Sunday, April 18, 2010

पत्रिका में पोलमपोल

पाठक-पीठ
समाचार संदर्भ : 'बोलियों से नहीं दी जाती शिक्षा'
राजस्थान पत्रिका री इण बेतुकी खबर पर हाथोहाथ जवाब मांड' मेल करयो हो. इण समाचार रै पक्ष में एक साथै कागद छ्पग्या, पण राजस्थानी जनता री तर्कसंगत बात एक भी नीं छपी. आज संपादक श्री भुवनेश जैन सूं बात हुयी तो बोल्या, हम इस मुद्दे पर अब कुछ नहीं छापेंगे। मतलब राजस्थानी जनता री एक भोत बड़ी पीड़ कोई अख़बार री पीड़ नीं हुय सकै। चलो कोई बात नीं, कोई घाल सकै मूँडै मै मूंग, पण आपां तो नीं. आओ बाँचां........

समस्त अंचलों में समझा और सराहा जाता है 'पोलमपोल'
आदरणीय संपादक जी,
शुक्रवार को पत्रिका के राज्यमंच पर 'बोलियों से नहीं दी जाती शिक्षा' शीर्षक से समाचार पढ़कर हैरानी हुई। महज पांच-छह लोगों ने बंद कमरे में बैठकर एक प्रेस-नोट तैयार किया और पत्रिका ने करोड़ों राजस्थानियों की भावनाओं को आहत करने वाला यह समाचार प्रमुखता से छाप दिया।
पूरे समाचार में राजस्थानी जन-समाज को भ्रमित करने वाली बातों के अलावा कुछ नहीं है। रवीन्द्रनाथ टैगोर, पं. मदन मोहन मालवीय, डॉ. वेल्फील्ड अमेरिका, सर जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन, डॉ. एल.पी. टैसीटोरी, डॉ. सुनीति कुमार चाटुज्र्या, राहुल सांकृत्यायन, झवेरचंद मेघाणी, सेठ गोविन्द दास और काका कालेलकर जैसे विद्वान जिसे स्वतंत्र तथा बड़े समुदाय की एक समृद्ध भाषा मानते हैं, वह महज किसी व्यक्ति विशेष के कहने से बोली नहीं करार दी जा सकती। बोलियां किसी भी भाषा का शृंगार हुआ करती हैं। इस खूबी को भी खामी करार देना कहां की भलमनसाहत है? यह सवाल तो हिन्दी सहित दुनिया की किसी भी भाषा के लिए उठाया जा सकता है कि दिल्ली-मेरठ में खड़ी बोली बोली जाती है, आगरा-मथुरा में ब्रज, ग्वालियर-झांसी में बुंदेली, फर्रूखाबाद में कन्नौजी, अवध में अवधी, बघेलखंड में बघेली, छतीसगढ़ में छतीसगढ़ी, बिहार में मैथिली और भोजपुरी, मगध में मगही। ऐसी स्थिति में हिन्दी भाषा किसे माना जाएगा?
राजस्थान पत्रिका के मुखपृष्ठ पर 'पोलमपोल' शीर्षक से एक राजस्थानी दोहा एक दशक से भी अधिक समय से देख रहा हूं। शायद ही कोई पाठक हो जो सर्वप्रथम इसे पढ़ता हो। क्या इसे हाड़ौती, वागड़, ढूंढाड़, मेवात, मालवा, मारवाड़, मेवाड़, शेखावाटी आदि अंचलों में समान रूप से नहीं समझा जाता? जब यह दोहा समान रूप से समस्त अंचलों में समझा और सराहा जाता है तो पत्रिका को राजस्थानी की एकरूपता का इससे बड़ा क्या प्रमाण चाहिए? यही नहीं राजस्थानी लोकगीतों के ऑडियो-वीडियो सीडी समस्त अंचलों में समान रूप से लोकप्रिय हैं। ग्यारहवीं से लेकर एम.. तक की पढ़ाई की पाठ्यपुस्तकों की भाषा समस्त अंचलों में एक ही जैसी प्रचलित है। बूंदी के सूर्यमल्ल मीसण, डूंगरपुर की गवरीबाई, मेड़ता की मीरांबाई, मारवाड़ के समय सुंदर, मेवाड़ के चतुरसिंह और सीकर के किरपाराम खिडिय़ा, बाड़मेर के ईसरदास, अलवर के रामनाथ कविया का काव्य पूरे राजस्थान में सम्मान्य है तो ऐसे तर्कहीन बयानों को पत्रिका प्रोत्साहन क्यों दे रही है?
राजस्थानी के सम्बन्ध में अविवेकपूर्ण टिप्पणी करने वाले ये महानुभव हिन्दी की प्रमुख बोली कही जाने वाली मैथिली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने पर तो मौन साधे रहते हैं और विश्व की एक बहुत ही समृद्ध भाषा को उसका वाजिब हक दिलाने की मांग का विरोध करने लगते हैं।
राजस्थानी को हिन्दी की बोली मानने वाले ये महानुभव अगर सही मायने में हिन्दी के हितैषी हैं तो प्राचीन और मध्यकालीन सैकड़ों प्रसिद्ध रचनाकारों सहित कन्हैयालाल सेठिया, चंद्रसिंह बिरकाळी, रघुराजसिंह हाड़ा, अन्नाराम सुदामा और विजयदान देथा जैसे कितने ही आधुनिक लेखकों की राजस्थानी रचनाओं को हिन्दी साहित्य के इतिहास में शामिल करवाने की वकालत क्यों नहीं करते?
मान्यवर, करोड़ों-करोड़ों राजस्थानी जन-समाज, जो कि सन् 1944 से लेकर आज तक अपनी भाषा को उचित सम्मान दिलवाने के लिए संघर्ष कर रहा है, को 'चन्द स्वार्थी लोगों' की संज्ञा से अभिहित कर राजस्थान पत्रिका ने उन करोड़ों राजस्थानियों को ठेस पहुंचाई है, जिन्होंने हमेशा 'पत्रिका' को अपने हृदय का हार समझा है।
बस, यही निवेदन है।
-सत्यनारायण सोनी, प्राध्यापक-हिन्दी,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, परलीका (हनुमानगढ़)
कानाबाती : 9602412124

5 comments:

  1. rajasthan patrika ri aa khabar aaj mhe bhi banchi.banch'r peed hui.rajasthani bhasa ri boliyan ne unri ekroopta ri samsya bata'r jaka log inro virodh kar riya h,be saanchi jaano to rajasthani h hi koni.hindo ro mhe samman karan,baa mhari rashtra-basha,pan aa baat samajh m koni aave ak rajasthani ne manta milan syu hindi ne kaain khatro.rajasthani taabar je prathmik taain ri bhanai maayad bhasa maany kare to bhi hindi to aapni rashtra bhasa raisi.
    rajasthani logan hindi re badhape ro ghano jatan karyo,un ro silo ea hindi ala aapni mayad bhasa ro viridh kar'r de riya h.saanci baat to aa h ak rajasthani bhasa kini bhant hindi syun kamtar koni.hindi to rajasthani ri rini honi chaije ,jaki unro aadikaal ar sirjyo.
    rajasthani bhasa ne manto ro o sangharsh dhedemo ni padno chaije.rajasthani re hetaluan ro jilewaar melaap kar'r ek rooprekha banaani chaije.tan ,man ar dhan syun in aandolan ne aage or aage badhno h.
    jaatiyan ra sangthana su mel kar'r una ne samil karno chaije.jaat,rajpoot,baman,baaniyan,heer,maali,gujar,kumhaar,nai,harijan,meena aad sagli jaatan ra sanghan ne in aandolan saage bhelo kar'r una ra netanwa kani syun bayan dirana chaije.inro ghano asar padsi.
    JAI RAJASTHANI.JAI RAJASTHANI

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  2. patrika ri aa kissi polam pol hai ke un ro akhbaar rajasthani beria ro hathiar bangyo. patrika raa maalak in re saathe hi yaa. in polam pol me bhaadetia log pol macha reya hai. patrika ro o kevno ke vo in mudde par ki ni chhapela. in bayaan su laage ke rajasthan patrika aapro patrkaaria dharm nibhaavan me oskaa taak reyo hai. kaai un ro o ij dharm banchyo hai ke vo rajasthani beria re mukh patr ban jaave ar vaare haathaa ri kathputli ban jaave. yaa fer raj netaava ri gandgi saaf karan ro potadio ban jaave.

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  3. सुंदर पोस्ट

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  4. घणी खम्मा सतनाराण सा, आपरी बात खरी अर अकाट्‌य छै. आप इण बात नै जिण भांत तर्क रै साथै राखी इण बात रौ उत्तर राजस्थान पत्रिका तौ कांई आखै भारत रौ मिड़ीया या खुद भारत सरकार नीं दे सकै.

    जीव घणौ सोरो हुयौ हुकम,

    जै राजस्थानी!!

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  5. आ भाषा म्हांरी है लोगां ! माता आ म्हांरी है !
    राजस्थानी भाषा सगळा राजस्थान्यां री है !

    नव दुर्गा ज्यूं इण माता रा रूप निजर केई आवै
    मोद बधावै मेवाड़ी मन हाड़ौती हरखावै
    बागड़ी ढूंढाणी मेवाती मारवाड़ी है !
    भांत भांत सिणगार सजायेड़ी आ रूपाळी है !
    आ माता म्हारी है बीरा, माता आ थारी है ! !

    मत करज्यो रे बै'म कै भायां सूं भाई न्यारा है
    काळजियै री कोर है भाई आंख्यां रा तारा है
    अणबण व्हो ; म्हैं जूदा नीं व्हां…मन में धारी है !
    सावचेत रे टकरावणियां ! जीत अबै म्हांरी है !
    सावचेत रे टरकावणियां ! जीत अबै म्हांरी है !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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