Sunday, January 25, 2009

२६ पैर पिछाणै मोचड़ी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २६//२००९

पैर पिछाणै मोचड़ी,
नैण पिछाणै नेह


डॉ. नन्दलाल वर्मा राजकीय चिकित्सालय, सूरतगढ़ मांय नेत्र रोग रा कनिष्ठ विशेषज्ञ हैं। आज बांचो आं री कलम री कोरणी- ओ खास लेख।

-डॉ. नन्दलाल वर्मा

रं-बिरंगी, मनमोवणी दुनिया रा दरसाव दिखावै नैण। उमंग, उच्छब, हरख, कोड अर हेत-प्रीत री बातां नैणां सूं जुडियोडी। सिस्टी सूं दिस्टी रो नातो जोड़े नैण। आंख, आंख्यड़ल्यां, अंखियां अर नेतर इणरा ई नांव। दीदा, ढोबसा नांव भी दूजै भावां में लिया जावै। कैबा चालै- आंख जणावै जगत नै पण आंख ना जाणी जाय। आओ, आंख्यां री बात करां।
अंधारै में स्वाद सूं स्वाद जीमण जीमो। आणंद नीं मिलै। काया तो देखतां-देखतां जीम्यां ई तिरपत व्है। बीनणी भलां ई कित्ती ई फूटरी अर रूपाळी व्हो। बींदराजा जे खाली नांव रो ई नैणसुख तो फुटरापो किण काम रो! हर्यो भर्यो खेत, मेळै-मगरियै रा रंग रंगीला दरसाव, दीवाळी रा दिप-दिपावता दीवा, होळी रा राता-पीळा-हरा-कोढिया रंग, आखातीज रा उडता भूतल-पटील-चांदल-माथल-फरियल किन्ना, नाचतै मोरियै री मनमोवणी छिब, उठती कळायण, खिंवती बीजळ, अंधारी रात में तारां जगमग आभो, फागण रा फागणिया, सावण रा लेहरिया, मखमल सा राता राता ममोलिया, रेतां रमती सोनलभींग, गोरती गाय रो टीकलियो बाछड़ो, सांगर्यां सूं लड़ालूंब खेजड़ा, आंगणै में वार-तिंवार मांडीजता मांडणा, हथेळ्यां राच्योडी सुरंगी मैंदी, माटी में लोटपोट नान्हीं नान्हीं मूरतां, आपणा-परायां री सूरतां, आं सगळी बातां रा ठाटआंख्यां देखै, निरखै। नीं जणां सगळो जग सूनो। सगळा रंग काळा। सगळा चांनणा काळी अंधारी रात।
आंख्यां फगत देखै ई नीं। देखणो तो नैणां रो जैविक कर्म। पण मिनखपणै री कंवळी भावनावां, अपणायत, निस्चै, भरोसो, घिरणा, रीस, लाज, हेत-प्रीत अर नेह री औळख भी आपणी दीठ अर नैण ई दरसावै।

पैर पिछांणै मोचड़ी, नैण पिछांणै नेह।
कंथ पिछांणै कांमणी, नार पिछांणै गेह।।


दो प्रेमियां नै एकाकार करण वाळी प्रीत, सैंणी-बींझो, मूमल-महेन्द्र, रामू-चन्नणां नै आपस में बांधण वाळा बंधण सब नैणां रा मोहताज।
तीर लगो, गोळा लगो, लगो मरम रो घाव।
नैण किणी रा ना लगो, तिणरो नहीं उपाव।।


पिव परदेस बसै, तन-मन अधीर, मिलण री घणी चाव। इण हाल में नैण बेहाल।

मेवड़लै झड़ मांडियो, मन ना धीर धरै।
विरहण ऊभी अणमणी, नैणां नीर झरै।।


नैणां री मार निबळो बणावै तो नैणां रो निस्चै-निरणै इतिहास रचावै। मेघराज मुकुल री 'सैनाणी' री ओळ्यां बांचो। नैणां रो कमाल देखो!
घायल सी भागी मैलां में, फिर बीच झरोखां टिक्या नैण।
बारै दरवाजै चूंडावत, उच्चार रह्यो थो वीर बैण।।
नैणां सूं नैण मिल्या छिण में, सरदार वीरता बिसराई।
सेवक नै भेज रावळै में, अंतिम सैनाणी मंगवाई।।


अर हाडी राणी आपरै हाथां आपरो माथो काट'र पकड़ा दियो।
मायड़भोम री मरजाद निभावै नैण। सेठियाजी री कविता 'पातळ अर पीथळ' में राणा प्रताप रा बोल है-

जद याद करूं हळदीघाटी,
नैणां में रगत उतर आवै।


म्हे मरुधरा रा वासी। मनवार में नैण बिछावां, तो सूंपां भी।

साजन आया सखी, कांईं भेंट करूं।
थाळ भरूं गजमोतियां, ऊपर नैण धरूं।।


अर नैण जे पराई पीड़ में आडा नीं आया। पराई पीड़ में जे नीं बरस्या। तो किस्या नैण। महसूसो वां री पीड़, जिकां नै भगवान नैण नीं बगस्या। जिकां रा नैण हारी बीमारी में जावता रैया। आपां कीं करां। आपणा नैण वा नै रंग रंगीली दुनिया सूं मिलावै। आओ, आपां वां री अर आपणी पीड़ सांझी करां।

आज रो औखांणो

आंख्यां दीठी परसराम कदै न कू़डी होय।
आंखों देखी परशुराम कभी न झूठी होय।
प्रत्यक्ष अनुभव को चुनौती नहीं दी जा सकती।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।
राजस्थानी रा लिखारां सूं अरज- आप भी आपरा आलेख इण स्तम्भ सारू भेजो सा!

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