Saturday, March 7, 2009

८ तन में मस्ती, मन में मस्ती

आपणी भाषा-आपणी बात
तारीख-८/३/२००९
तन में मस्ती, मन में मस्ती

गळियां
उडै गुलाल रे


राजस्थानी रा चावा कवि अर सरस गीतकार कल्याणसिंह राजावत रो जलम नागौर जिलै रै चितावा गांव में दिसंबर, १९३९ नै होयो। आपरै गीतां में राजस्थानी संस्कृति री सांतरी सौरम। मूळ रूप सूं सिणगार रस री कविता रा हेताळु कवि राजावत नै राजस्थान साहित्य अकादमी रै मीरा पुरस्कार समेत मोकळा मान-सनमान मिल्या। होळी रै मौकै बांचो आं रो लिख्योड़ो ओ प्यारो-सो गीत।
-कल्याणसिंह राजावत



फागण आयो, फागण आयो
गूंजै
धूम धमाल रे
तन
में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।


छैला अलबेला मदगैला

रंग-रेलां री लार है

हेलां पर हेला देवै
अधगैला
देवै बारंबार है।
आ रे आज्या संग रा साथी

होज्या लालम लाल रे

तन
में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।


गोरी गोरी करै ठिठोली
होवै जोरा-जोरी रे

हर कोई भोळो कान्हो लागै

हर कोई राधा गोरी रे।

रंग उड़ातां, चंग बजातां

मिटसी मनां मलाल रे

तन
में मस्ती, मन में मस्ती
गळियां उडै गुलाल रे।


आज रो औखांणो

हेत री हांती तो हथाळी में ई भली।

प्रेम की हांती तो हथेली में भी अच्छी।
प्रेम आडंबर में विश्वास नहीं करता। सहज निर्मल भाव से हथेली में परोसी हुई रोटियां सर्वाधिक स्वादिष्ट लगती हैं।

3 comments:

  1. this is very good rajasthani song and this blog is very best blog .
    naveen. nokha

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  2. गीतकार कल्याणसिंह राजावत रो गीत
    ''तन में मस्ती, मन में मस्ती गळियां उडै गुलाल रे..!''प्यारो..!!!
    -Prem Singh Rathore
    (Loonkaransar)
    Valsad,Gujarat
    09725021420
    ms.premraj420@rediffmail.com

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  3. kalyansingh rajawat nai ghana-ghana rang.!
    -raj bijarnia
    loonkaransar

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