कन्हैयालाल सेठिया
आभै में उड़ता खग थमग्या
गेलै में बैंता पग थमग्या
हाको सो फूट्यो धरती पर
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?
ओ मिनख मरयो'क मरयो पाखी?
सै साथै नाड़ कियां नाखी?
बा सिर कूटै है हिंदुआणी
बा झुर झुर रोवै तुरकाणी।
इसड़ो कुण सजन सनेही हो
सगळां रा हिवड़ा डगमगग्या।
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?
मिनखां रो रुळग्यो मिनखपणो
देवां री मिटगी संकळाई,
बापूजी सुरग सिधार गया
हूणी रै आडी के आई?
जीऊंला सौ'र पचीस बरस
बिसवास दिरा'र किंया ठगग्या?
गिगनार पडै़ लो अब नीचै
सतवादी वचनां स्यूं डिगग्या
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?
बापू सा मिनखां देही में
धरती पर मिनख नहीं आया,
आगै री पीढ्यां पूछै ली-
के इस्या नखतरी जुग जाया?
ई एक जोत रै पळकै स्यूं
इतिहास सदा नै जगमगग्या
ईं एक मौत रै मोकै पर
सगळां रा आंसू रळ मिलग्या,
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?
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ReplyDeletebhai ji,
ReplyDeletejabar.!
-Raj Bijarnia
lunkaransar
बचपन में कभी यह कविता आधी अधूरी सुनी थी। लम्बे समय से इस कविता की तलाश थी जो अब जाकर पूरी हुई है। इस मर्मस्पर्शी कविता को उपलब्ध करवाने के लिए “आपणी भाषा आपणी बात” का कोटिश: धन्यवाद।
ReplyDeleteहरि कृष्ण आर्य
हनुमानगढ
arya_hk@yahoo.co.in
दुनियाभर में आपणी भाषा रा कदरदान है अर मायड़भाषा रो ओ ब्लॉग चाव सूँ बांचे. इण बात ऱी साख भरे विजिटर मैप...
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