Thursday, July 22, 2010

मिलण पुकारै मुरधरा

मिलण पुकारै मुरधरा



खो मत जीवण, वावळी
डूंगर-खोहां जाय।
मिलण पुकारै मुरधरा
रम-रम धोरां आय॥

नांव सुण्यां सुख ऊपजै
हिवड़ै हुळस अपार।
रग-रग नाचै कोड में
दे दरसण जिण वार॥

आयी घणी अडीकतां
मुरधर कोड करै।
पान-फूल सै सूकिया
कांई भेंट धरै॥

आयी आज अडीकतां
झडिय़ा पान'र फूल।
सूकी डाळ्यां तिणकला
मुरधर वार समूल॥

आतां देख उंतावळी
हिवड़ै हुयो हुळास।
सिर पर सूकी जावतां
छूटी जीवण आस॥
-चंद्रसिं

2 comments:

  1. जोरदार रचना.. सायत आ रचना मेह नै संबोधित करनै करिजी है. कवी रौ नांव कांई है हुकम

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