सम्पत सरल रा दो राजस्थानी गीत
(श्री ओम पुरोहित कागद जी रै फेसबुक नोट सूं साभार)म्हारा व्हाला मींत अर जगचावा राजस्थानी कवि भाई सम्पत सरल आज समूळै विश्व में आपरी निरवाळी छिब बणाई है । आप दुनियां भर रै कवि सम्मेलना में जावै अर राजस्थानी रो झंडो उंचावै! आप देश रा सगळा टीवी चैनलां माथै छाया रैवै ! आप मूळत: हास्य-व्यंग्य लिखै अर बोलै ! आपरा दोय राजस्थानी गीत म्हारै हाथ लाग्या है !आपरी निज़र है ऐ दोन्यूं गीत-
[१]
** कुण ईंको सपनो चोरयो है **
नील गगन की ओढ कामळी, श्रमजीवी धरत्यां सोरयो है ।
गडै कांकरा सूळ सरीखा, कुण ईंको सपनो चोरयो है ?
जो जग सींचै बहा पसीनो
जग को कवच जिका को सीनो ’
वो ही जग नै भार होयगो, जो जग को बोझो ढोरयो है
ठंडो चूल्हो ले’र फ़ूंकणी,
फ़ूंक मारतां चढै धूजणी,
हाड-मांस को एक पूतळो , छाणस की रोटी पोरयो है ।
दिन भर रोज मजूरी करणी,
जोड़्यां हाथ हजूरी करणी,
फ़ेर चांच नै चुग्गो कोनी, दास मलूका के होरयो है
लगा हाज़री बैठै छायां,
और करै बस आयां बायां,
पांचूं घी में अर अंटी में, रिपिया पर रिपिया गोरयो है ।
मैनत ईंकी फ़ळ ओरां नै
के चाबी सूंपी चोरां नै ?
अमरस पीवै और भायला, आम बिचारो ओ बोरयो है ।
[२]
** जळ म्हारो धरती ओरां की **
समदर पर बरसै है बादळ, ले म्हारा पोखर को पाणी
ठाडाई देखो जोरां की,
जळ म्हारो धरती ओरां की,
बूंद-बूंद सांचर कर राखी, म्हे काईं अब तक थां ताणी
नितकी मेघ मनावै करसो,
थोडा़ तो म्हारै भी बरसो,
इन्दर की अणदेखी कारण, दाता मुख भूल्या गाणी-माणी ।
अब कुण सूं अरदास करांजी,
अब कुण पर विश्वास करां जी,
सूरज खुद साज़िश में शामिल, मानो तेल गतक गी घाणी ।
सगळा रळ मिळ खम ठोकां तो
छळी पवन को मग रोकां तो,
जद ही हक मिलसी रै भाया, नीतर कोनी आणी-जाणी ।
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-ठावो ठिकाणो-व्हाइट हाउस, 85-मयूर विहार, नांगल जैसा बोहरा,झोटवाडा़,जयपुर-302012
-कानांबाती-9414044418
वाह सा भाई सोनी जी,
ReplyDeleteओ तो थां जोरदार काम करियो नी!
बधायजै !