Monday, May 11, 2009

१२ सासरै रो स्नान

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १२//२००९

सासरै रो स्नान

-श्यामसुंदर वर्मा


म्हारै पड़ोस में एक बुजुर्ग रैवै। बां नै म्हे ताऊ कैवां। ताऊ रा किस्सा बड़ा ही रोचक। लारलै दिनां सासरै गया। बठै बां नै सांप खाग्यो, पाछा आया जद बस एक ई रट- 'सासरै गो स्नान गोगो धुकावै'। मैं पूछ्यो- ताऊजी आ के ब्याधी है? सावळ बताओ। बां किस्सो बतायो कै बेटा, तन्नै के बताऊं, मेरो सासरो बागड़ में है, बठै घर-घर पाणी गो कनैक्शन तो है कोनी। तो ईं दिसंबर गै महीनै में मेरा साळा मनैं नहर पर नुहाण लेग्या, पाळो इत्तो तकड़ो हो कै नहर भी ठंड सूं कांपण लागी। मैं बेटा दीर्घ शंका गो निवारण कर'र नहर गै पाणी सूं हाथ धोण लाग्यो तो बित्तो-बित्तो हिस्सो ही सुन्न पड़ग्यो। मैं थूक गिटगे साळै नै पूछ्यो कै इत्तै ठंडै पाणी सूं न्हाणो पड़सी? तो बो बोल्यो फेर के अठै गिजर लागर्यो है। थे डटो मनां, पाणी एकर-एकर ही ठंडो लागै है, फेर तो सैहणै पड़ज्या है। मैं सोच्यो सैहणै तो के, फेर शरीर सुन्नो पड़ज्यै है। इत्तै में छोटो साळो बोल्यो- भीया, मैं तो बैनोई जी गो कच्छो अर बनियान ल्याणो ही भूलग्यो। मैं मां ही मां राजी होयो कै चलो अब तो न्हाणै सूं गैल छूटी। पण बो मरज्याणो बीच आळो साळो बोल पड़्यो कै अरै छोटू, तेरो तैमल देदे। छोटै साळै सूं तैमल ले'र मनै दे'र बोल्यो- ल्यो, तैमल बांध'र न्हाल्यो, पण तैमल थोड़ो सावळ बांध लेईयो। पाणी गो बहाव थोड़ो तेज है। तो बेटा, मैं मेरा सारा कपड़ा तो दिया खोल अर तैमल लियो लपेट, ले गै राम गो नाम नहर में कूदग्यो, अब बेटा, एक तो पाणी डाडो ठंडो अर तूं जाणै ई है, ऊपर सूं मैं थोड़ो मदरो, पग जद तळै लाग्या तो सिर डूबग्यो। सिर बारै काड्यो तो तळो छूटग्यो। ईं उछळ-कूद में मैं पाणी गै मां कीं चाल्यो जांवतो देख्यो तो संभाळ्यो तो पतो चाल्यो कै तैमल जी तो गया।
फेर ताऊ?
फेर के म्हे तो होग्या बिस्सा, जन्मतै टेम हा जिस्सा। अब आगै सुण, मेरा साळा बोल्या- बैनोई जी, बारै आज्याओ, नहीं तो ठर ज्याओगा। मैं कैयो कीं कोनी ठरां। मनैं तो उछळ-कूद में मजा आर्या है, थे चालो। आथण गै आऊंगो, अंधेरो पड़्यां। पण मेरा साळा भी दुसमण बणग्या। बोल्या, थे बारै आओ हो का कोनी, निस तो म्हे आवां अंदर। छोटो साळो बोल्यो, नहीं भीया, आज तो बैनोई जी नै आपां नै ही बारै ल्याणा पड़सी। चालो कूदो पाणी में। ओ कह'र साळा नहर में कूदग्या। मैं सोच्यो, जे साळा कन्नै आग्या तो मनै इसो गो इसो ही बारै काढ लेसी। इत्तै में नहर में कैळियां गो झुंड दीख्यो। मैं सोच्यो- ईं नै ही पलेट गे बारै निकळल्यूं और भाज'र कपड़ा पैहरल्यूं। पण मैं आ भी सुण राखी ही कै कैळियां में जी-जिनावर भी हुवै। दूसरै पासै साळा मेरै कन्नै आंवता दिख्या। इज्जत खतरै में पड़ती देख मैं आव देख्यो न ताव, कैळियां ले'र शरीर पर पळेट बारै भाज्यो। लारै-लारै मेरा साळा। जकी बात गो डर हो बा ही होगी। कैळियां में एक बिल सूं भटके़डो काळो सांप हो। मैं कैळियां फैंक सक्यो कोनी। भाजगे कपड़ां कन्नै पहुंच गे चादर लपेटी अर कैळियां परनै फैंकी। पण इत्तै में सांप आप गो काम करग्यो अर मां ही मां मनै कई जिग्यां खाग्यो।
फेर ताऊ?
फेर के बताऊं बेटा, जकी इज्जत नै मैं तीन जणां सूं छुपाण लागर्यो हो। बीं नै पैलां तो देखी लोगां अर फेर भोपां। बेटा, सासरै गो स्नान गोगो इयां धुकावै।
आज रो औखांणो

गोगो बडो कै राम- कै बडो तो है जको ई है पण सापां सूं बैर कुण बसावै?
डर के मारै किसी व्यक्ति के बारे में जब कोई वास्तविक राय प्रकट न की जाए तो यह कहावत कही जाती है।

2 comments:

  1. चोखो लाग्यो सा, आप को यो कॉलम!
    पण यो वर्डवेरीफिकेशन घणो घणो बुरो लाग्यो। इणने हटा ई द्यो नी।

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  2. द्विवेदी जी री बात पर गौर करो सा । पोस्ट घणी मजेदार लागी ।

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