Thursday, April 9, 2009

१० मसखरी- कृष्ण कुमार बांदर

भला पधारया जी

१० अप्रेल २००९ नै
भास्कर संपादक श्री कीर्ति राणा अर प्रसार प्रभारी श्री अरविन्द मिश्र परलीका पधारया

विनोद स्वामी, अरविन्द मिश्र, कीर्ति राणा, रामस्वरूप किसान अर सत्यनारायण सोनी

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- १०//२००९

मसखरी


कृष्ण
कुमार बांदर रो जलम 15 दिसंबर, 1967 नै
नोहर तहसील रै बरवाळी गांव मांय हुयो। राजस्थानी रा समरथ लिखारा। 'झगड़ बिलोणो खाटी छा' नांव सूं बाळ-कवितावां री पोथी पण छपियोड़ी। बांचो, आं री कलम री कोरणी, ओ प्यारो-सो संस्मरण।

-कृष्ण कुमार बान्दर

बातां भांत-भंतीली। पण मसखरी सगळां में रसीली। यार-बेलियां री हुवै चाये सखी-सहेलियां री। धणी-धिराणी री हुवै चाये देवर-भाभी री। जीजै-साळी री हुवै भलाईं सगै-सगी री। वेळासर अर माहौल मुजब करियोड़ी हुवै तो 'मसखरी', निस तो 'किचाळ'। किचाळ अपरोगी लागै। खारी लागै। मसखरी री हद हुवै। जियां कै देवर-भाभी अर जीजै-साळी अर साळेल्यां री मसखरी आपरै हाण-जोड़ रां सागै ई करीजै। ओ मेळ मिल्यां बड़ा ठाट आवै। पण बै ई मसखरी जे बडेरै सागै करीजै तो चामळ मानीजै। बूढिया ई कई बर आपसरी में इस्सी मसखरी कर देवै कै देखणिया देखता ई रैय ज्यावै। कई मसखरी तो इत्ती मारकी, कै सुणनियो जे आगै पांच-सात बारी ना सुणावै तो जक कोनी पड़ै। फेर म्हनै कियां पड़ै ही। तो ल्यो, मांडो कान!
बागड़ रै एक गाम में सगो आएड़ो हो। कई बटाऊ गाम-बटाऊ हुवै। बै आपरै सुभाव रै पाण सगळै गाम नै प्यारा लागै। सगळाई बां सूं बोलणा-बतळावणा चावै। ओ सगो भी गाम-सगो। खांड रो लक्कड़। घणो बातेरी। मसखरो न्यारो। पसुवां रो खाड़ेती, सागै देसवाळी बोली अर ऊपर सूं थोड़ी-थोड़ी हाकळी न्यारी। एकर बात छे़डद्यो, पछै हुंकारा भरण री ई जुरत कोनी। बात दस दिन ई कोनी मुकै। अर जे बा सागण बात दस बारी कैवै तो ई सुणनियै नै बै ई ठाट आवै जका पैलपोत सुणतां आया।
कातीसरै रो टेम। सगो करड़ै भातै-सी बस सूं उतर्यो अर इब दिन छिपण नै आयो पण अजे तांईं आपरै सगै आळै घरां कोनी पूग्यो। अजे तांईं तो दूसरै गुवाड़ में हथाई जमा राखी है। दो गुवाड़ और बाकी पड़्या है। लारी सूं उतरतै ई एक घरां एक मतीरड़ी खाई। पछै तो माई रै लाल कठैई पाणी रो गुटको ई कोनी लियो। अंधेरो पड़्यां पछै गाम आळो सगो, सगै नै धक्कै सूं ई खड़्यो करनै लेग्यो। लारै टाबर नावड़ै ई कोनी। आगै, घर रै आगै चूंतरी पर बास रा बूढिया हथाई करण खातर अडीकै। भीतर सगी रोटियां नै। सगी सगै री सांतरी मनवार करी। देसी घी रो सीरो, सागै गरगरै-गरगरै, देसी बाजरै रै आटै री सू'णी रोटी अर गंवारफळियां रो स्वाद तीवण। सगो खायनै निहाल हुग्यो। सगी अर बहुवां सगै सूं बतळावण करणी चावै। पण बारै चूंतरी पर बैठ्या जकां नै सगै बिनां कद जक पड़ै। सगो बारै आयो। पण चूंतरी पर बैठ्या बां कनै कोनी रुक्यो। च्यानणी रात ही। बां देख्यो, सगो, घर रै दिखणादै पासै चिपतो ई नो'रो हो, बीं मांय बड़्यो। बां सोच्यो, स्यात, नाड़ो खोलण गया है। पण ओ कांईं राखरड़ो कठै सूं आवै? बडेरा बोल्या, छोरो, देखो रै, नो'रै में स्यात खागड़ खुरी करै? ओ लिलळियो गोधो घणो बेकार, कदी सगै रै मां' न पड़ ज्यावै। च्यार-पाँच जणा भाज'र गया। जा'र देख्यो तो देखता ई रैग्या। सगो कूटळै पर पग चौड़ा कर्यां खड़्यो अर दोनूं हाथां सूं पगां मांख'र राखरड़ो लारनै फैंकै। अर सागै खागड़ आळी तरियां दुड़कै- अड़ीक-ड्यां, अड़ीक-ड्यां। बै पाछा भाज्या। अर देख्यो जको सीन आय'र बूढियां नै बतायो। बूढिया भाज'र गया अर सगै नै पकड़्यो, 'सगाजी, इयां के करो हो?' सगो पगां मांख'र राखरड़ो उछाळनै बोल्यो- 'खागड़ सूं! खूरी करूं, अड़ीक-ड्यां!' 'खागड़ हो?' 'हां, खागड़ सूं! सगी मनै गुवांर की चाट रांध कै घाली सै अर गुवांर की चाट तो खागड़ नै ई रांध कै घाल्या करै सै। अब तम ई बताद्यो मैं खागड़ हुया'क नीं?' अर फेर बियां ई पगां बिचाळकर राखरड़ो फैंक्यो अर दुड़क्यो- अड़ीक-ड्यां, अड़ीक-ड्यां!

आज रो औखांणो

सगो सगै री जड़।

एक समधी की शोभा दूसरे पर निर्भर करती है। दोनों के हितचिंतन से ही समधियों का परिवार फलता-फूलता है।

1 comment:

  1. वाह बांदर जी आज तो मसखरी जोरकी करी

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