बूढ़ी माई बापरी, हरखी धरा समूल
आसाढ़ री पैली बिरखा साथै धरती पर एक जीव उतरै। बेजां फूटरो, बेजां कंवळो अर बेजां नाजक। नाजक इत्तो कै घास पर पळका मारती ओस नै परस सकां पण इण नै परसतो हाथ धूजै। आ टीबां पर रमती ओस ई है। लाल ओस। जियां ओस तावड़ो नीं सैय सकै अर सूरज री किरणां रै रथ पर सवार होय'र इण लोक सूं उण लोक सिधार ज्यावै। उणी भांत ओ जिनावर भी तावडिय़ै सूं बचण सारू बूई-बांठ अर घास-पात री सरण में चल्यो जावै। कैय सकां, टीबां रै लोक सूं बांठां रै लोक सिधार ज्यावै। अर जद ठंड हुवै, पाछो ई टीबां नै मखमली करद्यै।आपणी भाषा में आ बूढ़ी माई बजै। तीज, सावण री डोकरी, थार री बूढ़ी नानी अर ममोल इणरा ई नांव। हिंदी में इणनै वीर-बहूटी अर इंद्रवधू अनै अंग्रेजी में रेड वेलवेट माइट कैवै। जीव विज्ञान री दीठ सूं ओ संधि पाद विभाग री लूना श्रेणी में वरूथी वर्ग में द्रोम्बी डायोडी परिवार में डायनाथोम्बियम वंस रो जीव है। इणरो हाड-पांसळी बायरो डील घणो लचीलो। पैली बिरखा री टेम बूढ़ी माई जमीं में इंडा देवै। आठ पौर में बचिया बारै निकळै। ऐ जमीं रै मांय-मांय नान्हा-नान्हा जीवां नै खाय'र पळै। अर सूरज उगाळी रै साथै बारै टुरता-फिरता निगै आवै। जद सूरज छिपै, पाछा ई जमीं में बड़ ज्यावै। इणरै आठ पग। पण नखराळी चाल। संकोची सभाव। जकी छेड़्यां छापळै। डील पर रेशम सूं कंवळा लाल बाळ। इणरो गात इत्तो कंवळो कै चित्रण करतो कवि कतरावै। इत्ता कंवळा सबद कठै लाधै? अर कठै लाधै इत्तो कंवळो भाव, जिणसूं इणरो कंवळो डील अभिव्यक्त होय सकै। इणनै किणरी उपमा देवै? इसो उपमान कठै ढूंढै? मखमल? ना! कठै मखमल अर कठै बूढ़ी माई! कठै राम-राम अर कठै टैं-टैं। हां, मां रै मोम सरीखै दिल री कंवळाई सूं मींड सकां आपां इणनै। पण आ उपमा ई बेमेळ है। क्यूंकै वस्तुगत खासियत री भावगत खासियत सूं तुलना अपरोगी लागै। ईयां कै बारली विसेसता नै भीतरली विसेसता सूं तोलणो फिट कोनी बैठै। अब रैयी बात इण रै फूटरापै री। फूटरी इत्ती कै देख्यां जीवसोरो हुवै। हथाळी पर लेवण नै जी करै। पण इण रो रूप बिगड़ण रै भय सूं कदे-कदास ई अर बा ई अणूंती सावचेती सूं पकड़'र हथाळी पर धरां। आ हाथ में लेयां मैली हुवै। इण रै रूप रो पार नीं। टीबां पर हवळै-हवळै चालती बूढ़ी माई लाल जोड़ै में लाल बीनणी-सी लागै। जकी रूप रै रसियां नै आप कानी खींचै। आ टाबरां नै घणी प्यारी लागै। वै इणनै हथाळी पर राखै अर घणा लाड-कोड करै। बा पंजा भेळा कर्यां हथाळी पर पड़ी रैवै। टाबर नाचता-कूदता गावै- 'तीज-तीज थारो मामो आयो, आठूं पजां खोल दे।' आओ, आपणी भाषा रै दूहां में इणरो बिड़द बखाणां!
बूढ़ी माई बापरी, हरखी धरा समूल।
जाणै आभै फैंकिया, गठजोड़ै पर फूल॥
रज-रज टीबां में रमै, बिरखा मांय ममोल।
जाणै मरुधर ओढियो, चूंदड़ आज अमोल॥
चालै धरती सूंघती, बूढ़ी माई धीम।
आई खेत विभाग सूं, माटी परखण टीम॥
बूढ़ी माई आ नहीं, झूठो बोलै जग्ग।
इंदराणी रै नाथ रो, पड़ग्यो हूसी नग्ग॥
आज रो औखांणो
मेह रा पग लीला।
मेह के पाँव हरे-भरे।
चार शब्दों की इस कहावत में कितने-कितने विलक्षण भाव निहित हैं। बरसात में बादलों की ऊँचाई से होती है और धरती पर हरियाली छाने लगती है। घटा-बादल तो मेह का ऊपरी भाग है और पाँव हैं हरी-भरी धरती, जिसमें असंख्य फूल सजे-संवरे हैं। मेह की हरियाली से सबके दिल हरे-भरे हो जाते हैं।जाणै आभै फैंकिया, गठजोड़ै पर फूल॥
रज-रज टीबां में रमै, बिरखा मांय ममोल।
जाणै मरुधर ओढियो, चूंदड़ आज अमोल॥
चालै धरती सूंघती, बूढ़ी माई धीम।
आई खेत विभाग सूं, माटी परखण टीम॥
बूढ़ी माई आ नहीं, झूठो बोलै जग्ग।
इंदराणी रै नाथ रो, पड़ग्यो हूसी नग्ग॥
आज रो औखांणो
मेह रा पग लीला।
मेह के पाँव हरे-भरे।
प्रस्तुति : डॉ. सत्यनारायण सोनी, परलीका (हनुमानगढ़)
wah sa wah...kai saantri baat kini h..
ReplyDeletekisaan ji ne ghana lakhdaad..
mokla rang..
ek dooho mharo bhi baancho..
बिरखा ल्याई बूडकी
मुरधर मुळकै मौज ।
लीलै माथे टणमणै
लालाँ लाली फ़ौज ॥
Mazo agyo ji.......bhot badiya,,,
ReplyDeletelakhdatar sa santari bat kahi sa.
ReplyDeleteहुकम, मेह रा पग लिला नै ज्यूं मुसलमानी (हिंदी) मांय विस्तारीत कर्यौ व्यूंईं राजस्थानी मांय करौ तौ सगळा राजस्थानी प्रेमी ईं इणनै बांचै सा.
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