Monday, April 20, 2009

२१ नोट, वोट अर जूतो


आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-२१//२००९

नोट, वोट अर जूतो

डॉ. मंगत बादल रो जलम 1 मार्च, 1949 नै सिरसा (हरियाणा) में हुयो। मूल रूप सूं ग्राम चकां (सिरसा) रा वासी डॉ बादल राजस्थानी अर हिंदी रा समरथ लिखारा। मोकळी पोथ्यां छपी। सूर्यमल्ल मीसण शिखर पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान मिल्या। आजकाल रायसिंहनगर में रैवै अर स्वतंत्र लेखन करै। ल्यो बांचो, आपरो ताजा व्यंग।
-डॉ. मंगत बादल


नोट, वोट अर जूतो तीन्यूं ऊपर सूं देखण में तीन विषय दीसै। पण खरबूजै दांईं भीतर सूं एक। दीखण में तो ऊपर सूं जनता दल रा लालू यादव, रामविलास पासवान अर शरद पंवार भी अळगा-अळगा। पण जद सत्ता री रेवड़ी बंटैली तो सगळा घी-खीचड़ी हो जावैला। आज ऐ लोग जद जनता सूं वोट लेणा है तो एक-दूजै री बुराई करै। कमियां काढ़ै। पण पछै गठबंधण री सरकार बणांती बारी एक-दूजै री बड़ाई करतां आं री जीभ कोनी थकैली। खैर! कुर्सी चीज ई ऐड़ी हुवै।
नोट देय'र वोट लेणै री परम्परा भारत में घणी जूनी। जिकै कनै जेड़ी है, बा ई'ज तो मिनख दे सकै। किणी मंगतै नै जद आप कीं देवो तो बिण कनै देणै तांईं सिर्फ दुआ हुवै। गाळ काढणियै नै कुण भीख देवै? भारतीय कर्मवाद रै सिद्धांत रै मुजब मिनख नै कर्म कर बिण में फळ री आस नीं करणी चायजै। आ भी कोई बात हुई! भाई! बीजस्यो तो बै ऊगै ई ला! अब नीं तो आगलै जन्म में भोगणा पड़ै। म्हारा नेता ऐड़ा धार्मिक अर शुद्ध हियै आळा मिनख है कै बै किणी री ना तो उधार राखै अर ना ही मुफ्त कोई चीज लेवै। इण कारण वोटां रै बदळै नोट दे दिया तो कांईं हुयो? पइसा नीं देय'र नेता जनता साथै क्रितघ्नता कर लेवै? भाड़ में पड़ो ड़ी आचार संहिता! गरीबां रो भलो चुणाव आयोग नै कद सुहावै। अंग्रेजी दारू पीय'र मुरगो खावणियो नेता दो दिन गरीबां नै मुफ्त में प्या ई देवै तो कांईं गधी नै धांसी हो ज्यासी। अम्बर तो हेठां पड़न सूं रैयो! फेर बेरो नीं क्यूं चुनाव आयोग रै कीड़ी चढ़ै?
नेतावां रै बताणै मुजब जे भरोसो करां तो स्विस बैंकां में भारतीय नेतावां रो जितरो धन जमा है, बिण नै जे हरेक भारतीय में बरोबर बांट्यो जावै (?) तो लाखूं रिपिया पांती आवै। अमीर नेतावां रै गरीब देश भारत रै गरीब लोगां नै इण बहानै नेतावां रो कीं चिरणाम्रत मिल जावै तो कांईं फर्क पड़ै। आप कबीर सूं घणा धार्मिक कोनी। ऐड़ै मौकां तांईं बिणां कैयो- 'चीड़ी चूंच भर ले गई, नदी न घटियो नीर।' आप नीं बांटणद्यो नोट। चलो आपरी बात मानली! पण फेर कांईं गारंटी है कै चुणाव जीत्यां पछै नेता नोट नीं कमावैला। नाड़ हालै, पगां सूं चाल्यो कोनी जावै, आँख्यां सूं सूझै कोनी, दो जणां पकड़'र खड़्या करै, फेर भी चुणाव लड़णै तांईं त्यार। क्यूं कै इणां तो आप री आखरी सांस तांईं देश सेवा रो व्रत लियो है। धन है म्हांरै देश रा नेता! कर्मचारियां रै रिटायरमैंट री उम्र तो है पण नेतागण तो मुसाणां में जाय'र ई रिटायर हुवै।
बिहार, उत्तरप्रदेश आद प्रदेशां में जठै आप री तागत में भरोसो राखणिया वीर नर हा, बै नोटां रै अलावा जूतै रै बल-बूतै चुणाव जीत्या करता। जूतै में ऐड़ो जादू हुवै कै बिण नै दिखायां भी वोट मिल सकै। वोटर नै जूत दिखाओ अर वोट आपरो! जूतां रो राजनीति में प्रयोग पैली बार करणै रा प्रमाण रामायण में मिलै। बड़ै लोगां रै पगां रै बजाय चरण हुवै अर बिणां में पादुकावां सुशोभित हुवै। राम री पादुकावां सूं भरत चौदह बरसां तक अयोध्या पर राज कर्यो। बिण भांत आज परतख रूप में तो जूतो कोनी चाल सकै क्यूं कै प्रजातंतर है। पण निराकार रूप में जूतो सगळा काम करै।
राजनीति में 'जूतम पैजार' कोई नूंई बात कोनी। लारलै दिनां जूतै नै काफी मशहूरी मिली जद एक पत्रकार जार्ज बुश पर जूतो फेंक्यो। बिणी स्टायल में चिदंबरम् पर भी जूतो फेंक्यो गयो। चिदंबरम् पर जूतो फेंकण वाळै पत्रकार नै इतरो फायदो कोनी हुयो जितरो बुश पर फेंकण वाळै नै हुयो। खैर! इतरो फर्क तो अमरीकी नेता अर भारतीय नेता रै स्टैंडर्ड में होणो ई चायजै। भारतीय नेतावां रा तो आपस में संसद या विधान सभावां में जूता चालणो कोई नूंईं बात कोनी। अबकाळै ओ जूत फेंकणियों पत्रकार हो! पत्रकार अगर रोजमर्रा री जिनगी में 'पीत पत्रकारिता' नीं कर इण नेतावां री इण भांत ई खबर लेंवता रैवै तो ऐ दिन देखणा ई नीं पड़ै।
नोट, वोट अर जूत री इण चर्चा नै म्हूं अठै ई विराम द्यूं क्यूं कै कोई आचार संहिता तो म्हां पर भी लागू हुवै।

आज रो औखांणो

मतलब री मनवार, न्यूत जिमावै चूरमो।
मतलब बिन मनवार, राब न पावै राजिया।।


संसार में सगळा काम-व्योपार स्वारथ सूं रीयोड़ा है।
मतलब हुवै तो न्यूंत नै चूरमो जिमावै अर मतलब नीं हुवै तो कोई राबड़ी तक रो भी नीं पूछै।

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गोगामे़डी में चुनावी सभा

राजस्थानी रै मुद्दे पर खुल'र बोल्या मुख्यमंत्री

परलीका(हनुमानगढ़)। सोमवार नै गोगामे़डी में चुनावी सभा नै संबोधित करतां थकां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थानी भाषा री मान्यता रै मुद्दे खुलनै बोल्या। आपरै भाषण में करीब पांच मिनट तक बै इण मुद्दे माथै ई बोलता रैया। वां खुशी प्रगट करी कै अठै रा लोग मायड़भाषा रो मोल समझै अर आपरी भाषा रै प्रति प्रतिबद्ध है। गहलोत कैयो कै पचास साल में कोई सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पारित नीं कर सकी। क्यूंकै केन्द्र में भाषा नै तद ई मान्यता मिलै जद राज्य सरकार संकळप प्रस्ताव पारित करै। हरेक मुख्यमंत्री कोसीसां करी पण एक राय नीं बण सकी। वां कैयो कै म्हनै ओ कैवतां घणो गुमेज हुवै कै लारली दफा जद म्हैं मुख्यमंत्री हो, तद संकळप प्रस्ताव सर्व सम्मति सूं पारित करवायो। अब केन्द्र सरकार लोकसभा अर राज्यसभा में इणनै पारित करवावै इण सारू म्हैं आपनै भरोसो दिराऊं कै रफीक मंडेलिया समेत पार्टी रा सगळा सांसद इण मांग नै लोकसभा अर राज्यसभा में उठावैला। वां भाषा रै मुद्दे माथै साथ देवण रो वायदो करियो अर कैयो कै भारत विविधता में एकता वाळो देश है। अठै दूजी भाषावां री दांईं राजस्थानी नै भी संविधान री आठवीं अनुसूची में शामिल करी जावणी चाइजै। इणसूं राजस्थानी कलाकारां, साहित्यकारां, पत्रकारां अर आमजण रो सम्मान बढ़ैला अर राजस्थान री पिछाण कायम हुवैला।
इणसूं पैलां क्षेत्रीय विधायक जयदीप डूडी, राजस्थानी मोट्यार परिषद रा हनुमानगढ़ जिला महामंत्री संदीप मईया, संरक्षक सतवीर स्वामी समेत मायड़भाषा आंदोलन सूं जुड़िया थका कई कार्यकर्त्ता मुख्यमंत्री सूं मिल्या अर राजस्थानी मान्यता री मांग रो ज्ञापन सूंपतां थकां इण मुद्दे माथै आपरो मत परगट करण री अरज कीनी।

2 comments:

  1. Aderjog,
    Dr.Mangat badal,
    Ram-Ram sa.
    Tharo ghano hi Chetkoro tikho veyeng vanchyo.mundo or dimag donu hi cerkaram ho geya.
    Aaj ri rajnitti mai bilkul sahi lagye hai.Isa hi cerkara or thikha lekh or aando.
    NARESH MEHAN

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  2. डॉ॰ मंगत बादळ जी, आपनै सतवीर वर्मा 'बिरकाळी' रौ घणै मान सूँ राम-राम। आजकाल रै नेतावाँ ऊपर ओ चोखो व्यंग्य लिख्यो सा थे। राजनीति कोनी आ तो घाळ मेळ री राबङी बणरी है। एक नेतो जागै अर् एक मुद्दो लेर् चालै पण थोङै दिन पाछै देखां तो बो नेता ई इण घाळ मेळ री राबङी मांय रळतो दीखै। आजकाल री राजनीति एक इस्यो दळदल है जिकै माँय बङ्याँ पाछै आछो काम दिखै ई कोनी। सारा नेता लोग आपगी प्रॉपर्टी बणार् लाग रैया है। जनता गी बात कोई नेता नीं करै। गर करै तो पैलो नाम आपगै सगळा सम्बन्धियाँ गो लेवै अर् बांनै ई राजकीय सेवावाँ रो लाभ मिलै। चुनाव अर् वोट री बखत् एक बार आपरो मुँडो दिखावै पाछै पाँच साल जनता कानी मुँडो करगै सोवै ई कोनी। जनता बिचारी भूखी तिसी रोंवती रेवै पण बीं नेता गै कान पर चूँ भी ना होवै।
    राजस्थानी भाखा नै मान्यता देणै सारु सारा नेता आपरी राजनीतिक रोटी सेकै बाकी कीं कोनी। गर बांनै मान्यता ही देणी ही तो अब अशोक गैलोत री काँग्रेसी सरकार है अर् पूरी बहुमत सूँ है, अर् केन्द्र मांय भी काँग्रेसी सरकार है, फेर भी राजस्थानी भाखा नै मान्यता क्यूँ नीं दे सक्या?
    सब आपरी राजनीति री रोटी सेकणै रा करार वादा है।
    अंत मांय एक दोहै सारु आ बात खत्म करुं सा-

    आजकाल रा नेता लोग, बोलण् लाग्या झूट।
    सीधी भोळी जनता रैगी,
    लूट सकै तो लूट।।
    http://satveerkevichar.wordpress.com/

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