jb jeev jnm leta hai tb uska privesh hi uski bhasha hoti hai our use apne privesh ki bhasha ko smmaan dene our dilane ka poora hk hona chahiye vrna udhar ki bhasha se taumr ru b ru hona pdega .
maine apne blog pr jis klakar ko shrdhanjli di hai vh hai hal hi me gujre mkbool fida husain jo bhut hi vivadaspd rhe hai apni kuchh kritiyo ko lekr lekin mera manna hai ki kisi ki gltiyo ke liye use dndit krne ka pravidhan mai sweekar kr skti hu lekin useke vyktitv ko sire se nkar dena meri smjh se uchit nhi hai .isiliye klakar ko smrpit meri kuchh pnktiya shrdha suman hai .
maine apne blog pr apni bnai koi klakriti ka chitr nhi diya hai . blog pr aane ke liye bhut bhut dhnywaad .
अखबार में कोई एक कॉलम कैसे शुरू होता है और कैसे हिट होता है इसे दैनिक भास्कर के श्रीगंगानगर एडिशन में नियमित प्रकाशित हो रहे 'आपणी भाषा-आपणी बात' स्तंभ की अंतरकथा जानकर ही अंदाज लगाया जा सकता है। यह स्तंभ मेरी अब तक की पत्रकारिता का यादगार प्रसंग तो है ही और इससे यह भी समझा जा सकता है कि हिंदी पत्रकारिता के सबसे बड़े दैनिक भास्कर पत्र समूह ने अपने संपादकों, स्टाफ को काम करने, नए प्रयोग की भरपूर आजादी भी दे रखी है। अपनी भाषा के प्रति क्या दर्द और क्या सम्मान होता है यह उज्जैन (मध्यप्रदेश) से उदयपुर (राजस्थान) स्थानांतरण के बाद ही समझ आया। जैसे गांधीजी ने आजादी के लिए अकेले संघर्ष शुरू किया और लोग जुड़ते गए। कुछ वैसा ही राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने के आंदोलन को राजेंद्र बारहठ, शिवदान सिंह जोलावास, घनश्यामसिंह भिंडर आदि से थोड़ा बहुत समझ पाया। इसे एक दिल से जुड़े मुद्दे के रूप में उदयपुर में 'मायड़ भाषा' स्तंभ से शुरू किया और राजस्थान की भाषा संस्कृति की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने को आतुर लोगों ने मान लिया कि संवैधानिक दर्जा दिलाना अब भास्कर का मुद्दा हो गया है। अप्रैल 08 में उदयपुर से श्रीगंगानगर स्थानांतरण पर इस मुद्दे को उठाने की छटपटाहट तो थी, लेकिन पहली प्राथमिकता थी दोनों शहरों का मिजाज समझना। एक शाम मोबाइल पर अखिल भारतीय राजस्थानी भासा मान्यता संघर्ष समिति के प्रदेशाध्यक्ष हरिमोहन सारस्वतजी ने संपर्क किया। वो मेरे लिए नए थे, लेकिन उन्होंने जिस तरह बारहठ जी और बाकी परिचितों के नाम के साथ बातचीत शुरू की तो मुझे लग गया कि मैं यहां नया हो सकता हूं लेकिन मेरी पहचान कई लोगों को करा दी गई है। सारस्वतजी से संपर्क बना रहा, आग्रह करते रहे कि सूरतगढ़ आएं। ब्यूरो कार्यालय की बैठक आदि के संदर्भ में जाना हुआ भी, लेकिन उनसे मुलाकात का वक्त नहीं निकाल पाया। एक शाम तो राजस्थानी मनुहार में हरिमोहन जी ने आदेश सुना ही दिया- सुगनचंद सारस्वत स्मृति में दिए जाने वाले वार्षिक साहित्यिक पुरस्कार समारोह में राजस्थानी भाषा के युवा कवि-परलीका के विनोद स्वामी को सम्मानित करने आना ही है। इंकार कर नहीं सकता था। फिर भी कह दिया अच्छा आप गाड़ी भिजवा देना फिर देखेंगे। कार्यक्रम से एक दिन पहले फिर मैसेज आ गया श्रीगंगानगर से ही राजकीय महाविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. अन्नाराम शर्मा और युवा साहित्यकार कृष्ण कुमार आशु (राजस्थान पत्रिका) आपको साथ लेकर आएंगे। अब तो न जाने के सारे बहानों के रास्ते बंद हो चुके थे। कार्यक्रम राजस्थानी भाषा के सम्मान से जुड़ा था। सोचा मालवी में बोलूंगा लेकिन ठीक से बोलना आता नहीं और गलत तरीके से राजस्थानी बोलना मतलब बाकी लोगों का दिल दुखाना और खुद की हंसी उड़ाना। राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बारहठ ही अंधेरे में आशा की किरण बने। फोन पर उन्हें मैंने अपने प्रस्तावित वक्तव्य की भावना बताई। उन्होंने राजस्थानी में अनुवाद किया और फोन पर ही मैंने भाषण नोट किया। राजस्थानी भाषा के इस भाषण को पढ़ने के अभ्यास के वक्त लगा कि सोनिया गांधी के हिंदी भाषण की खिल्ली उड़ाकर हम लोग कितनी मूरखता करते हैं। सूरतगढ़ तक के रास्ते में अन्नाराम जी और आशु चिंतन चर्चा करते रहे। यह भी मुद्दा उठा कि समारोह में राजस्थानी में ही बोलना चाहिए। मेरी जेब में राजस्थानी में लिखा भाषण रखा था, लेकिन इन दोनों भाषाई धुरंधरों के सामने यह कहने की हिम्मत नहीं हुई कि मैं भी राजस्थानी भाषा में बोलूंगा। कार्यक्रम शुरू हुआ तो जिला प्रमुख पृथ्वीराज मील भी राजस्थानी में जितना मीठा बोले उतना ही मनमोहक उनका पारंपरिक पहनावा भी था। मेरी बारी आई, भाषण लिखा हुआ था, लेकिन हाथ-पैर कांप रहे थे। शुरुआत से पहले विनोद स्वामी से पूछ लिया था। उन्होंने बताया मासी को यहां भी मासी ही बोलते हैं। मैंने मंच से जब कहा कि मालवी और राजस्थानी दोनों बहनें हैं। इस तरह मैं अपनी मासी के घर आया हूं, राजस्थानी में भाषण पढूंगा तो उपस्थितजनों ने तालियों के साथ स्वागत किया और मेरी हिम्मत खुल गई। इस मंच से अच्छा और कोई मौका कब मिलता। मैंने राजस्थानी भाषा में स्तंभ शुरू करने की घोषणा कर दी। समारोह समापन के बाद हम सब चाय-नाश्ते के लिए बढ़ रहे थे। उसी वक्त सूरतगढ़ भास्कर के तत्कालीन ब्यूरो चीफ सुशांत पारीक को सलाह दी कि इस पूरे कार्यक्रम की राजस्थानी भाषा में ही रिपोर्ट तैयार करें। वहीं विनोद स्वामी, रामस्वरूप किसान, सत्यनारायण सोनी से स्तंभ के स्वरूप को लेकर चर्चा हुई। सोनी जी के पुत्र अजय कुमार सोनी को श्रेय जाता है राजस्थानी भाषा को नेट पर जन-जन से जोड़ने का। इस समारोह की रिपोर्ट राजस्थानी भाषा में प्रकाशित होने का फीडबेक अच्छा ही मिलेगा, यह विश्वास मुझे इसलिए भी था कि अखबारों में क्षेत्रीय भाषा में हेडिंग देने के प्रयोग तो होते ही रहते हैं। किसी कार्यक्रम की पूरी रिपोर्ट क्षेत्रीय भाषा में प्रकाशित करने का संभवत: यह पहला अनूठा प्रयोग जो था। खूब फोन आए। बस स्तंभ के लिए सिलसिला शुरू हो गया। किसी भी काम की सफलता तय ही है बशर्ते उस काम से सत्यनारायण सोनी, विनोद स्वामी जैसे निस्वार्थ सेवाभावी जुड़े हों। इन दोनों को अपने नाम से ज्यादा चिंता यह रहती है कि मायड़ भाषा का मान कैसे बढ़े। हमने रोज फोन पर ही चर्चा कर योजना बनाई। मेरा सुझाव था कि इस कॉलम में हम भाषा की जानकारी इतने सहज तरीके से दें कि आज की पब्लिक स्कूल वाली पीढ़ी भी आसानी से जुड़ सके और भविष्य में प्राथमिक-माध्यमिक स्तर की पढ़ाई के लिए राजस्थानी भाषा की पुस्तक भी तैयार हो जाए। कॉलम को भारी-भरकम साहित्यिक भाषा वाला बनाने पर खतरा था कि सामान्यजन रुचि नहीं दिखाएंगे। इस स्तंभ का उद्देश्य यही है कि जिन्हें राजस्थानी नहीं आती वो इस मनुहार वाली भाषा की मिठास को समझें और जिन्हें आते हुए भी बोलने में झिझक महसूस होती है उनकी झिझक टूटे। 'भास्कर' ने इस स्तंभ के लिए स्थान जरूर मुहैया कराया है, लेकिन सामग्री जुटाना, राजस्थानी भाषा में तैयार करना, कॉलम के लिए विशेष अवसर पर प्रमुख कवियों-साहित्यकारों से लिखवाना यह सारा दायित्व इन दोनों ने ले रखा है। जैसे शोले सलीम-जावेद के कारण सफल हुई तो 'भास्कर' में 'आपणी भाषा-आपणी बात' स्तंभ परलीका निवासी सोनी-स्वामी की जोड़ी से ही हिट हो रहा है। 'आपणी भाषा आपणी बात' स्तंभ को आप अजय कुमार सोनी द्वारा तैयार किए ब्लाग www.aapnibhasha.blogspot.com पर विस्तार से देख सकते हैं। -कीर्ति राणा www.pachmel.blogspot.com
डॉ.सत्यनारायण सोनी- १० मार्च, १९६९ नै परलीका गांव में जलम्या डॉ. सत्यनारायण सोनी राजस्थानी रा चर्चित कथाकार हैं। 'घमसाण' कहाणी संग्रै सारू आप राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी-बीकानेर, मारवाड़ी सम्मेलन-मुंबई अर ज्ञान भारती, कोटा सूं पुरस्कृत हुया। सोनी री बाल-साहित्य री तीन पोथ्यां भी छपी है। कहाणी संग्रह 'इक्कीस' राजस्थानी री पै'ली वेब-बुक। साहित्य अकादेमी-नई दिल्ली रै राजस्थानी परामर्श मंडल रा आप मनोनीत सदस्य भी रैया। परलीका रै राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय मांय आप व्याख्याता(हिन्दी)पद पर कार्यरत।
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विनोद स्वामी- १४ जुलाई, १९७७ नै परलीका गांव में जलम्या विनोद स्वामी राजस्थानी रा चर्चित युवा कवि हैं। हिन्दी कविता संग्रै 'आंगन, देहरी और दीवार' अर टाबरां सारू 'गीत-गुलशन' अर 'वीरों को सलाम' पोथ्यां छपी हैं। चंद्रसिंह बिरकाळी पुरस्कार अर श्री सुगन साहित्य सम्मान मिल चुक्या हैं। पत्रकारिता सूं खास लगाव। पत्र-पत्रिकावां में रचनावां छपती रैवै। आपरी रचनावां रा हिन्दी, अंग्रेजी अर पंजाबी अनुवाद भी हुया है। साहित्य अकादेमी-नई दिल्ली री स्वर्ण जयंती पर भोपाल रै भारत-भवन मांय भी आप काव्य-पाठ कर'र राजस्थानी कविता रो मान बधायो। राजस्थानी भाषा मान्यता आंदोलन सारू आखै राजस्थान री जातरा करी।
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