Tuesday, April 21, 2009

२२ बातां रुळगी भाषा लारै

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख- २२//२००९

बातां रुळगी भाषा लारै

-ओम पुरोहित कागद

राजस्थानी संस्कृति रा ठरका निराळा। संस्कृति पण कांण राख्यां। कांण रैवै राख्यां। हाल घड़ी बडेरां कांण राख राखी है। पण कीं अरथां में मोळी पड़ती लखावै। सरूआत आंगणै सूं। आंगणै सूं सबद खूट रैया है। काको, मामो, मासो, फूंफो, कुलफी आळै भेळो अंकल। मामी, मासी, भूआ, काकी, नरसां भेळी अंटी बणगी। देखतां-देखतां ई आपणी संस्कृति खुर रेई है। ढाबै कुण? मोट्यार तो अंग्रेजी रा कुरला करै। सो कीं भूल'र माइकल जै सन रा नातेदार बणन ढूक्या है।
बात नातां-रिस्तां री। नातेदार बै जका आपरी पांचवीं पीढी सूं पैली फंटग्या। पण भाईपो कायम। रिस्तेदार बो जकै सूं आपरो खून रो रिस्तो। यानी चौथी पीढी सूं लेय'र आप तांई। गिनायत कैवै खुद रै गोत नै टाळ आप री जात रै दूजै लोगां नै। जिण सूं आपरा ब्याव-संबंध ढूक सकै। कड़ूंम्बो कैवै दादै रै परिवार नै। लाणो-बाणो हुवै खुद रो परिवार। गनो होवै संबंध। जियां म्हारी छोरी रो गनो व्यासां रै ढूक्यो है। तो ओ होयो गनो। छोरै अर छोरी रै सासरै आळा होया सग्गा। ऐ बातां अब कुण जाणै?
आजकाळै कीं रिस्ता-नाता तो इलाजू कळा जीमगी। कूख मौत होवण सूं काका-काकी, बाबो-बडिया, भाई-भौजाई, मासो-मासी, फूंफो-भूआ, नणद-नणदोई, जेठ-जेठाणी, देवर-देराणी, काकी सासू, बडिया सासू, भूआ सासू, मासी सासू, मामी सासू जै़डा सबद आंगण में लाधणा दौ'रा होग्या। जद ऐ नामी रिस्तेदार, नातेदार अर गिनायतिया ई नीं लाधसी तो टाबरियां री ओळ कठै।
भेळप अर ऐ कठ राजस्थान्या री आण। पण अब तो ब्याव रै तुरता-फुरती न्यारा होवण री भावना। कुण जाणै कै देवर रो छोरो देरुतो, छोरी देरुती, जेठ रो बेटो जेठूतो, बेटी जेठूती, नणद रा बेटा-बेटी नाणदो अर नाणदी, काकै अर भूआ रा बेटा-बेटी, भतीजा-भतीजी, आजकाळै एक छोरै रो चलण। छोरी तो होवण ई नीं देवै। एक छोरै रै एक छोरो। बाकी रिस्तां रै लागै मोरो। आ होयगी भावना। घणकरै दिनां में टाबर पूछसी- 'पापा ये भूआ और फूंफा या होता है? मासा-मासी किसे कहते हैं?' ना साळा-साळी रैसी, ना मासा-मासी अर ना मामा-मामी। काका-काकी, भूआ-फूंफा अर बाबा-बडिया सोध्यां ई नीं लाधैला
दूसरो ब्याव करणियो दूजबर, किणी रै बिना ब्याव बैठणो, चू़डी पैरणो बजै। इण नै नातो कैवै। नातै जावण आळी लुगाई नै नातायत। नातै गयोड़ी लुगाई रै लारै आयोडै टाबर नै गेलड़ कैवै। जद रिस्ता-नाता, गन्ना, अर कड़ूम्बै रो ग्यान नीं तो संस्कारां रो ध्यान कठै। बडै रै पगाणै बैठणो, सिराणै नीं। भेळा जीमतां टाबर पछै जीमणो सरू करै पण चळू पैली करै। बडेरो आदमी जीमणो पैली सरू करै पण चळू छेकड़ में करै। सवारी माथै लुगाई लारलै आसण बैठै। आगलै पासै बैन, भौजाई, मा, दादी, काकी, बडिया, भूआ आद बैठै। अब पण ऐ बातां तो भाषा रै लारै ई रुळगी। मायड़ भाषा नै मानता मिलै तो पाछी बावड़ै। अब बांचो रिस्ता जाणण री दोय आड्यां-

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पीपळी रै चोर बंध्यो, देख पणियारी रोई।
काईं थारै सग्गो लागै, काईं लागै थारै सोई।।
नीं म्हारै सग्गो लागै, नीं लागै म्हारै सोई।
ईं रै बाप रो बैन्दोई, म्हारै लागतो नणदोई।। (बेटो)
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जांतोड़ा रै जांतोड़ा, थारै कड़ियां लाल लपेटी।
आ आगलै आसण बैठी, थारै बैन है का बेटी।।
नीं म्हारै आ बैन है, नीं है आ म्हारी बेटी।
ईं री सासू अर म्हारी सासू, है आपस में मा-बेटी।। (बेटै री बू)

आज रो औखांणो

पांवली कुत्ती अर पूंछ में कांघसियो, अठै-सी कोनीं बावूं, आगै-सी बास्यूं।
कोई घणो दिखावै करै जद मजाक में आ कहावत कहीजै।

2 comments:

  1. ओम पुरोहित जी, हुकम आपरा सगळा लेख घणां चोखा हुवै है. घणकरा तौ एड़ा हुवै कै हिवड़ा मांय तीर लाग जावै.

    आज रौ लेख ईं कोई एड़ौ इज है सा. आप अठै जित्ता रिस्ता नाता री बात बतायी घणकरी म्हनै ईं ठा कोनीं. दिल में एक चुभन सी हुवै अर लागै आग लगा दू दिल्ली मांय अर बाळ नांखु उण देस नै जकौ आपणै राजस्थांन नै गुलाम बणा राख्यौ है. पण म्हनै भारत सूं ईं लगाव है, आ वा धरती है जिणरौ आपणै राजस्थांन सूं गैरौ नातौ है.

    आपरै केवणै मुजब भासा नै मानता मिळी तौ रुळ्यौड़ी बातां पाछी आ जासी, आपनै लागै कै आ हु सकै. हुकम बातां इतीहास बण जासी अर जै भासा रौ ह्रास लारला ६० बरसां मांय हुयौ है अर इणमें हिंदी रा (नो डाउट कै हिंदी वाळा राजस्थांनी रा सबदां री चोरी करनै विशाळ भासा बणी है) सबद मिळ ग्या है वौ घाटौ कदै पुरौ नीं हु सकैला.

    जै राजस्थांन! जै राजस्थांनी!! LONG LIVE RAJASTHANI

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  2. Bhai ji
    Sh Om kaged ji,
    Ram-Ram sa,
    Aap ro rista-natta ro lekh vanviyo.gheno hi puthro ho.Aab aapra rista-nata kalibangan ri threh ho jasi khender.kayi sala bad lag-bag puch si O kaka k huve taau k hove.jed Aapna jisi dokra betasi mundo poplo ker.
    Thanye sadhu-bad isa mitha seweda khatir
    NARESH MEHAN

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