Tuesday, July 13, 2010

वादळी-अढाई आखर

वादळी


राम-राम सा!
आज सूं आपां लगोलग बांचांला कविवर चंद्रसिं
बिरकाळी री 'वादळी'।
पैलपोत कवि रा 'अढाई आखर'।


अढाई आखर

मोर री 'पिहू', कोयल री 'कुहू', पपीहै री 'पी पिव' अर टीटोड़ी री 'टी टिव' आप रै रूप में पूरी रट है। ऐ आप-आपरी विसेसता न्यारी-न्यारी राखै है अर जी रा भाव पूरै जोर सूं परगट करै है। इण रट नै चावै आं रो सुभाव समझो चावै प्रकृति री दात, पण मिनख री विसेसता आं सगळां सूं न्यारी है। मिनख बुद्धि रै परभाव सूं दूसरां री भासा अथवा भावां पर रीझ वांनै आपरा वणाणै रो सांग भरै है पण जद जी छोळां चढ़ै, कोड में रग-रग नाचै, बैं मस्ती में मातृभाषा री गोद में ही मोद आवै। जद वड़ां री बात याद आवै 'मांग्यां घीयां किसा चूरमा' अथवा भारी दुख सूं जी में ठेस लगै तो चट मा ही याद आवै, मांगेड़ी धाड़ के ठारै? जद इसी बात है तो दूजा क्यूं जी दोरो करै।
वादळी मरुधर नैं प्राणां सूं प्यारी है। बैं रै चाव नै कुण पूगै। रात-दिन आंख्यां में रमै। जैं रो नाम सुण्यां सुख ऊपजै। वाळकपणै सूं जिण में ऊंट-घोड़ां री अनेक कल्पना करी जावै, जिण में इंद्रधनस अर जळेरी जी ललचावै, इसी प्यारी चीज रा गुण दूसरी भासा में गाऊं, आ सोचण री विरियां कैं नैं? झट मुंह सूं 'वरसे भोळी वादळी आयो आज असाढ़' निकळतां ही 'रम रम धोरां आव' री रट लागै। जठै जी खोल मिलणो हुवै, दूजो वीचविचाव किसो? आपरी भासा अर आपरै भावां पर भरोसो चाहिजै।
-चंद्रसिं

जीवण नै सह तरसिया बंजड़ झंखड़ वाढ।
वरसे, भोळी वादळी आयो आज असाढ॥

6 comments:

  1. जीवण नै सह तरसिया बंजड़ झंखड़ वाढ।
    वरसे, भोळी वादळी आयो आज असाढ॥

    चोखी बातां कही थ्हे
    राम राम

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  2. चन्द्र सिंघ जी री रचना चौखी लागी ! आगली रचनावां री उडीक है |

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  3. भोत आच्छो लाग्यो!

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  4. अणूंठी बात करी सा. मरुधरीया बादळी नै उड़ीकता उड़ीकता उमर काढ लेवै

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