Wednesday, January 21, 2009

२१ माघ मास जो पड़ै न सीत। मेहा नहीं जांणियो मीत।।

माघ मास जो पड़ै न सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।
डॉ. राजेन्द्र बारहठ रो जलम २० जून, १९६९ नै जोधपुर जिला रा गांव खारी छोटी मांय हुयो। राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय, उदयपुर रा राजस्थानी विभागाध्यक्ष अर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा प्रदेश महामंत्री। राजस्थानी रा नांमी लिखारा, भाषाविद् अर चिन्तक। आपरी पोथ्यां छपी हैं अर आप राष्ट्रीय अर अन्तरराष्ट्रीय सेमीनारां मांय रिसर्च पेपर भी बांच चुक्या हैं। उदयपुर री साहित्यिक संस्था 'राजस्थानी जाजम' रा संस्थापक अर अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति रा अंगी संगठन, राजस्थानी महिला परिषद्, राजस्थानी मोट्यार परिषद्, राजस्थानी चिंतन परिषद् अर राजस्थानी खेल परिषद् रो गठन करावण में आगीवांण। आज बांचो, आं री कलम री कोरणी- खास लेख।

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २१/१/२००९

माघ मास जो पड़ै न सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।

-डॉ. राजेन्द्र बारहठ, उदयपुर।

राजस्थानी लोक साहित री भागीरथी री अबोट धारावां में लोक-गाथावां, लोक-नाट्य, बातां, लोकगीत, आडियां, औखांणा इत्याद हैं। जिण धारावां री मारफत लोक में आ ग्यान-धारा परम्परागत रूप में बैवती रैयी है। इण लोक ग्यानधारा रै मारफत ई अठै रा मानखां री पीढ़ियां निकळगी जकी शिक्षा, कला, विग्यान, बिणज, इंजिनियरी अर दूजा विसयां सूं सम्बन्धित कोई उपाधियां नीं राखती अर नीं राखै, फेर भी पीढ़ियां रै संचियोडा अनुभवां रै उजास सूं आज रै विकसित विग्यान नैं भी केई मामलां में साच बतावती लागै आ सबळी लोक-साहित री परम्परा।
राजस्थानी लोक-साहित री सब विधावां में अणूंतो साहित विविध विधावां में मिलै, जिणमें मौसम विग्यान री कैवतां भी है। जकी कैवती-दूहां रै रूप में लोक में पसरी पड़ी है। मौसम विग्यान री ऐ कैवतां तो आधुनिक मौसम विग्यान री भविष्यवाणियां सूं भी च्यार पांवडा आगै निकळती लागै। आं कैवतां रा रचेता कुण है? आं री रचना कठै अर कद हुई? ओ पक्कायत रूप सूं कैवणो मुसकल है। आ बात तो तै है कै ऐ राजस्थानी लोक री हथाई शैली री महताऊ रचनावां है। आं कैवती दूहां रो ज्योतिष अर मौसम विग्यान री दीठ सूं अध्ययन अर मूल्यांकन जरूरी है। आओ, आज बांचां पौह अर माह म्हींनै सारू लोक चलत रा ऐ कैवती-दूहा अर वां रो अरथ-
पौस अंधारी सप्तमी, विन जळ वादळ जोय।
सावण सुद पूनम दिवस, अवसै वरखा होय।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम नै जे मेह नीं बरसै तो सावण सुद पूनम नै अवस बरसैला।
पौस अंधारी सप्तमी, जे नहीं वरसै मेह।
तो आदराक् वरसै सही, जळ थळ अेक करेह।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम नै जे मेह नीं बरसै तो आदरा नखतर में जरूर बरसैला अर जळ-थळ एक कर देवैला।
पौस अंधारी सप्तमी, जे घण नह वरसैह।
तो आदरा में भड्डळीख्, जळ थळ एक करैह।।
अरथ- पौस री अंधारी सातम रै दिन जे बादळा नीं बरसै तो हे भड्डळी! आदरा नखतर में घणाई बरसैला, च्यारूं कूंटां पांणी ही पांणी कर देवैला।
पौस वदी दसमी दिवस, वादळ चमकै वीज।
तो वरसै भर भादवै, होय अनोखी तीज।।
अरथ- पौस वदी दसमी रै दिन जे बादळां में बिजळी चमकै, तो पूरै भादवै चोखी बिरखा होवै अर तीज रो तिवांर अनोखो बण जावै।
माह अंधारी सप्तमी, मेह वीजळी संग।
च्यार मास वरसै सही, प्रजा करै नवरंग।।
अरथ- माह वदी सातम रै दिन जे बीजळियां खिंवै अर बादळ हुवै तो आगै चाल'र पूरै चौमासै मेह बरसै अर मानखै री मन री रळियां मतलब मनस्यावां पूरी हुवै। प्रजा रै सब तरै रा आणंद हुवै।
माह अमावस रात-दिन, मेघ पवन घण छाय।
धरती में आणंद हुवै, संवत् चोखो थाय।।
अरथ- माघ म्हीनै री अमावस नै जे बादळ छावै अर वायरो बाजै। तो धरती माथै आणंद छावै अर संवत् चोखो बीतै।
आज रो औखांणो
माघ मास जो पड़ै सीत।
मेहा नहीं जांणियो मीत।।
माघ महीने में यदि सरदी पड़े तो आगामी बरस में बरसात होने के आसार होते हैं।
१. आद्रा नक्षत्र, २. एक कवि रो नांव।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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