्रणाम। संभवत: यह मेरी आपसे पहली मुलाकात है। इससे पूर्व केवल आपका नाम और आपके क्रियाकलापों के बारे में सुना ही था।''
Satyanarayan Soni सचदेवा जी, सब लोग भाषाविद नहीं होते....इस मसले को आप जैसे पत्रकार ही अब तक ढंग से नहीं समझ पाए तो आम आदमी से उम्मीद क्यों.....? फिर भी मैं आपको भरोसा दिलाता हूँ...कि अब यह जन आन्दोलन बन चुका है...आन्दोलन निरंतर विकासमान है...
HanvantSingh Gundecha दाता : इण देस मे लोकतंत्र कोनीं। लोकतंत्र में लोगां री चालै॥ अठै तो मुट्ठी भर लोग बाकी सगळा माथै राज करै
Satyanarayan Soni जहाँ तक हमारे साथियों के आक्रामक रुख कि बात है तो इसकी वजह है....सहने की भी एक हद होती है..
गिरधारीसिंह पड़िहार ने लिखा है...
रण माड़ो करम जगत जाणे,
पण हद रै नाके झालीजे,
डांगर नीं घिरे दकाल्यां जद,
लाठ्याँ ही खेत रूखाळीजे॥
मेरे ख्याल से इस सारे वाद-प्रतिवाद से कही ना कही सभी को लाभ मिला है और अपने-अपने ढंग से सभी इस परिचर्चा से ' सार-सार के ले गाही, थोथ्हा देई उडाये' को ध्यान में रखकर भविष्य की नीतिया तय करने का प्रयास करेंगे
Monday, April 18, 2011
Saturday, April 16, 2011
Friday, April 15, 2011
Thursday, April 14, 2011
Monday, April 11, 2011
Sunday, April 10, 2011
Wednesday, April 6, 2011
एक जरूरी सवाल राजस्थान की जनता से
प्राध्यापक (हिंदी)
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
परलीका (हनुमानगढ़) 335504
Friday, April 1, 2011
सम्पत सरल रा दो राजस्थानी गीत
सम्पत सरल रा दो राजस्थानी गीत
(श्री ओम पुरोहित कागद जी रै फेसबुक नोट सूं साभार)म्हारा व्हाला मींत अर जगचावा राजस्थानी कवि भाई सम्पत सरल आज समूळै विश्व में आपरी निरवाळी छिब बणाई है । आप दुनियां भर रै कवि सम्मेलना में जावै अर राजस्थानी रो झंडो उंचावै! आप देश रा सगळा टीवी चैनलां माथै छाया रैवै ! आप मूळत: हास्य-व्यंग्य लिखै अर बोलै ! आपरा दोय राजस्थानी गीत म्हारै हाथ लाग्या है !आपरी निज़र है ऐ दोन्यूं गीत-
[१]
** कुण ईंको सपनो चोरयो है **
नील गगन की ओढ कामळी, श्रमजीवी धरत्यां सोरयो है ।
गडै कांकरा सूळ सरीखा, कुण ईंको सपनो चोरयो है ?
जो जग सींचै बहा पसीनो
जग को कवच जिका को सीनो ’
वो ही जग नै भार होयगो, जो जग को बोझो ढोरयो है
ठंडो चूल्हो ले’र फ़ूंकणी,
फ़ूंक मारतां चढै धूजणी,
हाड-मांस को एक पूतळो , छाणस की रोटी पोरयो है ।
दिन भर रोज मजूरी करणी,
जोड़्यां हाथ हजूरी करणी,
फ़ेर चांच नै चुग्गो कोनी, दास मलूका के होरयो है
लगा हाज़री बैठै छायां,
और करै बस आयां बायां,
पांचूं घी में अर अंटी में, रिपिया पर रिपिया गोरयो है ।
मैनत ईंकी फ़ळ ओरां नै
के चाबी सूंपी चोरां नै ?
अमरस पीवै और भायला, आम बिचारो ओ बोरयो है ।
[२]
** जळ म्हारो धरती ओरां की **
समदर पर बरसै है बादळ, ले म्हारा पोखर को पाणी
ठाडाई देखो जोरां की,
जळ म्हारो धरती ओरां की,
बूंद-बूंद सांचर कर राखी, म्हे काईं अब तक थां ताणी
नितकी मेघ मनावै करसो,
थोडा़ तो म्हारै भी बरसो,
इन्दर की अणदेखी कारण, दाता मुख भूल्या गाणी-माणी ।
अब कुण सूं अरदास करांजी,
अब कुण पर विश्वास करां जी,
सूरज खुद साज़िश में शामिल, मानो तेल गतक गी घाणी ।
सगळा रळ मिळ खम ठोकां तो
छळी पवन को मग रोकां तो,
जद ही हक मिलसी रै भाया, नीतर कोनी आणी-जाणी ।
================================
-ठावो ठिकाणो-व्हाइट हाउस, 85-मयूर विहार, नांगल जैसा बोहरा,झोटवाडा़,जयपुर-302012
-कानांबाती-9414044418
1. राजस्थानी हिन्दी से भी प्राचीन भाषा है । प्रख्यात आलोचक डा. नामवर जी के अनुसार राजस्थानी ने ही हिन्दी को जन्म दिया । हिन्दी मेँ भी 42 बोलियां है ।
2.हर भाषा के दो स्वरूप होते हैँ । एक अकादमिक और दूसरा लोकरंजक यानी बोलचाल वाला । हिन्दी का अकादमिक स्वरूप एक है परन्तु हिन्दी अनेक प्रकार से बोली जाती है ।
3. हर भाषा तब तक अलग अलग तरीके से अपनी समस्त बोलियोँ अपनाई जाती है परन्तु राजमान्यता के बाद सरकार के भाषा विभाग उनका मानक स्वरूप तय करता है और फिर उस मानक स्वरूप को सरकारी कामकाज, शिक्षा, न्यायालय व पत्र पत्रिकाएं काम मेँ लेते हैँ। पंजाबी,गुजराती,मराठी,सिन्धी,तमिल, तेलगु, मलयालम व हिन्दी आदि भाषाओँ मेँ भी ऐसा ही हुआ । हमारे पड़ोसी राज्य पंजाब की पंजाबी भाषा को ही लेँ । पंजाबी मेँ गुरमुखी, निहंगी, पटियालवी, दोआबी, मांझी, होश्यारपुरी, पवादी, भटियाणी,सरायकी आदि 27 बोलियां हैँ । सब बोलियां अलग अलग तरीके से बोली जाती हैँ परन्तु सब को मिला कर मानक स्वरूप तैयार किया गया है । वह है अकादमिक पंजाबी । इसी संदर्भ मेँ राजस्थानी भाषा, इसकी 73 बोलियां तथा भावी मानक स्वरूप को देखेँ ।
4. भाषा का मानक स्वरूप सरकार तय करती है क्यौँ कि उसे अपनी प्रजा के साथ संवाद स्थापित करना होता है व राजकाज को औसत जनभाषा मे करना होता है ।
5. राज्योँ का गठन भाषा के आधार पर हुआ था और राजस्थान का गठन इसकी राजस्थानी भाषा के आधार पर ही हुआ था । जब राजस्थानी भाषा ही नहीँ तो राजस्थान कैसे बन गया ?
6। राजस्थान के साथ भाषा के मामले मेँ आजादी के साथ ही शुरु हो गया था । हिन्दी को पनपाने की जिम्मेदारी डाली गई । मान्यता की मांग तभी से है ।