Tuesday, May 24, 2011

सपनो आयो


सपनो आयो

हीरालाल शास्त्री

इण कविता में एक इसै काल्पनिक सपनै रो चितराम मांड्यो है जिणमें साम्राज्य बदळ ज्यावै, राजतंतर, पूंजीवाद अर सोसण सै खतम होवण रै पछै लोकराज आवै। टणका होवै जिका निबळा हो ज्यावै अर निबळां रो राज आवै। तोसाखाना (अन्न-भंडार) खाली हो ज्यावै, महलां रो टापरो बण ज्यावै अर टापरियां रा महल बण ज्यावै। कवि नै पूरो भरोसो है कै ओ सपनो जरूर सांचो होसी।

सपनो आयो एक घणो जबरो रे
सपनो आयो।
काळी पीळी आंधी उठी
चाल्यो सूंट घणो जबरो रे
सपनो आयो।
थळ को होग्यो जळ, थळ जळ को
संपट पाट घणो जबरो रे
सपनो आयो।
चैरस भोम में डूंगर बणग्या
माया-जाळ घणो जबरो रे
सपनो आयो।
टीबा ऊठ नदी बै लागी
फैल्यो पाट घणो जबरो रे
सपनो आयो।
नदियां सूख’र टीबा बणग्या
बेढब भूड घणो जबरो रे
सपनो आयो।
ऊंचा छा सो नीचा उतरया
निचलां ठाठ घणो जबरो रे
सपनो आयो।
टणका छा सो निमळा होयग्या
निमळां राज घणो जबरो रे
सपनो आयो।
म्हैलां की तो टपरी बणगी
टपरी म्हैल घणो जबरो रे
सपनो आयो।
तोसाखाना खाली होयग्या
खाली पेट भरयो जबरो रे
सपनो आयो।
म्हांको सपनो सांचो होसी
समझो भेद घणो जबरो रे
सपनो आयो।

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