Tuesday, May 19, 2009

२० मटकी महाजन की

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २०//२००९

मटकी महाजन की



मुकेश रंगा रो जलम 23 जुलाई, 1983 नै बीकानेर जिलै रै महाजन कस्बै में हुयो। आजकाल महाजन सूं दैनिक भास्कर सारू समाचार संकलन करै। राजस्थानी मोट्यार परिषद् रा जुझारू कार्यकर्ता।



-मुकेश रंगा
कानाबाती- 9928585425


जेठ महीनै सुरजी करड़ा तेवर दिखावै। तावड़ो घणो आकरो। लूवां बाजै। परसेवा सूं हब्बाडोळ जातरी रा कंठ सूखै। होठां फेफ्यां आ ज्यावै। पग आगीनै कोनी धरीजै। इण हालत में जे खुदोखुद भगवान सामी आय'र इंछा पूछै तो जातरी महाजन री मटकी रै ठण्डा पाणी रो लोटो ही मांगै।
महाजन बीकानेर राज्य रो अधराजियो। इतिहास री दीठ सूं जूनो गांव। राष्ट्रीय राजमारग संख्या 15 माथै बीकानेर सूं 110 किलोमीटर अळगो बसियोड़ो। अठै री मटकी जग में नांमी। जिण री तासीर घणी ठण्डी। पाणी ठण्डो टीप। सुवाद ई सांतरो। सांचाणी इमरत। इण रो कारण अठै री माटी। कूंभांर माटी नै रळावै। पगां सूं खूंधै। चाक माथै चढावै। हाथ सूं थापै। न्हेई में पकावै। रंगीळ मांडणा मांडै। इण ढाळै आपरो कड़ूंबो पाळै अर दुनियां नै ठण्डो पाणी पावण रो जस लूटै। ऐड़ी मटकी रो पाणी पीयां कल्याणसिंह राजावत रो ओ दूहो मतै ई चेतै आवै-
इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी ले मना, होज्या ब्रह्मा समान।।
कोई इणनै गरीब रो फ्रिज कैवै तो कोई देसी फ्रिज। फ्रिज खरीदणो हरेक रै बूतै री बात नीं, पण महाजन री मटकी फ्रिज री भोळ भानै। इणरो पाणी फ्रिज करतां नीरागो भळै। आखै संभाग में लोग गरमी सरू हुंवता ई महाजन री मटकी बपरावै। रेलगाड़ी का बस सूं महाजन हूय'र जांवता जातरी अठै री मटकी ले जावणी कोनी भूलै। भाई-बेलियां अर सगा-परसंगियां नै तो अठै रा लोग खुदोखुद पुगा देवै।
मटकी रा न्यारा निरवाळा रूप। जद कूंभार रा कामणगारा हाथ चाक माथै चालै तो गांव गुवाड़ री जरूरत मुजब भांत-भंतीली रचनावां रचीजै। इण नै आंपा घड़ो, हांडकी, मंगलियो, लोटड़ी, झारी, मटकी, कुलड़ियो, झावलियो, परात, बिलोणो, चाडो, ढक्कणी, आद रूपां में ओळखां अर घर-घर नित बरतां। कूंभांर रो समूचो परवार मटकी बणावणै में लाग्यो रैवै। कोई माटी कूटै तो कोई न्हैई खातर बासते रो बन्दोबस्त करै। कोई मटकी पकावै तो कोई मांडणा मांडै। इण ढाळै मटकी री रचना हुवै।
कल्याणसिंह राजावत रो ई एक और दूहो बांचो सा!
घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखांण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पांण।।

आज रो औखांणो

घड़ै कूंभार, बरतै संसार।
घड़े कुम्हार, बरते संसार।


कलाकृति का सृष्टा तो एक ही होता है, पर उसका आनन्द लेने वाले बहुतेरे।

1 comment:

  1. महाजन री मटकी माथे मुकेश रंगा रो सांतरो लेख बांच्यो.
    मोकळी बधाई
    -मदन गोपाल लढा
    महाजन

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