Sunday, June 5, 2011

हळदीघाटी !


हळदीघाटी !

-कन्हैयालाल सेठिया

कोनी कोरो नांव
रेत रो हळदीघाटी,
अठै उग्यो इतिहास
पुजीजै इण री माटी,

कण-कण घण अणमोल
रगत स्यूं अंतस भीज्यो।
नहीं निछतरी भोम
गिगन रो हियो पतीज्यो,

गूंजी चेतक टाप
जुद्ध रा ढोल घुरीज्या,
पड़ी ना’र री थाप
जुलम रा पग डफळीज्या,

राच्यो रण घमसाण
बाण स्यूं भाण ढकीज्यो।
लसकर लोही झ्याण
अथग खांडो खड़कीज्यो,

मूंघी मोली राड़
स्याळ स्यूं सिंग अपड़ीज्यो,
दब्यो दरप रो सरप
सांतरो फण चिगदीज्यो,

नहीं तेल नारेळ
भटां रा मूंड चढीज्या,
धड़ लड़ धोयो कळख
जबर दुसमण रळकीज्या,

दीन्ही गोडी टेक
अठै आयोड़ी हूणी,
माथै लगा बभूत
पूत, जामण री धूणी,

थिरचक डांडी साच
पालड़ै तिरथ तुलीजै।
इण री चिमठी धूळ
बापड़ो सुरग मुलीजै।

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