राजस्थानी रा चावा कवि अर सरस गीतकार। नागौर रै चितावा गांव में 8 दिसम्बर 1939 नै जलम। 'रामतिया मत तोड़', 'मिमझर', 'परभाती', 'जूझार', 'आ जमीन आपणी' अर 'कुण-कुण नै बिलमासी' कविता पोथ्यां घणी चावी। मीरा पुरस्कार सूं नवाजिया थका राजावत सिणगार रस री कविता रा हेताळु।
राजस्थानी में कैबा चालै- बिन भाषा बिन पाणी, बिलखै राजस्थानी। राजस्थानी जन-जीवन में पाणी रो मोल बतावै कवि रा ऐ सरस दूहा। आप भी बांचो सा!
राजस्थानी में कैबा चालै- बिन भाषा बिन पाणी, बिलखै राजस्थानी। राजस्थानी जन-जीवन में पाणी रो मोल बतावै कवि रा ऐ सरस दूहा। आप भी बांचो सा!
घड़ला सीतल नीर रा, कतरा करां बखाण।
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पाण॥
घड़ला थारो नीर तो, कामधेन रो छीर।
मन रो पंछी जा लगै, मानसरां रै तीर॥
घड़ला थारा नीर में, गंग जमन रो सीर।
नरमद मिल गौदावरी, हर हर लेवै पीर॥
जितरी ताती लू चलै, उतरो ठंडो नीर।
तन तिरलोकी राजवी, मन व्है मलयागीर॥
बियाबान धर थार में, एक बिरछ री छांव।
मिल जावै जळ-गागरी, बो इन्नर रो गांव॥
रेत कणां झळ नीसरै, भाटै भाटै आग।
झर झर सीतल जळ झरै, घड़ला थारा भाग॥
इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी लै मनां, होज्या ब्रह्म समान॥
हिम सूं थारो हेत है, जळ इमरत रै पाण॥
घड़ला थारो नीर तो, कामधेन रो छीर।
मन रो पंछी जा लगै, मानसरां रै तीर॥
घड़ला थारा नीर में, गंग जमन रो सीर।
नरमद मिल गौदावरी, हर हर लेवै पीर॥
जितरी ताती लू चलै, उतरो ठंडो नीर।
तन तिरलोकी राजवी, मन व्है मलयागीर॥
बियाबान धर थार में, एक बिरछ री छांव।
मिल जावै जळ-गागरी, बो इन्नर रो गांव॥
रेत कणां झळ नीसरै, भाटै भाटै आग।
झर झर सीतल जळ झरै, घड़ला थारा भाग॥
इक गुटकी में किसन है, दो गुटकी में राम।
गटक-गटक पी लै मनां, होज्या ब्रह्म समान॥
बहुत बढ़िया पोस्ट.
ReplyDeleteइण लू मांय आ सीतल कविता सांचै इ इमरत रो ठांव लागै है।
ReplyDeleteकल्याणजी; आप घणी चोखी कविता लिखी हो सा. पढने आनंद आय गयो. आपणे मरुधर देस में पाणी रो मोल अठे रा रेवणीया लोग इस जाणे सा. इण कविता री ए दो लाईणा म्हारी आन्खीयाँ में पाणी भर दियो.
ReplyDeleteबियाबान धर थार में, एक बिरछ री छांव।
मिल जावै जळ-गागरी, बो इन्नर रो गांव॥
आपणे घणी घणी बधाई. जय श्री कृष्ण
वाह सा । इण रचणा में आपणे राजस्थान री सोवणी सी खुशबू है । काळजो तृप्त होग्यो अ'र जाणे ईं घडले रै जळ इमरत स्यूं प्राण-प्राण सिंचित होग्या सा । आजकल रै भातिकवाद में लोग आपाणी मूळ चीजां नै भूलण लागरया है, घडले री प्राक़तिक महिमा अ'र कल्याणसिंह जी रै ईं सृजण क्षमता री जित्ती बडाई करां, कम है सा । बोत आछी लागी आ रचणा । आपरौ घणकरै माण स्यूं आभार ।
ReplyDeletewah sa wah,
ReplyDeleteloovan ri in rut re maany hivdo seelo hugyo.
मौसम रे मिजाज मुजब पुरसगारी घणी दाय आई. इण सारु सगळी टीम ने घणी-घणी बधाई.
ReplyDeleteवा सा वा.. इण गर्मी में मं आ कविता पढ़'र जी सोरो हो ग्यो.
ReplyDeleteमोकळी बधाई सा..