Saturday, February 26, 2011

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Friday, February 25, 2011

मेवाड़ी गोखड़ो

Tuesday, February 22, 2011

फौजी की फैमिली...


मायड़ रा हाल माड़ा

राजस्थान पत्रिका से अदरीस खान की रिपोर्ट...
मायड़ रा हाल माड़ा
२१ फ़रवरी, 20011

हनुमानगढ़। नई पीढ़ी को मायड़ भाषा राजस्थानी से आखिर कैसे रूबरू करवाया जाए। नौनिहाल तालीम की शुरूआत के साथ ही मातृ भाषा से तारतम्य कैसे बैठाए। यह प्रश्न राजस्थानी भाषा प्रेमियों को मथ रहे हैं। क्योंकि शिक्षा की दृष्टि से मायड़ भाषा का हाल बहुत बुरा है। जबकि भाषाई अल्पसंख्यक भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त सिंधी, पंजाबी व उर्दू की स्थिति विपरित परिस्थितियों के बावजूद राजस्थानी से बहुत बेहतर है। इसका एक मोटा कारण इन्हें भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त होना है। ऎसे में अगर मायड़ भाषा को मान्यता मिल जाए तो इसकी स्थिति भी शीघ्र सुधर सकती है।

मान्यता का महत्व
जानकारी के अनुसार राज्य में सिंधी, पंजाबी, उर्दू व गुजराती को भाषाई अल्पसंख्यक भाषा के रूप में मान्यता है। इससे इन भाषाओं को बहुत लाभ मिलता है। क्योंकि गुजराल समिति के अनुसार प्राथमिक व उच्च प्राथमिक विद्यालय में न्यूनतम चालीस या किसी एक कक्षा में दस विद्यार्थी हैं तो वे अपनी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं। उक्त संख्या होने के बाद सरकार को प्राथमिक स्तर पर उनकी शिक्षण की समुचित व्यवस्था करनी होती है। जबकि भाषा के रूप में मान्यता नहीं होने के कारण राजस्थानी विद्यार्थी चाह कर भी ऎसी मांग नहीं कर सकते।

नामांकन व विद्यालय बढ़े
भाषा के तौर पर मान्यता का कितना लाभ मिलता है। इसका उदाहरण यह है कि आज राज्य में पंजाबी, सिंधी व उर्दू भाषा के माध्यम से सैकड़ों विद्यालयों में शिक्षा दी जा रही है। इन विद्यालयों में नामांकन भी बढ़ा है। ऎसे में अगर राजस्थानी को भाषा की मान्यता मिल जाए तो प्रदेश के सैकड़ों विद्यालयों में राजस्थानी का अध्ययन होने लगे। फिलहाल तो यह स्थिति है कि राजस्थानी भाषा वैकल्पिक विषय के रूप में केवल 35 विद्यालयों में पढ़ाई जा रही है। इनमें भी 15 विद्यालयों में व्याख्याताओं के पद खाली हैं।

भाषा समर्थक कहिन
मान्यता के बाद राजस्थानी भाषा के विद्यार्थियों व विद्यालयों की संख्या बढ़नी तय है। क्योंकि इससे उन्हें प्राथमिक स्तर पर ही मायड़ भाषा के अध्ययन की सुविधा मिलेगी। मान्यता के कारण कई भाषाओं की स्थिति आज राजस्थानी से बेहतर है। - मनोहरलाल बिश्नोई, व्याख्याता एवं पाटवी राजस्थान मोट्यार परिषद।

विश्व भर के शिक्षाविद्ों का मानना है कि प्राथमिक शिक्षा बच्चों को मातृ भाषा में दी जाए, जो कारगर साबित होती है। कुछ ऎसे ही विचार गांधीजी के थे। विद्यार्थी हित में भाषा की मान्यता मिलनी चाहिए।- डॉ. सत्यनारायण सोनी, प्रदेश मंत्री, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।

सभी जागरूकता के साथ जनगणना में अपनी भाषा राजस्थानी लिखवाएं। मान्यता की मुहिम को भी बल मायड़ भाषा का अध्ययन प्राथमिक कक्षाओं में हो सकेगा। - विनोद स्वामी, प्रदेश प्रचार मंत्री, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।

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