Sunday, May 10, 2009

११ सुरंगी रुत आई म्हारै देस

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- ११//२००९

सुरंगी रुत आई म्हारै देस

भलेरी रुत आई म्हारै देस

राजस्थानी लोकगीतां में करसै रो पूरो जीवण गाईज्यो है। खेती रो कोई काम इस्यो नीं, जिण साथै एक या एक सूं बेसी गीत नीं जु़ड्या होवै। सू़ड करण सूं लेय'र अन्न घर पुगावण तांईं रा सगळा प्रसंग गीतां सूं गुंजायमान। ऐ गीत मैनत नै सरस बणावण में असाधारण भूमिका निभावै। करसै रो मन गीतां री राग में इतरो रम जावै कै वो आपरो थकेलो भूल लगोलग मैणती जीवण रो आणंद लेवै। खेती रै गीतां री रस-धारा नेह री जळ-धारावां रै सागै बैवै। इण बगत जीव-जगत आणंद सूं विभोर हो जावै। करसां सारू तो ओ अवसर जीवण रो आधार। अंतस रो राग अपणै आप गूंज उठै-
सुरंगी रुत आई म्हारै देस।
भलेरी रुत आई म्हारै देस।।
मोटी-मोटी छांट्यां ओसर्यो बादळी
तो छांट घड़ै कै मान, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
मुन्याणो-मोज्योणो सै भर्या बादळी
तो धोळपाळियो ठेलमठेल, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
यो कुण बावै बाजरो बदळी
यो कुण बावै हरिया-मोठ, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
ईसरराम बावै बाजरी बदळी
तो कान्हीराम बावै हरिया-मोठ, मेवा-मिसरी
सुरंगी रुत आई म्हारै देस
भलेरी रुत आई म्हारै देस।
म्हारै देस मांय सुरंगी रुत आई है। म्हारै देस मांय बड़ी भली रुत आई है। अरे बादळी! थूं घणी मोटी-मोटी छांटां रै रूप में बरस रैयी है, एक-एक बूंद एक घड़ै बरोबर है। म्हारै देस मांय मेवा अर मिसरी रै समान सुरंगी रुत आई है। मुन्याणो अर मोज्याणो नाम रा कच्चा तळाव पूरा भरग्या अर धोळपाळियो नाम रो पक्को तळाव ऊपर तांईं लबालब भरग्यो है। ईसरराम बाजरो अर कान्हीराम हरिया-मोठ बोय रैयो है।
हाळी हळ पर हाथ राखण रै साथै ई गीत री टेर चकै तो बा टेर खेत रूखाळी सूं लेय'र खळै तक बीं रो साथ देवै। ऐ गीत अन्न रै साथै पाकै। अन्न रै कस मांखर बाळ-कंठा बासो करै। गुवाड़ में रमै। लुगायां रै कठां बसै। चानणी रातां में चूंतरियां पर ऐ गीत गूंजै तो गांव री गळी-गळी गुलजार व्है जावै।

आज रो औखांणो

सूखै घसीजै हळबांणी, आलै घसीजै चवू।
सांवण घसीजै डीकरी, काती घसीजै बहू।।

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