Monday, February 7, 2011

किंया रैसी 'मायड़' रो मान

किंया रैसी 'मायड़' रो मान

hanumangarh


हनुमानगढ़। मायड़ भाषा कहलाने वाली 'राजस्थानी' अपनों के बीच ही अनजानी हो गई है। मरूप्रदेश की शिक्षण संस्थाओं में राजस्थानी भाषा की हालत कुछ ऎसी ही कड़वी हकीकत से रूबरू करवाती है। आज राज्य के दो फीसदी विद्यालयों में भी राजस्थानी भाषा वैकल्पिक विषय के रूप में नहीं पढ़ाई जा रही है। जहां कुछ विद्यालयों में यह विषय स्वीकृत है, वहां व्याख्याताओं के पद लम्बे समय से खाली हैं। कॉन्वेंट शिक्षा के दौर में नई पीढ़ी मायड़ भाषा से कैसे जुड़ेगी, यह सवाल राजस्थानी संरक्षकों को साल रहा है।

दहाई में सिकुड़ी संख्या
जानकारी के अनुसार प्रदेश में तीन हजार से अघिक राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय हैं। लेकिन बात जब राजस्थानी भाषा की आती है तो यह संख्या दहाई में सिकुड़ जाती है। माध्यमिक शिक्षा के आंकड़ों के मुताबिक राज्य के महज पैंतीस विद्यालयों में मायड़ भाषा वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। मगर इन नाम मात्र के विद्यालयों में भी सरकार पूरे व्याख्याता नहीं लगा सकी। फिलहाल राजस्थानी भाषा के 15 व्याख्याताओं के पद खाली चल रहे हैं। आरपीएससी की भर्ती से भी इस समस्या का निदान नहीं निकाला गया।

मान्यता से बदलेगी स्थिति
राजस्थानी भाषा को मान्यता के बाद विद्यालयों में इसके विद्यार्थी बढ़ सकते हैं। क्योंकि फिर विद्यार्थी राजस्थानी का प्राथमिक स्तर पर ही अध्ययन कर सकेंगे। भाषा होने के कारण पंजाबी की स्थिति आज राजस्थानी से काफी अच्छी है। प्राथमिक शिक्षा के सात सौ से अघिक विद्यालयों में पंजाबी भाषा पढ़ाई जा रही है।

शिक्षण संस्थाओं में मायड़ भाषा
बोलने वाले बच्चों को हेय दृष्टि से देखा जाता है। जबकि पढ़ाई की शुरूआत में मायड़ भाषा में बताया गया सबक बच्चा जल्दी याद कर लेता है। इसका यह अर्थ नहीं कि उसे हिन्दी, अंग्रेजी की शिक्षा न दी जाए। लेकिन राजस्थानी के प्रति सोच बदलने की जरूरत है।
विनोद स्वामी, प्रदेश प्रचार मंत्री, अखिल भारतीय राजस्थानी भाषा मान्यता संघर्ष समिति।

अदरीस खान

राजस्थान पत्रिका

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