Saturday, April 16, 2011

शिक्षा का माध्यम : महात्मा गाँधी














3 comments:

  1. साझे के लिए आभार...
    अपनी भाषा पर बात करना दरअसल अपने आपको, अपनी क्षमताओं को पहचानना है... गाँधीजी इसे जानते थे इसीलिए वो अपनी भाषा के समर्थक थे और अपना श्रेष्ठतम अपनी भाषा में ही लिखा। वे भाषाओं की प्रकृति से तो अवगत थे। वे उसकी बहुआयामिता की ताकत से भी परिचित थे इसीलिए हमेशा एक एक संपर्क भाषा के रूप में हिंदुस्तानी (जिसमें हिंदी, उर्दू के अतिरिक्त तमाम भारतीय भाषाएं समा सके) की वकालात करते रहे।

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  2. सत्यनारायण जी, इसमें पृष्ठ संख्या 12 व 13 नहीं आ आ पाए है।

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  3. shukriya pukhraj ji, dhyanakrashan ke liye shukriya. sudhar kar diya hai...

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