आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२७/५/२००९
महाराणा प्रताप जयंती पर खास
चितौड़ सूं प्रताप रो घणो हेत। उणां नैं ओ दुखड़ो हरमेस बण्यो रह्यो कै वे आपरी मायड़भौम चितौड़ नै दुसमियां सूं मुगत नीं करा सक्या। चितौड़ री माटी नै फेरूं निंवण करण री आस पूरी नीं हो सकी। इण अधूरी आस रै साथै ई 19 जनवरी, 1597 में राणाप्रताप देवलोक व्हेग्या। मिनख चावै कितरो ई लूंठो होवै, बीखो सगळां में पड़ै। रणबांकुरै प्रताप रो मन भी एकर दुबळो पड़ग्यो, पण वां रा मित्र कवि प्रथ्वीराज राठौड़ उणां में फेरूं वीरता रो भाव भर दियो अर मेवाड़ रो ओ शेर पाछो दहाड़ मारण लागग्यो।
कवि कन्हैयालाल सेठिया आपरी कविता 'पातळ अर पीथळ' में आं भावां नै सजीव कर दीना-
तारीख-२७/५/२००९
महाराणा प्रताप जयंती पर खास
सीस पड़ै पण पाघ नहीं
-सुलतानराम गोविंदसर
माता जयवन्ता बाई जिसी कूख सगळी मातावां नै नीं मिल्या करै। जे मिलती तो घर-घर राणाप्रताप होंवता। 27 मई, 1540 में महाराणा उदयसिंह रै घरां जळम्यो ओ टाबर मेवाड़ रै गिगनमंडळ में सूरज री भांत एकलो तप्यो अर चमक्यो। मुगल बादसाह अकबर रो तेज इण तेज नै नीं बेध सक्यो। अकबर रा दरबारी कवि प्रथ्वीराज राठौड़ जका पीथळ नांव सूं भी जाणीजै, लिख्यो--सुलतानराम गोविंदसर
माई, ऐड़ा पूत जण, जेड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै सांप।।
प्रताप कदेई दिल्ली दरबार में अकबर री हाजरी नीं भरी। उणांरो तरक हो कै मेवाड़ दिल्ली सूं कमती नीं। इणनै अधीन कुण कर सकै। आजादी रो ओ परवानो प्रताप मेवाड़ रो, आखै राजस्थान रो, आखै हिन्दुस्तान रो अणमोल मोती हो। कवि दुरसा आढ़ा लिखै-अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै सांप।।
अकबर पथर अनेक, कै भूपत भेळा किया।
हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी।।
राणाप्रताप रो राजतिलक गोगुन्दा में 28 फरवरी, 1572 नै हुयो। सिंहासण पर बैठतांई दिल्ली री चालां सरू होगी। अकबर संधि करण अर अधीनता मानण सारू जलाल खां, मानसिंह, राजा भगवन्तदास अर टोडरमल नै भेज्या, पण प्रताप नीं डिग्यो। छेकड़ अकबर राजा मानसिंह नै सेनापति बणा'र मेवाड़ पर चढ़ाई कर दीनी। हळदी घाटी रो जुद्ध होयो। 18 जून, 1576 सूं सरू होवण आळै जुद्ध में मेवाड़ अकबर रै कब्जै में आ'ग्यो पण प्रताप हार नीं मानी। मेवाड़ रो महल तज नैं जंगळां में भटकणो मंजूर। प्रताप टूट सकै पण झुक नीं सकै। फेरूं आपरा जतन कीना। मांडल अर चितौड़ नै छोड़'र सगळा किला आपरै हक में कर लीना। चावण्ड नै आपरी नूंवी राजधानी बणाई।हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी।।
चितौड़ सूं प्रताप रो घणो हेत। उणां नैं ओ दुखड़ो हरमेस बण्यो रह्यो कै वे आपरी मायड़भौम चितौड़ नै दुसमियां सूं मुगत नीं करा सक्या। चितौड़ री माटी नै फेरूं निंवण करण री आस पूरी नीं हो सकी। इण अधूरी आस रै साथै ई 19 जनवरी, 1597 में राणाप्रताप देवलोक व्हेग्या। मिनख चावै कितरो ई लूंठो होवै, बीखो सगळां में पड़ै। रणबांकुरै प्रताप रो मन भी एकर दुबळो पड़ग्यो, पण वां रा मित्र कवि प्रथ्वीराज राठौड़ उणां में फेरूं वीरता रो भाव भर दियो अर मेवाड़ रो ओ शेर पाछो दहाड़ मारण लागग्यो।
कवि कन्हैयालाल सेठिया आपरी कविता 'पातळ अर पीथळ' में आं भावां नै सजीव कर दीना-
हूं रजपूतण रो जायो हूं, रजपूती करज चुकाऊंला।
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं, दिल्ली रो मान झुकाऊंला।।
राणा रै साथै राणा झाला अर भामाशाह रो नांव भी इतिहास में अमर है। राणा प्रताप जद रणभोम में घायल होग्या तो राणा झाला उणांरो छत्र आपरै मस्तक पर धारण कर लीनो। राणा प्रताप री जान तो बचगी पण झालाजी आपरै इण बळिदान सूं इतिहास में अमर हुया। हळदी घाटी रै जुद्ध रै पछै जद राणाजी रो खजानो खाली होग्यो तो भामाशाह आपरो सो कीं राणाजी नै अर्पित कर दीनो। त्याग, शौर्य, देशभक्ति अर आजादी री आ मिसाल फगत राणाप्रताप अर मेवाड़ में ही मिलै। क्यूं नां जयवन्ता बाई जिसी कूख हिन्दुस्तान री सगळी मातावां नै मिलै। वां री कीरत में कवियां वगत-वगत पर सांतरा छंद कैया। कवि केसरीसिंह बारहठ महाराणा फतहसिंह नै चेतावणी रा चूंगट्यां में भी लिख्यो-ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं, दिल्ली रो मान झुकाऊंला।।
पग-पग भम्या पहाड़, धरा छांड राख्यो धरम।
महाराणा'र मेवाड़, हिरदै बसिया हिंद रै।।
महाराणा'र मेवाड़, हिरदै बसिया हिंद रै।।
राणा प्रताप जिकी भाषा में हुंकार भरता। वा भाषा भी आज मान सारू बिलखै है। आओ, राणा प्रताप री मायड़भाषा राजस्थानी नै सांचो मान दिरावां।