Thursday, April 30, 2009

1 मई - धोरां आळा देस जाग

मई दिवस पर खास

धोरां आळा देस जाग

-मनुज देपावत

मई दिवस। मतलब मजदूर दिवस। दुनियाभर रा मजूरां नै कै रो सनेसो देवै। आपरै हकां सारू जगावै। राजस्थानी रा कवियां भी मजूर-किरसाणां रै कै सारू मोकळा गीत लिख्या। एहड़ाएक कवि मनुज देपावत। सन् 1923 में देशनोक में जलम्या। क्रांतिकारी कवितावां-गीत रच्या। फगत 25 बरस री उमर में सन् 1952 में देशनोक अर बीकानेर बिचाळै एक रेल दुर्घटना मांय चल बस्या। पण वां रा गीत आज भी जण-जण रा कंठां गूंजै। मजूर-किरसाणां नै कै सारू चेतावै। मुरदां में ज्यान फूंकै। आज बांचो वां रो एहड़ोएक गीत।

धोरां आळा देस जाग रे, ऊंठां आळा देस जाग।
छाती पर पैणा पड़्या नाग रे, धोरां आळा देस जाग।।
धोरां आळा देस जाग रे........
उठ खोल उनींदी आंखड़ल्यां, नैणां री मीठी नींद तोड़
रे रात नहीं अब दिन ऊग्यो, सपनां रो कू़डो मोह छोड़
थारी आंख्यां में नाच रह्या, जंजाळ सुहाणी रातां रा
तूं कोट बणावै उण जूनोड़ै, जुग री बोदी बातां रा
रे बीत गयो सो गयो बीत, तूं उणरी कू़डी आस त्याग।
छाती पर पैणा..............
खागां रै लाग्यो आज काट, खूंटी पर टंगिया धनुष-तीर
रे लोग मरै भूखां मरता, फोगां में रुळता फिरै वीर
रे उठो किसानां-मजदूरां, थे ऊंठां कसल्यो आज जीण
ईं नफाखोर अन्याय नै, करद्यो कोडी रो तीन-तीन
फण किचर काळियै सापां रो, आज मिटा दे जहर-झाग।
छाती पर पैणा..............
रे देख मिनख मुरझाय रह्यो, मरणै सूं मुसकल है जीणो
खड़ी हवेल्यां हँसै आज, पण झूंपड़ल्यां रो दुख दूणो
धनआळा थारी काया रा, भक्षक बणता जावै है
रे जाग खेत रा रखवाळा, आ बाड़ खेत नै खावै है
जका उजाड़ै झूंपड़ल्यां, उण महलां रै लगा आग।
छाती पर पैणा..............
इन्कलाब रा अंगारा, सिलगावै दिल री दुखी हाय
पण छांटां छिड़कां नहीं बुझैली, डूंगर लागी आज लाय
अब दिन आवैला एक इस्यो, धोरां री धरती धूजैला
सदां पत्थरां रा सेवक, वै आज मिनख नै पूजैला
ईं सदां सुरंगै मुरधर रा, सूतोडां जाग्या आज भाग।
छाती पर पैणा..............

रामस्वरूप किसान रो दूहो

मुरदा अठै मजूरिया, मल्लां मानिंद मोड।
चिलको मारै काच ज्यूं, चरबी चढिया भोड।।

1 comment:

  1. सोनीजी, ऒ कांई डिटेक्टर लगायौ है सा, जागा (location) आई पी एड़ेस अर ओपरेटींग सिस्टम सब डिटेक्ट करै है.... म्हनै डर है विजीटर ओछा नी हु जावै. थोड़ौ ध्यान राखजौ.

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