Thursday, January 8, 2009

९ हलवै भरी परात, कुतड़ा चाटै कीड़िया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ९/१/२००९

हलवै भरी परात, कुतड़ा चाटै कीड़िया
औखांणो है कै दारू वाळां रै देवाळो कदै ई नीं मिटै। दारू पीयां दिल खुलै अर फेर नां जूता-फजीती रो संको अर नां बूढा-बडेरां री लिहाज। कई-कई दिलदार अर दानवीर बण बैठै। कदे-कदे आ दिलेरी किणी भूखै-भीड़ै रै काम भी आवै। ल्यो सुणो ऐ बात-
भगवान रो ठिकाणो
एक मिनख तीन दिनां सूं भूखो हो। कठै ई रोटी को मिली नीं। मिंदर री घंटी सुणी तो मन में आई रोटी तो कांईं ठा कद मिलसी परसाद में कोई लाडू-पतासो मिलग्यो तो एकर काळजो दब ज्यासी। आगै री आगै देखस्यां। बो गयो अर देख्यो तो तिराण पाटग्या। मिंदर रै आगै मंगतां री लंगाटेर लागरी। अठै कुण हाथ आवण दे। सोच्यो, अठै तो दस साल ई लाडू हाथ को आवै नीं। अर बो मसीत कानी चाल पड़्यो। बठै ई पेट भरण रो कोई सुवांज कोनी दिख्यो तो बो सा'रै ई गुरुद्वारै में जाय'र बोल्यो, ''तीन दिनां सूं जाबक भूखो हूँ, कीं खावण सारू मिलसी के?'' बीं नै पड़ूत्तर मिल्यो कै अब तो तीन बज्या है थोडी ताळ पछै रोटी बण जासी, फेर जरूर मिल जासी। बो बारै निकळ मारग पर आयो। भूख मरतै नै चक्कर आग्यो, होस कोनी रैयो। थोडी ताळ पछै होस आयो तो दारू सूं धत्त एक मिनख बीं रै साम्हीं खड़्यो हो। बो बोल्यो, ''अठै किंया पड़्यो है रै?'' भूखो मिनख बोल्यो, ''कांइंर् पूछै भाया, तीन दिनां सूं अन्न रो भोरो ई को गयो नीं पेट में। जाबक भूखो हूं।'' दारू आळै बीं रै हाथ में पचास रो एक नोट पकड़ायो अर बोल्यो, ''जा ढाबै, रोटी जीम ले।''
जद बो भूखो मिनख ऊपरनै हाथ कर'र बोल्यो, ''हे भगवान! लखदाद है थारी लीला। थे रैवो कठै ई हो अर ठिकाणो कठै रो ई दे राख्यो है!''
सराबी रो फोन
एक सराबी रो घरां फोन आयो। बो आपरी जोडायत नै बोल्यो, ''सुणै है कांईं, आज म्हनैं आवण में देर लागसी। तूं रोटियां खातर म्हारी उडीक नां करी।''
घरआळी अळोच करती बोली, ''आज कांईं होग्यो जी?''
''कार रो स्टेरिंग अर गियर-बक्सो कोई चोर काढ लेग्यो।''
थोडी ताळ पछै बीं रो दूसर फोन आयो अर फेर घरआळी उठायो, ''हां जी, अब कांईं बात होगी?''
बो बोल्यो, ''म्हैं आवण लागर्यो हूं, रोटी सागै ई जीमस्यां।''
''तो स्टेरिंग अर गियर-ब सो?''
बो बोल्यो, ''आज कीं बेसी ले ली, जद भूलां में लारली सीट पर जा बैठ्यो हो।''
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कवि रामस्वरूप किसान रो एक सोरठो बांचो-
भुजिया बीड़ी बात, मदिरा मांगै मौकळी।
हलवै भरी परात, कुतड़ा चाटै कीड़िया।।
आज रो औखांणो
दारू तो हाथी नै ई ढायलै।
दारू तो हाथी को भी पटक देता है।
दारू के नशे से कैसा भी पराक्रमी अपना आपा खो देता है।
शराब के सामने कैसा भी शक्तिशाली नहीं टिक सकता।
प्रस्तुति : सत्यनारायण सोनी अर विनोद स्वामी, परलीका।

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