Tuesday, October 20, 2009

20 अक्टूबर, 2009 एकलड़ी


20 अक्टूबर, 2009







एकलड़ी

-सत्यनारायण सोनी
कानांबाती : 09602412124

तू ही म्हारो काळजो, तू ही म्हारो जीव।
घड़ी पलक नहिं आवड़ै, तुझ बिन म्हारा पीव!

जब से तुम परदेस गए, गया हमारा चैन।
'कनबतिया' कब मन भरे, तरसण लागे नैन।।

चैटिंग-चैटिंग तुम करो, वैटिंग-वैटिंग हम्म।
चौका-चूल्हा-रार में, गई उमरिया गम्म।।

सुणो सयाणा सायबा, आ'गी करवा चौथ।
एकलड़ी रै डील नै, खा'गी करवा चौथ।।

दीवाळी सूकी गई, गया हमारा नूर।
रोशन किसका घर हुआ, दिया हमारा दूर।

दिप-दिप कर दीवो चस्यो, चस्यो न म्हारो मन्न।
पिव म्हारो परदेस बस्यो, रस्यो न म्हारो तन्न।।

रामरमी नै मिल रया, बांथम-बांथां लोग।
थारा-म्हारा साजनां, कद होसी संजोग।।

म्हैं तो काठी धापगी, मार-मार मिसकाल।
चुप्पी कीकर धारली, सासूजी रा लाल!

जैपरियै में जा बस्यो, म्हारो प्यारो नाथ।
सोखी कोनी काटणी, सीयाळै री रात।।

म्हारो प्यारो सायबो, कोमळ-कूंपळ-फूल।
एकलड़ी रै डील में, घणी गडोवै सूळ।।

दिन तो दुख में गूजरै, आथण घणो ऊचाट।
एकलड़ी रै डील नै, खावण लागै खाट।।

पैली चिपटै गाल पर, पछै कुचरणी कान।
माछरियो मनभावणो, म्हारो राखै मान।।

माछर रै इण मान नैं, मानूं कीकर मान।
एकलड़ी रै कान में, तानां री है तान।।

थप-थप मांडूं आंगळी, थेपड़ियां में थाप।
तन में तेजी काम री, मन में थारी छाप।।

आज उमंग में आंगणो, नाचै नौ-नौ ताळ।
प्रीतम आयो पावणो, सुख बरसैलो साळ।।

Thursday, October 1, 2009

२ अक्तूबर, जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

अक्तूबर, २००९

देश के प्रख्यात जनकवि हरीश भादानी का शुक्रवार की सुबह बीकानेर में तड़के उनके आवास पर निधन हो गया। वे 76 वर्ष के थे। उनके परिवार में तीन पुत्रियां और एक पुत्र है।

उनका पार्थिव शरीर लोगों के दर्शनार्थ आज दिन भर उनके आवास पर रखा जाएगा। उनकी इच्छा के अनुरूप अन्तिम संस्कार के स्थान पर उनकी पार्थिव देह को शनिवार को सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के छात्रों के अध्ययन के लिए सौंपी जाएगी।

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे. यह खबर हर इन्सान के लिए दुखदायी है. राजस्थानी भाषा मान्यता आन्दोलन को भी उनके न रहने से धक्का लगा है। वे मूल रूप से राजस्थानी रचनाकार थे.

उनकी राजस्थानी में प्रकाशित पुस्तकें--

बाथां में भूगोळ (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1984
खण-खण उकळलया हूणिया (होरठा) जोधपुर .ले.स।
खोल किवाड़ा हूणिया, सिरजण हारा हूणिया (होरठा) राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जयपुर।
तीड़ोराव (नाटक) राजस्थानी भाषा-साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर पहला संस्करण 1990 दूसरा 1998
जिण हाथां रेत रचीजै (कविताएं) अंशु प्रकाशन, बीकानेर।

वे पहले ऐसे इन्सान थे जिन्होंने राजस्थानी को राजस्थान की पहली राजभाषा बनाये जाने की मांग की. बीकानेर के लोकमत कार्यालय में 1980 में राजस्थानी दूजी राजभाषा विषय पर वैचरिक गोष्टी के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए उन्होंने बड़े ही तीखे और गरम रुख से राजस्थानी को दूसरी नहीं पहली राजभाषा बनाने की पैरोकारी की.
राजस्थानी के लिए आजीवन संघर्षरत रहने वाले मायडभाषा के इस सच्चे और जुझारू सपूत को हमारी विनम्र श्रधान्जली।







श्री हरीश भादानी देश के बड़े कवि थे। श्री हरीश जी अपनी कविता ‘‘ये राज बोलता स्वराज बोलता....’’ एवं ‘‘रोटी नाम संत हैं....’’ दिल्ली के इंडिया गेट के आगे प्रस्तुत की थी। उनकी इस स्तर की कविताएं हैं। लोग इनकी कविताओं को गाते हैं, गुनगुनाते हैं। डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी जो कि बंगाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने भाषण में श्री हरीश जी की कविताओं में स्थानीयता के पुट को नकारते हुए कहा कि ये उनको राष्ट्रीय स्तर पर जाने से रोकता है, परंतु श्री भादानीजी की हिन्दी और राजस्थानी की कविताओं की राष्ट्रीय पहचान पहले से प्राप्त हो चुकी है।11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ। आपकी प्रथमिक शिक्षा हिन्दी-महाजनी-संस्कृत घर में ही हुई। आपका जीवन संघर्षमय रहा । सड़क से जेल तक कि कई यात्राओं में आपको काफी उतार-चढ़ाव नजदीक से देखने को अवसर मिला । रायवादियों-समाजवादियों के बीच आपने सारा जीवन गुजार दिया। आपने कोलकाता में भी काफी समय गुजारा। आपकी पुत्री श्रीमती सरला माहेश्वरी ‘माकपा’ की तरफ से दो बार राज्यसभा की सांसद भी रह चुकी है। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादक भी रहे । कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी प्रोढ़शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें राजस्थानी में। राजस्थानी भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने के लिए आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता। ‘सयुजा सखाया’ प्रकाशित। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से ‘मीरा’ प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी(महाराष्ट्र), पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से ‘राहुल’, । ‘एक उजली नजर की सुई(उदयपुर), ‘एक अकेला सूरज खेले’(उदयपुर), ‘विशिष्ठ साहित्यकार’(उदयपुर), ‘पितृकल्प’ के.के.बिड़ला फाउंडेशन से ‘बिहारी’ सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है
Some Books of Shri Harish Bhadani

हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें:


अधूरे गीत (हिन्दी-राजस्थानी) 1959 बीकानेर।
सपन की गली (हिन्दी गीत कविताएँ) 1961 कलकत्ता।
हँसिनी याद की (मुक्तक) सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर 1963।
एक उजली नजर की सुई (गीत) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966 (दूसरा संस्करण-पंचशीलप्रकाशन, जयपुर)
सुलगते पिण्ड (कविताएं) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966
नश्टो मोह (लम्बी कविता) धरती प्रकाशन बीकानेर 1981
सन्नाटे के शिलाखंड पर (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर1982।
एक अकेला सूरज खेले (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1983 (दूसरा संस्करण-कलासनप्रकाशन, बीकानेर 2005)
रोटी नाम सत है (जनगीत) कलम प्रकाशन, कलकत्ता 1982।
सड़कवासी राम (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1985।
आज की आंख का सिलसिला (कविताएं) कविता प्रकाशन,1985।
विस्मय के अंशी है (ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं का गीत रूपान्तर) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1988ं
साथ चलें हम (काव्यनाटक) गाड़ोदिया प्रकाशन, बीकानेर 1992।
पितृकल्प (लम्बी कविता) वैभव प्रकाशन, दिल्ली 1991 (दूसरा संस्करण-कलासन प्रकाशन, बीकानेर 2005)
सयुजा सखाया (ईशोपनिषद, असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर मदनलाल साह एजूकेशन सोसायटी, कलकत्ता 1998।
मैं मेरा अष्टावक्र (लम्बी कविता) कलासान प्रकाशन बीकानेर 1999
क्यों करें प्रार्थना (कविताएं) कवि प्रकाशन, बीकानेर 2006
आड़ी तानें-सीधी तानें (चयनित गीत) कवि प्रकाशन बीकानेर 2006
अखिर जिज्ञासा (गद्य) भारत ग्रन्थ निकेतन, बीकानेर २००७
भादानी की दो कवितायें
1.
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थें
विंयां घड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो?
[‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
2.
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां

झोलिया फैलाये लोग
भूग रहे सोटियां
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बोले खाली पेट की
करोड़ क्रोड़ कूडियां
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बंदूकियां
पाखंड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होमदे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बाजरी के पिंड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हथाली में परोसले

दाता जी के हाथ
मरोड़ कर परोसले
भूख के धरम राज यही तेरा ब्रत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
[रोटी नाम सत है]

प्रस्तुति - सत्यनारायण सोनी.

Tuesday, June 30, 2009

३० लुगायां, लाठी ल्याओ ऐ, गूदड़ै में डोरा घालां

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ३०//२००९

लुगायां, लाठी ल्याओ ,

गूदड़ै में डोरा घालां


-ओम पुरोहित कागद

राजस्थानी लोकसाहित्य जग में सिरै। राजस्थानी लोक साहित्य में बात, ओखांणा, कैबतां अनै आड्यां अजब-गजब। साहित्य अजब-गजब तो कथणियां बी अजब-गजब। एड़ा ई अजबधणी हा भूंगर कवि। भूंगर कवि बेमेळा सबदां री भेळप सूं बेअरथी कविता लिखता। ऐ कवितावां आज भी भूंगर रा घेसळा सिरैनांव सूं लोक में भंवै। भूंगर रो जलम कद अर कठै हुयो, इण रो कोई परवाण नीं। कई विद्वान उण नै अमीर खुसरो रै बगत रो बतावै। भूंगर रो ठिकाणो कई लोग बीकानेर डिवीजन रै नोखा या रतनगढ़ नै बतावै तो कई बतावै कै भूंगर नागौर रै साठिका या भदोरै गांव रा हा। खैर कद रा या कठै ई रा हा, पण हा राजस्थान रा ई। बां आपरै घेसळां सूं राजस्थान अर राजस्थानी भाषा रो जस चौगड़दे पुगायो।
अब आप पूछस्यो कै घेसळो कांई हुवै? घेसळो हुवै बोरटी री अणघड़ जाडी अर बांकी-बावळी लकड़ी सूं बणायोड़ो चलताऊ सौटौ जकै सूं खळै में बाजरी रै सिट्टां नै कूट'र दाणा काढ़्या करै। इण नै रेरू, खोटण या घेसळो कैवै। भूंगर रा घेसळा बी इण भांत ई बांका-बावळा अर बेअरथा हुवै। हिन्दी में अमीर खुसरो, घासीराम अर वासूजी ई घेसळां माफक ढकोसळा लिख्या। इण भांत रै बेअरथै छंद नै हिन्दी में ढकोसला, परसोकला या झटूकला कैईज्यौ। आं सगळां में सिरै पण भूंगर रा घेसळा ई थरपीज्या। इणी रै पाण भूंगर नै राजस्थानी लोक साहित्य में बो मुकाम मिल्यो जकौ अमीर खुसरो नै हिन्दी साहित्य में मिल्यो।
भूंगर राजस्थानी भाषा में हंसावणियां अर बेअरथा घेसळा लिखता। आं घेसळां री खास बात आ है कै आं में बेमेळा सबद है अर छेकड़ली तुक नीं मिलै। घेसळा बेतुका होंवता थकां बी रसाल है। भूंगर नै किणी री फटकार ही कै थारी कविता में जकै दिन लारली तुक मिलसी उण दिन थारी मौत हुयसी। मौत तो हरेक नै आवै। भूंगर नै बी आवणी ई ही। पण भूंगर री मौत फटकार नै साची करगी।
एक दिन री बात। भूंगर सांढ माथै गांवतरौ करै हा। गेलै में एक सुन्नो कुओ आयो। कुए मांय कोई कूकै हो। बचाओ-बचाओ। भूंगर कुऐ में देख्यो तो एक माणस टिरै। भूंगर नै दया आयगी। माणस नै काढ़ण री जुगत बैठाई। उण सांढ नै कुओ डकावण सारू तचकाई। सांढ लखायो ही, इण सारू ताती अर बेगवान ही। सांढ एक फाळ में ई कुओ डाकगी। सांढ रै डाकतां थकां भूंगर कुए में टिरतै माणस री टांग पकड़ली। सांढ तो परलै पार पण भूंगर धै कुए में। अब भूंगर बी माणस टांग थाम्योड़ो कुए में टिरै। कवि मन इण विपदा में ई कविता कर दी जको कोठै सूं होटै आयगी- ''डाकणी ही सांढ, डाकगी कुओ। एक तो हो ई, एक और हुओ।'' बीं नै अचाणचक चेतै आई कै आज तो कविता में हुओ री तुक कुओ सूं मिलगी। आज आयगी दिखै मौत। पण उण नै लखायो कै फटकार बेअसर होयगी दिखै। फटकार रो असर होंवतो तो मर नीं जांवतो? बण इणी खुसी में ताळी बजाई कै धर'र'र-धम्म कुए रै पींदै जा पड़्यो। कुए में पड़तां ई भूंगर रो हंसलो उडग्यो। इयां निभी फटकार। भूंगर री लोक सूं विदाई हुई पण उण रो साहित्य आज बी लोक में भंवै। आओ बांचां भूंगर रा कीं घेसळा-
(1)
बरसण लाग्या सरकणा, भीजण लागी भींत।
ऊंठ सरिसा बैयग्या, दाळ रो सुवाद आयो ई कोयनीं।।

(2)
गुवाड़ बिचाळै पींपळी, म्हे जाण्यो बड़बोर
लाफां मार्यो घेसळो, छाछ पड़ी मण च्यार।
लुगायां, कांदा चुगल्यो , चीणां री दाळ-सा।।

(3)
भूंगर चाल्यो सासरै, सागै च्यार जणां।
भली जिमाई लापसी, वा रै कस्सी डंडा।।

(4)
भिड़क भैंस पींपळ चढी, दोय भाजग्या ऊंठ।
गधै मारी लात री, हाथी रा दोय टूक।
लुगायां, लाठी ल्याओ , गूदड़ै में डोरा घालां।।

(5)
चूल्है लारै के पड़्यो, म्हे जाण्यो लड़लूंक।
पूंछ ऊंचो कर'र देखां, तो टाबरां री माय।।

(6)
चरड़-चरड़ फळसो करै, फळसै आगै दो सींग।
आगै जाय'र देखूं तो, कुतड़ी पाल्लो खाय।
चरणद्यो बापड़ी नै, गाय री जाई है।।

(7)
गुवाड़ बिचाळै गोह पड़ी, म्हैं जाण्यो गणगौर।
पूंछड़ो ऊंचो कर'र देखूं तो, दीयाळी रा दिन तीन ही है।।

आज रो औखांणो

मूंड मुंडायां तीन गुण, मिटी टाट री खाज।
बाबा बाज्या जगत में, खांधै मैली लाज।।

Monday, June 22, 2009

२३ - गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ कंवर तेजा रे!

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
- २३//२००९

गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ

कंवर तेजा रे!


-रामस्वरूप किसान

तेजोजी राजस्थान रा घणा चावा लोकदेवता। जकां री लोकगाथा एक लाम्बै गीत रै रूप में गाइज्यै। इण गाथा नै 'तेजो' कैइज्यै। तेजो अठै रा हाळी गावै। इण वास्तै गीत खेतीखड़ां अर हाळियां रो बाजै। गाथा मुजब ग्यारवीं सताब्दी में मारवाड़ रै नागाणै देस रै नागौर परगनै खरनाळ गांव में धोळिया जाट वंशज सरदार मोहितराव राज करता। मोहितराव रै बेटै थिरराव रै छठै बेटै रै रूप में संवत 1010 री भादवा सुद दसम नै तेजोजी जलम्या। मोहितराव खुद खरनाळ रा शासक होवता थकां आपरो घरू करसाणी काम खुद करता अनै आपरै बेटा-पोतां सूं करवाता। तेजोजी भी हाळी हा। कर्नल टॉड रै मुजब जाट एक जूझारू कौम है जकै खेती रै साथै-साथै आपरी वीरता रा प्रमाण दिया है। तेजो एक ड़ो चरितर है जको बहादुरी रै कारण मरुभोम रो लोकनायक अर पछै लोकदेवता बणग्यो। वीर, सच्चो, सीधो अर भोळो हुवै। बो चालतो भोभर में पग देद्यै। पराई लाय में कूद पड़ै। सांच नै पार लंघावण सारू उधारी लेयल्यै। सांच रै पाणै में लाठी लेय' कूद पड़ै। अर सुभ काम में बो मौको-बेमौको, नफो-नुकसान, जगां-बेजगां अर वेळा-कुवेळा कोनी देखै। साच री जीत सारू जूझणो वो आपरो धेय मानै। क्यूँकै वीर री फितरत में खुद रो उजाड़' दूजां रो बसावण री खासियत हुवै। कैबा है कै कायरां सूं जुग बसै पण जोधां री तो गाथा चालै। इसो एक जोधो हो तेजो, जको लावण तो गयो आपरी नुंवी-नकोर बीनणी, जकी बरसां सूं उणरी बाट जोवै ही अर बीड़ो चाब बैठ्यो लाछां गूजरी रो। जकी री गायां नै गुवाळियां सूं झांप' धाड़वी ले ज्यांवता। लाछां गळगळी होय' इमदाद मांगी। पछै देर क्यांरी! जोम अर जोस सूं तेजै रा गाबा फाटण लागग्या। गायां री वार चढ्यो। देखतां-देखतां खांडो लेय' धाड़वियां में कूद पड़्यो। सैंकड़ूं डाकुआं रा रुंड-मुंड उडाय' गायां नै आजाद कराई। पण घायल इसो हुयो कै तिंवाळो खाय' जमीं पर पड़ग्यो अर सदां-सदां सारू मरुभोम रै कण-कण में रळग्यो। सुरीली राग बण' हाळियां रै कंठां बसग्यो। जठै बसणो चइयै हो बठै बसग्यो। हां, बहादुरां रा घर तो दो जिग्यां हुवै। का कंठां में, का दिलां में। दूहो है-

बसणो दो'रो है दिलां, बसणो सो'रो चांद।
जे सुख चावै बास में, तो दिलां टापरो बांध।।

लोगां रै दिलां में बसणो सै सूं अबखो काम। पण तेजो बसग्यो। बो जमीं पर घर नीं बसा सक्यो। जमीं पर घर तो कायर बसावै। तेजो आपरी अखन कंवारी अर अबोट बीनणी नै चिता पर बिठाय'र साथै ई लेयग्यो। पण जद जेठ उतरै। असाढ लागै। पैली बिरखा रै साथै ऊंट रै राखड़ी बांध किरसो हळोतियै रो पैलो खूड ल्यावै। तो तेजो आपरी जोड़ायत रो हाथ थाम हवळै-हवळै आभै सूं खेतां में आय ऊतरै। हाळियां रै कंठां सूं राग बण निसरै-

गाज्यो-गाज्यो जेठ-असाढ कंवर तेजा रे!
लागतो ई गाज्यो है सावण-भादवो

धरती रो मंडाण मेह कंवर तेजा रे!

आभै री मांडण चमकै बीजळी

सुतो सुख भर नींद कंवर तेजा रे।

थारो
ड़ा साईनां बीजै बाजरो.....

ओ एक लांबो गीत है जकै में तेजै री छोटै रूप में गाथा है। आ गाथा भोत ई रोमांचक लोक सुर में गाईजी है। बियां ई लोकगीत में भोत ताकत हुवै। लोकगीत धरती रा प्राण हुवै। कुदरत नै देखण री आंख हुवै लोकगीत। प्रकृति जद गीतां में ढळै तो उणरो नुंवै सिरै सूं रचाव हुवै। गीत ई कुदरत में रस भरै। उण नै मीठी बणावै। अर गीत ई उणनै फुटरापो देय'र देखणजोग बणावै। इण अरथ में जद तेजो किरसाणां रै कंठां ढळै तो खेत संगीतमय बणज्यै। रेत रो कण-कण गांवतो-सो लखावै।

आज रो औखांणो

जरणी जणै तो रतन जण, कै दाता कै सूर।
नींतर रहजै बांझड़ी, मती गमाजै नूर।।

Monday, June 1, 2009

२ - मरुधर महिमा मोकळी, वरणन करी न जाय

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-//2009
मरुधर महिमा मोकळी,

वरणन करी जाय


-ओम पुरोहित 'कागद'

राजस्थानी भाषा बातां री धिरयाणी। बातां में बातां। पण बातां में तंत। तंत बी इत्तो कै अंत नीं। बोल्यां मूंडै मिठास। अंगेज्यां उच्छाब। अर बपरायां हिमळास। पण बोलण में सावचेती री दरकार। दुनिया में राजस्थानी ड़ी भाषा जकी में हरेक क्रिया सारू निरवाळा सबद। संज्ञावां रा न्यारा विशेषण। क्रिया अर संज्ञा सबदां री आपरी कांण। कांण राख्यां सरै। नींस अरथ रो अनरथ होय जावै।
राजस्थानी भाषा में फूल नै पुहुप कैइजै। जे आप कैवो कै म्हैं फूल ल्यायो हूं। तो बडेरो मिनख टोकसी कै फूल ल्या बडेरां रा। तो पुहुप का पुस्ब है। पटाखो फूटै नीं, छूटै। बंदूक बी चालै नीं, छूटै। भांडा साफ नीं करीजै, मांजीजै। फूस बुहारीजै अर झाड़ू काढीजै। मोती चमकै नीं, पळकै। ढोल ढमकै। बाजा बाजै। बंदोरो कढै नीं, नीसरै। विदाई नीं, सीख दिरीजै का लिरीजै। नेग दिरीजै-लिरीजै।
जिनावरां री बोली रा बी सबद न्यारा-न्यारा। डेडर डर-डर। चीड़ी चीं-चीं का चींचाट करै। कागलो कांव-कांव। घोड़ो हींसै। गा ढांकै। गोधो दड़ूकै। ऊंठ आरड़ै-गरळावै। भैंस रिड़कै। गधियो भूंकै। कुत्तो भूंसै। सांढ झेरावै। बकरियो बोकै।
जिनावरां रै बच्चियां रा नांव भी निरवाळा। कुत्तै रो कुकरियो, हूचरियो का कूरियो। सांढ रो टोडियो-तोडियो। भैंस रो पाडियो। भेड रो उरणियो। गा रो बछड़ियो, टोगड़ियो, लवारियो, केरड़ो। आं रा स्त्रीलिंग- कूरड़ी-हुचरड़ी, टोडकी-तोडकी, पाडकी, बछड़ती। डांगरां रा नांव ओज्यूं है। गा-बैडकी। भैंस-पाडी, झोटी। सांढ-टोरड़ी। घोड़ी-बछेरी।
पसुवां रै गरभ धारण करण रा बी पाखती नांव। भेड तुईजै। सांढ लखाइजै। गा हरी होवै। धीणै होवै, दूध रळै, नूंई होवै, कामल होवै, साखीजै, गोधै रळाइजै, गोधै भेळी करीजै। भैंस गड़ीजै। पाडो छोडीजै। पाळै आवै। घोड़ी ठाण देवै। आं नै काबू करण रा नांव भी न्यारा-न्यारा तरीका, न्यारा-न्यारा नांव। गा रै नाजणो-न्याणो। भैंस रै पैंखड़ो। घोड़ी रै लंगर। ऊंठ रै नोळ बीडणी। घोड़ी रै नेवर। बळधां रै दावणा देईजै।
राजस्थानी में उच्छबां रा। तीज-तिंवारां रा। मेळां-मगरियां रा। रीत-परम्परा सारू आपरा सबद। बनड़ो गाइजै। जल्लो गाइजै। चंवरी मंडै। हथळेवो जु़डै। घोड़ो घेरीजै। बारणो रोकीजै। सामेळो-समठूणी करीजै। तागा तोड़ीजै। पागा पूजीजै। ढूंढ माथै तेड़ीजै। जच्चा गाइजै। भाषा भाखीजै। कूंत करीजै। झाळ अर तिरवाळा आवै। होळी मंगळाइजै। बीनणी बधारीजै। कूं-कूं चिरचीजै। धोक लगाइजै। पगां पड़ीजै। जात लगाइजै। फेरी देइजै। झड़ूलो उतारीजै। चेजो चिणाइजै। माल-बस्त मोलाइजै। गांवतरो करीजै। खळो काढीजै। रळी आवै। चे़डा आवै। भूत बड़ै। बायरियो बाजै। पून चालै आंधी आवै।
इण बात माथै बांचो धोंकळसिंह चरला रो दूहो-
धन धोरा धन धोळिया, धन मरुधर माय।
मरुधर महिमा मोकळी, वरणन करी जाय।।

आज रो औखांणो

मीठो बोल्यां मन बधै, मोसौ मार्यां बैर।

मीठा बोलने से मन बढ़ता है, ताना मारने से बैर।

Tuesday, May 26, 2009

२७- सीस पड़ै पण पाघ नहीं

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२७//२००९
महाराणा प्रताप जयंती पर खास












सीस पड़ै पण पाघ नहीं

-सुलतानराम गोविंदसर

माता जयवन्ता बाई जिसी कूख सगळी मातावां नै नीं मिल्या करै। जे मिलती तो घर-घर राणाप्रताप होंवता। 27 मई, 1540 में महाराणा उदयसिंह रै घरां जळम्यो ओ टाबर मेवाड़ रै गिगनमंडळ में सूरज री भांत एकलो तप्यो अर चमक्यो। मुगल बादसाह अकबर रो तेज इण तेज नै नीं बेध सक्यो। अकबर रा दरबारी कवि प्रथ्वीराज राठौड़ जका पीथळ नांव सूं भी जाणीजै, लिख्यो-
माई, ड़ा पूत जण, जेड़ा राण प्रताप।
अकबर सूतो ओझकै, जाण सिराणै सांप।।
प्रताप कदेई दिल्ली दरबार में अकबर री हाजरी नीं भरी। उणांरो तरक हो कै मेवाड़ दिल्ली सूं कमती नीं। इणनै अधीन कुण कर सकै। आजादी रो ओ परवानो प्रताप मेवाड़ रो, आखै राजस्थान रो, आखै हिन्दुस्तान रो अणमोल मोती हो। कवि दुरसा आढ़ा लिखै-
अकबर पथर अनेक, कै भूपत भेळा किया।
हाथ न लागो हेक, पारस राण प्रतापसी।।
राणाप्रताप रो राजतिलक गोगुन्दा में 28 फरवरी, 1572 नै हुयो। सिंहासण पर बैठतांई दिल्ली री चालां सरू होगी। अकबर संधि करण अर अधीनता मानण सारू जलाल खां, मानसिंह, राजा भगवन्तदास अर टोडरमल नै भेज्या, पण प्रताप नीं डिग्यो। छेकड़ अकबर राजा मानसिंह नै सेनापति बणा'र मेवाड़ पर चढ़ाई कर दीनी। हळदी घाटी रो जुद्ध होयो। 18 जून, 1576 सूं सरू होवण आळै जुद्ध में मेवाड़ अकबर रै कब्जै में आ'ग्यो पण प्रताप हार नीं मानी। मेवाड़ रो महल तज नैं जंगळां में भटकणो मंजूर। प्रताप टूट सकै पण झुक नीं सकै। फेरूं आपरा जतन कीना। मांडल अर चितौड़ नै छोड़'र सगळा किला आपरै हक में कर लीना। चावण्ड नै आपरी नूंवी राजधानी बणाई।
चितौड़ सूं प्रताप रो घणो हेत। उणां नैं ओ दुखड़ो हरमेस बण्यो रह्यो कै वे आपरी मायड़भौम चितौड़ नै दुसमियां सूं मुगत नीं करा सक्या। चितौड़ री माटी नै फेरूं निंवण करण री आस पूरी नीं हो सकी। इण अधूरी आस रै साथै ई 19 जनवरी, 1597 में राणाप्रताप देवलोक व्हेग्या। मिनख चावै कितरो ई लूंठो होवै, बीखो सगळां में पड़ै। रणबांकुरै प्रताप रो मन भी एकर दुबळो पड़ग्यो, पण वां रा मित्र कवि प्रथ्वीराज राठौड़ उणां में फेरूं वीरता रो भाव भर दियो अर मेवाड़ रो ओ शेर पाछो दहाड़ मारण लागग्यो।
कवि कन्हैयालाल सेठिया आपरी कविता 'पातळ अर पीथळ' में आं भावां नै सजीव कर दीना-
हूं रजपूतण रो जायो हूं, रजपूती करज चुकाऊंला।
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं, दिल्ली रो मान झुकाऊंला।।
राणा रै साथै राणा झाला अर भामाशाह रो नांव भी इतिहास में अमर है। राणा प्रताप जद रणभोम में घायल होग्या तो राणा झाला उणांरो छत्र आपरै मस्तक पर धारण कर लीनो। राणा प्रताप री जान तो बचगी पण झालाजी आपरै इण बळिदान सूं इतिहास में अमर हुया। हळदी घाटी रै जुद्ध रै पछै जद राणाजी रो खजानो खाली होग्यो तो भामाशाह आपरो सो कीं राणाजी नै अर्पित कर दीनो। त्याग, शौर्य, देशभक्ति अर आजादी री आ मिसाल फगत राणाप्रताप अर मेवाड़ में ही मिलै। क्यूं नां जयवन्ता बाई जिसी कूख हिन्दुस्तान री सगळी मातावां नै मिलै। वां री कीरत में कवियां वगत-वगत पर सांतरा छंद कैया। कवि केसरीसिंह बारहठ महाराणा फतहसिंह नै चेतावणी रा चूंगट्यां में भी लिख्यो-
पग-पग भम्या पहाड़, धरा छांड राख्यो धरम।
महाराणा'र मेवाड़, हिरदै बसिया हिंद रै।।

राणा प्रताप जिकी भाषा में हुंकार भरता। वा भाषा भी आज मान सारू बिलखै है। आओ, राणा प्रताप री मायड़भाषा राजस्थानी नै सांचो मान दिरावां।

Monday, May 25, 2009

२७ मई,- पातळ अर पीथळ

२७ मई
महाराणा प्रताप जयंती पर खास

पातळ अर पीथळ

-कन्हैयालाल सेठिया


महाराणा प्रताप

राजस्थानी रा सिरै नांव कवि अर मनीषी कन्हैयालाल सेठिया री 'पातळ अर पीथळ' नामी अर चावी कविता है। आ कविता १९४२ में लिखीजी। उण वगत अंग्रेजां रो राज हो अर गांधीजी री पुकार 'करो या मरो' रै साथै देस रा सगळा नेतावां नै जेळ में ठूंस दिया हा अर जनता में घणी उदासी अर निरासा फैलगी ही। उण संदर्भ नै ध्यान में राख'र देस री जनता नै चेतावण सारू सेठिया आजादी रै रखवाळै महाराणा प्रताप रै इण इतियास कथा-प्रसंग नै लेय'र आ कविता लिखी। आ कविता इत्ती चावी बणी कै राजस्थानी रा लूंठा विद्वान प्रो. नरोत्तमदास स्वामी इणरी दस हजार प्रतियां छपवा'र आखै राजपूतानै री रियासतां में भिजवाई। रावत सारस्वत इण कविता रो अंग्रेजी अनुवाद ही करियो। 'पातळ-पीथळ' राजस्थानी भोम रै स्वाभिमान, गौरव, अठै री मान-सम्मान अर वीरता री भावना नै सांगोपांग ढंग सूं प्रगटै। इण ओजस्वी रचना में आपणी संस्क्रति री मरजादा अर माठ-मरोड़ री भावना छिप्योड़ी है। आ रचना राजस्थानी री घणी चावी अर अमर रचना है।

पातळ'र पीथळ

अरै घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड़्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैरयाँ री खात खिंडावण में,
जद याद करूं हळदी घाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूं
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूं
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै
मै'लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाळ्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड़्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूं दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो' सपनूं सो सांचो,
पण नैण करयो बिसवास नहीं जद बांच बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैरयाँ रै मन रो कांटो हो बीकाणूं पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्हे बांध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपूती खून रगां में है?
जद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाल संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊंची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही, बोल्यो अकबर,

म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवैलो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो,

म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवैलो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवैलो,

म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ राणा नै लिख भेज्यो, आ बात कठै तक गिणां सही?

पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आंख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूं कायर हूं
नाहर री एक दकाल हुई,

हूं भूख मरूं हूं प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूं घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूं रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नहीं दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादळ री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तरवार थकां
कुण रांड कवै है रजपूती?
म्यानां रै बदळै बैरयाँ री
छात्यां में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकैलो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्यां ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूं अथक लड़ूंला अकबर स्यूं
उजड़्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।

पातळ=प्रताप। पीथळ=कवि पृथ्वीराज राठौड़ जका महाराणा प्रताप रा साथी अर अकबर रै दरबार रा नवरतनां में सूं एक हा। अमरयो=महाराणा प्रताप रो बेटो अमरसिंह। चेतकड़ो=राणा प्रताप रो घोड़ो। बाजोट=जीमण सारू बणी काठ री चौकी। आडावळ=अरावली। पण=प्रण। कूकर=कुत्तो। कड़खो=विजयगान।

Friday, May 22, 2009

२३ मतीरा -कन्हैयालाल सेठिया

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख
-२३//२००९












मतीरा


-कन्हैयालाल सेठिया

मरू मायड़ रा मिसरी मधरा
मीठा गटक मतीरा।

सोनै जिसड़ी रेतड़ली पर
जाणै पन्ना जड़िया,
चुरा
सुरग स्यूं अठै मेलग्यो
कुण इमरत रा घड़िया?


आं अणमोलां आगै लुकग्या
लाजां
मरता हीरा।

मरू
मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।


कामधेणु रा थण ही धरती
आं में दूया जाणै,
कलप बिरख रै फळ पर स्यावै
निलजो सुरग धिंगाणै।*

लीलो कापो गिरी गुलाबी
इंद्र सा लीरा।
मरू मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा गटक मतीरा।


कुचर कुचर नै खपरी पीवो
गंगाजळ सो पांणी,
तिस तो कांईं चीज, भूख नै
ईं री घूंट भजाणी,

हरि-रस हूंतो फीको,
ओ रस,
जे पी लेती मीरां!
मरू
मायड़ रा मिसरी मधरा

मीठा
गटक मतीरा।

*कलप वृक्ष के फल पर स्वर्ग तो बेवजह ही गर्व करता है, इससे कहीं बेहतर फल तो मतीरा है जो धोरों में पैदा होता है।

आज रो औखांणो

मतीरा तो मौसम रा ई मीठा लागै।
अवसर के अनुकूल ही बात सुहानी लगती है।


Thursday, May 21, 2009

२२ बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा

आपणी भाषा-आपणी बात तारीख-२२//२००९

बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा


विनोद कुमार सहू रो जलम जुलाई 1984 में नोहर तहसील रै उज्जळवास गांव मांय हुयो। आजकाल 4 एमएसआर सरदारगढ़िया मांय अध्यापक। राजस्थानी में लिखण-पढ़ण रो डाडो कोड। पत्र-पत्रिकावां मांय रचनावां छपती रैवै।

-विनोद कुमार सहू
कानाबाती-9460191607

पणी धरती में मोत्यां-रतनां री कमी नीं। अठै कण-कण में सोनै अर सुगंध रो वास। इण धरती पर जद सावण री काळी बादळी गरजै-बरसै तो हरियाळी मुळकै। सावण री फुहारां साथै ई खेतां में बीजारो पड़ज्यै। थोड़ै दिनां में ई खेतां में गुंवार, बाजरी, मूंग, मोठां रै साथै ई काकड़िया-मतीरां री रळक पड़ै। आ हराळ देख किरसाण रो काळजो ठण्डो होज्यै। जीवण में सुख-स्यांति-सी बापरज्यै।
मतीरो धोरां रो अमरफळ। दिनूगै पैलां ईं री लाल-लाल गिरी रो भोग लगावां तो देवतावां रै मूंडै ई लाळ पड़ण लागै। कई ग्यानी मिनख मतीरै रो रंग देख'र ई बीं रो हाल बताद्यै कै बो काचो है'क पाको। बडै मतीरै नै फोड़'र खपरिया बणाइज्यै जिकै नै चीर'र सिफळिया बणावै। छोटा टाबर सिफळिया खावै तो बडोड़ा खपरिया सूंतै। कैबा चालै-
खुपरी जाणै खोपरा, बीज जाणै हीरा
बीकाणा थारै देस में, मोटी चीज मतीरा।।
आपणै अठै एक कैबा और है कै गादड़ै री उंतावळ सूं मतीरो नीं पाकै। गादड़ अर मतीरै रो जूनो नातो। कई भोळा मिनख जिका मतीरै रो मोल नीं पिछाणै, बै ईं नै गादड़ रो खाजो कैवै। पण स्याणा मिनख मतीरै नै चोखा दिनां ताईं राखण सारू तू़डी में दबा'र राखै। जद दीवाळी रो त्यूंहार आवै, इण मतीरै री गिरी निकाळ'र इण में बेजका कर देवै अर रात रै टेम टाबर इण में दीवो मेल'र गळी-गळी अर घर-घर फिरै। दीवै में तेल घलावै। दुआ देवै- घालो तेल, बधै थारी बेल। रात नै ओ मतीरो बिजळी सूं जगमगाट करतो हवामहल-सो लागै। पण आजकाल इस्या नजारा देखण नै कम ई मिलै। मतीरो बारामासी राखीजै। होळी मंगळावै जद ईं नै होळी री झळ मांखर काढै। मानता है कै इयां कर्यां आगलै साल जमानो चोखो होवै।
जको मतीरो खेत में बिना बीज्यां ई पणपै, बीं नै अड़क मतीरो कैवै। जिकै नै अड़क मतीरो खाण री बाण पड़ज्यै बीं रो तो राम ई रुखाळो। कैबा चालै, हिली-हिली गादड़ी अड़क मतीरा खाय। मतीरो इतणो मीठो अर स्यान री निशानी हुवै कै ईं नै लेय'र राजघराणां मांय भी राड़ छिड़गी। बीकानेर अर नागौर राजघराणै बीच 1544 ई. में एक मतीरै नै लेय'र तलवारां खिंचीजगी, इस्या हवाला मिलै।
मतीरै रै साथै-साथै इण रा नाती काकड़िया अर टींडसियां री लंगाटेर होवै। मतीरै रै काचै फळ नै लोइयो कैवै अर ईं री सबजी घणी सवाद बणै। मतीरै रा बीज भूंद-भूंद'र खाइज्यै। गिरी मिनख खावै तो खुपरी पसुवां रो सांतरो खाजो। आपणी ईं धोरां री धरती में और भी इसी भोत-सी चीजां दबियोड़ी है जकी नै आपां जबान नीं दे सकां। आं रै मोल नै सबदां में बांधणो ओखो काम। मतीरै रै मोल रो अंदाजो इण बात सूं लगायो जा सकै कै जद कोई सांतरै मिनख का कोई सांतरी चीज रो अचाणचक ठाह पड़ै तो कैइज्यै, 'भाई, ओ तो बूरे़डो मतीरो लाधग्यो।'

आज रो औखांणो
मतीरो भांणा में आयां पछै सासरा में मती-रो।
मतीरा थाल में आ जाय तो फिर ससुराल में मत रहो।
कहावत है कि जब दामाद के थाल में मतीरा आ जाय तो उसे वहां नहीं रहना चाहिए। सामंती शासन में जिस व्यक्ति को सेवामुक्त करना होता उसे मतीरा थमा दिया जाता। वह तुरंत सोच लेता कि उसे नौकरी से निकालने का आदेश मिल गया है।


Wednesday, May 20, 2009

२१ नातां-बातां री रमझोळ

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २१//२००९

नातां-बातां री रमझोळ

-ओम पुरोहित कागद

नातां-रिस्तां री रमझोळ फगत राजस्थानी भाषा में। रिस्तां री झणकार। झणकार में टणका। कदैई मीठा। कदैई चरपरा। पण नाता-रिस्ता सरजीवण राखण सारू मैताऊ। सुणावणियो सुणाय'र राजी। सुणणियो सुण'र।
मा री ठौड़ जग में सैं सूं ऊंची। पण मासी कम नीं। मा सी ई होवै मासी। मासी सागै भाणजा रमै। हाँसी करै। खारी कैवै। पण मासी नै भावै। एक भाणियो मासी नै कैवै- मासी ओ मासी, तन्नै काळा कुत्ता खासी, तन्नै भाणजो छु़डासी। मासी मुळकै। भाणियै रै लारै भाजै। मासी ने़डी आवै जद भाणियो आपरा सबद पाछा लेवै- मरो मा, जीवो मासी। दूध नीं तो, छाछ पासी।।
सासू-बू रा झगड़ा तो जग जाहर। फळ रो पाछो फूल बण सकै पण सासू-बू में बणनी दोरी। सासू नै बू बुरी लागै तो बू नै सासू। इणी खातर कैईजै- 'सासू तो माटी री बुरी।' आ बी कैईजै कै हाथी पाळणो सोरो, बू परोटणी दोरी। बू माथै सासू रा टणका न्यारा ई। माड़ो काम कुण करियो। सासू बोलै, कूघरां री जाई... छाटियै री बू। कोई गळत काम होंवता ई मैणो त्यार। बहुवां कनू चोर मरावां, चोर बहू रा भाई। पण आ भी कैबा कै सासू बिना के सासरो, नदी बिना के नीर। बैन सारू कैईजै- बैन हांती री धिराणी है, पांती री नीं। मामा रा कोड करतो भाणियो बोलै। मा सूं मामो चोखो। मा में एक पण मामा में दो-दो भायां सारू औखांणो है- रैवणो भायां में, हुवो चावै बैर ई। बैठणो छाया में, हुवो चावै कैर ई। भाई हुवै तो बावड़ै, गया बेगाना छड्ड। भाई बेटी ई नीं परणीजै, बाकी कीं नीं छोडै। भाई मर्यै रो धोखो नीं, भौजाई रो नखरो तो भंग्यो!
राजस्थानी संस्कृति में जुवाई जम बरोबर मानै। लाडां-कोडां सूं पाळ्योड़ी छोरी नै उणी भांत ले ज्यावै, जिण भांत जम सरीर सूं आदमी नै। एक ओखाणो है- सिंघ नीं देख्यो, तो देख बिलाई। जम नीं देख्यो, तो देख जंवाई।। ढुकाव री घड़ी गीत गाइजै। आं गीतां में मसखरी होवै। बात-बात में चूंठिया बोडीजै-
सात सुपारी लाडा सिंघाड़ां रो सटको।
ओछा ल्यायो जानी, लाडी क्यांरो करसी गटको।।
राजस्थानी सगै नै लडाइजै-कोडाईजै। पण जान में ढूक्योड़ा सगां ने गीतां में गाळ्यां काढीजै। ऐ कोडायती गाळ्यां बजै। सगा सुण-सुण राजी हुवै। उथळा देवै। सग्यां गावै- सगो जी री लीला न्यारी, ऐ तो बोल्यां घणी बणावै रै, ऐ तो सेखी घणी बतावै रै आं सूं राम बचावै रै। दूजी गावै- पांच बरस रा सगो जी, बीसां ढळ गई सगी जी। सग्यां भेळी गावै-थे सगा जी म्हारा आया, मोटा म्हारा भाग, थे सगा जी थारै माथै धरल्यो पाग, लाजां मरगी ओ थारो उगाड़ो माथो, नीं तो थारै टोपी आळो खीलो। इण गीत में सगा उथळो देवै। वाह! वाह, सगी जी वाह!! सग्यां पाछी फिरै- बोल्यो रै बोल्यो, गाळ्यां रै कारण बोल्यो, कैण कैयो सो बोल्यो, माळजादी रा। पै'र सगी जी रो घाघरो, सग्यां में आटो पीसै रै। सगा बोलै-हूं। सग्यां घिरै-हूं रे हूं, थारै घाघरियै में जूं, थारी मा रो मांटी हूं, कैण कैयो सो बोल्यो, माळजादी रा।
इणी भांत मोकळा ई चूंठियां, गाळ्यां, आड्यां, बंध अर आण गाईजै। कैईजै। बकारीजै। आं सगळां में अपार रस। रिस्ता नै ने़डा करण रो सामरथ। घर-आंगणै में बी औखांणा कैईजै। बाबो मर्यो गीगली जाई, रैया तीन गा तीन। दादी रो चू़डो फूट्यो सुवासण्यां नै सीरो भावै। बेटी जाई रै सुब राज, उण रा होया नीचा हाथ। काको-काकी लारै-बाकी म्हारै लारै। टाबरिया ई घर बसावै, तो बाबो बूढळी क्यूं ल्यावै। काको ल्यायो काकड़ी, काकी गाया गीत, काकै मारी लात गी, काकी गावै गीत। लुगाई रो न्हावणो-मरद रो खावणो। तिरिया रै दो आसरा-का पीहर का सासरा। तिरिया तेरै-नर अठारै। लुगाई भली लुकाई। भलाई रांड कुत्तां री बहू। दादी परणी तो दोहिती नै फेरा भावै। जच्चा जिस्या बच्चा। बेटी अर बळद जूवौ नीं न्हाखै।

Tuesday, May 19, 2009

२० मटकी महाजन की

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २०//२००९

मटकी महाजन की



मुकेश रंगा रो जलम 23 जुलाई, 1983 नै बीकानेर जिलै रै महाजन कस्बै में हुयो। आजकाल महाजन सूं दैनिक भास्कर सारू समाचार संकलन करै। राजस्थानी मोट्यार परिषद् रा जुझारू कार्यकर्ता।



-मुकेश रंगा
कानाबाती- 9928585425


जेठ महीनै सुरजी करड़ा तेवर दिखावै। तावड़ो घणो आकरो। लूवां बाजै। परसेवा सूं हब्बाडोळ जातरी रा कंठ सूखै। होठां फेफ्यां आ ज्यावै। पग आगीनै कोनी धरीजै। इण हालत में जे खुदोखुद भगवान सामी आय'र इंछा पूछै तो जातरी महाजन री मटकी रै ठण्डा पाणी रो लोटो ही मांगै।
महाजन बीकानेर राज्य रो अधराजियो। इतिहास री दीठ सूं जूनो गांव। राष्ट्रीय राजमारग संख्या 15 माथै बीकानेर सूं 110 किलोमीटर अळगो बसियोड़ो। अठै री मटकी जग में नांमी। जिण री तासीर घणी ठण्डी। पाणी ठण्डो टीप। सुवाद ई सांतरो। सांचाणी इमरत। इण रो कारण अठै री माटी। कूंभांर माटी नै रळावै। पगां सूं खूंधै। चाक माथै चढावै। हाथ सूं थापै। न्हेई में पकावै। रंगीळ मांडणा मांडै। इण ढाळै आपरो कड़ूंबो पाळै अर दुनियां नै ठण्डो पाणी पावण रो जस लूटै। ऐड़ी मटकी रो पाणी पीयां कल्याणसिंह राजावत रो ओ दूहो मतै ई चेतै आवै-
इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी ले मना, होज्या ब्रह्मा समान।।
कोई इणनै गरीब रो फ्रिज कैवै तो कोई देसी फ्रिज। फ्रिज खरीदणो हरेक रै बूतै री बात नीं, पण महाजन री मटकी फ्रिज री भोळ भानै। इणरो पाणी फ्रिज करतां नीरागो भळै। आखै संभाग में लोग गरमी सरू हुंवता ई महाजन री मटकी बपरावै। रेलगाड़ी का बस सूं महाजन हूय'र जांवता जातरी अठै री मटकी ले जावणी कोनी भूलै। भाई-बेलियां अर सगा-परसंगियां नै तो अठै रा लोग खुदोखुद पुगा देवै।
मटकी रा न्यारा निरवाळा रूप। जद कूंभार रा कामणगारा हाथ चाक माथै चालै तो गांव गुवाड़ री जरूरत मुजब भांत-भंतीली रचनावां रचीजै। इण नै आंपा घड़ो, हांडकी, मंगलियो, लोटड़ी, झारी, मटकी, कुलड़ियो, झावलियो, परात, बिलोणो, चाडो, ढक्कणी, आद रूपां में ओळखां अर घर-घर नित बरतां। कूंभांर रो समूचो परवार मटकी बणावणै में लाग्यो रैवै। कोई माटी कूटै तो कोई न्हैई खातर बासते रो बन्दोबस्त करै। कोई मटकी पकावै तो कोई मांडणा मांडै। इण ढाळै मटकी री रचना हुवै।
कल्याणसिंह राजावत रो ई एक और दूहो बांचो सा!
घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखांण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पांण।।

आज रो औखांणो

घड़ै कूंभार, बरतै संसार।
घड़े कुम्हार, बरते संसार।


कलाकृति का सृष्टा तो एक ही होता है, पर उसका आनन्द लेने वाले बहुतेरे।

Monday, May 18, 2009

१९ आधी रोटी काख में सुसियो लिटै राख में

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १९//२००९

आधी रोटी काख में

सुसियो लिटै राख में

-डॉ. मंगत बादल

'आडी' यानी तिरछी या टे़ढी! मतलब जकी सीधी नीं हुवै। आडी अर पहेली नै बिंया तो पर्यायवाची मानै पण इण में फरक। पहेली रो उत्तर जठै एक सबद में हुवै 'आडी', एक छोटी कविता (RHYNE) जिण नै टाबर एक-दो बार सुणतां ईं याद कर लेवै। एक तरां री समस्या पूर्ति रो ई बीजो रूप। लारली सदी रै पांचवै-छठै दसक में जद टेलीविजन रो प्रवेश गांवां में कोनी हो, रात नै टाबर सोणै सूं पैली पहेली पूछता मतलब आडी आडता। घर में जितरा टाबर होंवता बै आपरी दो टोळियां बणा लेंवता अर पछै आडी आडण रो कार्यक्रम सरू! जको दळ जवाब नीं दे सकतो बो हार ज्यांवतो।
समाज में इण आडियां रो चलण परापरी सूं चालतो आयो। आज सोच'र हैरानी हुवै कै जद गांवां में आज री भांत स्कूल कोनी होंवता। गांव में कोई एक-दो मिनख मुस्कल सूं एड़ा मिलता जिकां नै आखर-ग्यान होंवतो, पण इण रै बावजूद व्यावहारिक शिक्षा री कमी कोनी ही। टाबरां रै मनोविग्यानिक विकास में आं आडियां अर पहेलियां रो पूरो योगदान होंवतो। हिसाब-किताब रा चालू गुर अर नीति री बातां रो ग्यान भी आडियां में मिलै। अचूम्भै री बात है ड़ो पाठ्यक्रम कुण त्यार करतो?
टाबर री तर्क बुधी रो विकास करणै तांईं अर कविता मुजब बां में जिज्ञासा जगावणै रा एड़ा छोटा-छोटा प्रयास लोक में चालता ई रैंवता। आडी में भी एक छोटी-सी कविता हुवै। एक आडी है- सुसियै नै बाळी पै'रावणो-
खड़बच पींडी, खड़बच बाण,
रै सुसिया करां निनाण,
करतां-करतां आई दीवाळी,
रे सुसिया पै'रां बाळी।
कुण तो इण कविता रो रचण वाळो अर इण रो उद्देश्य कांईं? तो जबाब है कै ऐड़ी बेशुमार कवितावां (RHYNE) लोक ई रची अर उद्देश्य भी टाबरां नै शिक्षा देणो। टाबर तुकबंदी करणो किण भांत सीखता, आं छोटी-छोटी कवितावां सूं ठा पड़ै-
भूरी भैंस नै पढ़ाद्यो-

आधी रोटी पर कढ़ी।
भूरी भैंस पढ़ी।

सुसियै नै राख में लिटाद्यो-

आधी रोटी काख में।
सुसियो लिटै राख में।

टाबर सैं सूं पैली मायड़-भाषा सीखै अर आप रै आळै-दुआळै रै वातावरण नै देख्यां-समझ्यां बीं री समझ भी बधै। आं छोटी-छोटी कवितावां में रोटी, भैंस, कढ़ी अर सुसियो बीं रा देखे़डा हुवै। इण कारण बीं रै स्मृति-पटळ पर ऐ बातां सदां-सदां खातर मंड जावै। अब म्हारो ओ बताणो कांईं मायनो राखै कै मायड़-भाषा में शिक्षा देणो टाबर तांईं कितरों फायदेमंद हुवै। घर में राजस्थानी, समाज में हिंदी अर स्कूल में जाय'र जद 'एक्स' फोर 'जायलोफोन', 'वाई' फोर 'याक' अर 'जैड' फोर 'जेबरा' भणै तो बो मासूम रट तो लेवै, पण इण मुजब इतरो ई जाणै कै इणां री तस्वीर बीं रै कायदै में मंडेडी हुवै।
आज जै़डी बातां प्रतियोगितात्मक परीक्षावां में पूछी जावै, बै भी इण आडियां अर पहेलियां में पूछी जांवती। एक पहेली है-
थांरै साळै रो साळो
बीं रो डावो कान काळो
बीं रै भाणजै री भूवा
थां रै कांई लागी?
जवाब-घरआळी या साळी।
इणी' भांत किणी ऊंट रै सवार सूं पूछ्यो-
अरे! ऊंट रा सवार,
थांरै सागै जिकी नार
थां री बै' है या बेटी?
बै' या बेटी नै ऊंट रै आगलै आसण बिठांवता। पूछणियै देख' कैयो। पण जबाब मिल्यो-
ना म्हांरी बै', ना बेटी,
इण री मां अर म्हारी मां,
है दोन्यूं मां-बेटी।
थे कोई पेच भिड़ाओ!
म्हांरै लागै कांईं? सोच' बताओ!
जवाब-भाणजी।
लोक इण भांत शिक्षा दे देंवतो। कैयो है- कान कटै बो कै़डो सोनो? विद्या नै भी मिनख रो सिणगार मानै, पण जद म्हूं छोटै-छोटै नौनिहालां नै भारी-भरकम बस्तो चक्यां देखूं तो सोचूं- कद हुवैलो म्हांरी शिक्षा में सुधार?

आप लोगां नै दैनिक भास्कर रो कॉलम आपणी भासा आपणी बात किण भांत लाग्यो?