Friday, January 29, 2010

बापू

बापू


कन्हैयालाल सेठिया

महात्मा गांधी रै सुरगवास माथै देस री कांई दसा व्ही। सगळै जीव जगत माथै उण महान आत्मा रै गमन रौ कांई असर व्हीयो, उणरौ वर्णन कवि सेठिया री रचना मे घणौ मर्मस्पर्शी शब्दां में मिळै। जात-पांत रा भेद नै मेटण वाळौ, मिनख मातर रौ सांचो मींत, महात्मा गांधी जैड़ा अवतारी इण धरती माथै आया न कोई आवै। एक गांधी रै मिटण सूं सगळा री आँख्यां में आँसू है। मरतो-मरतो ई गांधी एकता रौ पाठ पढ़ाय ग्यौ।


आभै में उड़ता खग थमग्या
गेलै में बैंता पग थमग्या
हाको सो फूट्यो धरती पर
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

ओ मिनख मरयो'क मरयो पाखी?
सै साथै नाड़ कियां नाखी?
बा सिर कूटै है हिंदुआणी
बा झुर झुर रोवै तुरकाणी।

इसड़ो कुण सजन सनेही हो
सगळां रा हिवड़ा डगमगग्या।
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

मिनखां रो रुळग्यो मिनखपणो
देवां री मिटगी संकळाई,
बापूजी सुरग सिधार गया
हूणी रै आडी के आई?

जीऊंला सौ'र पचीस बरस
बिसवास दिरा'र किंया ठगग्या?
गिगनार पडै़ लो अब नीचै
सतवादी वचनां स्यूं डिगग्या
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

बापू सा मिनखां देही में
धरती पर मिनख नहीं आया,
आगै री पीढ्यां पूछै ली-
के इस्या नखतरी जुग जाया?

ई एक जोत रै पळकै स्यूं
इतिहास सदा नै जगमगग्या
ईं एक मौत रै मोकै पर
सगळां रा आंसू रळ मिलग्या,
बै कुण गमग्या, बै कुण गमग्या?

4 comments:

  1. bhai ji,
    jabar.!
    -Raj Bijarnia
    lunkaransar

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  2. बचपन में कभी यह कविता आधी अधूरी सुनी थी। लम्बे समय से इस कविता की तलाश थी जो अब जाकर पूरी हुई है। इस मर्मस्पर्शी कविता को उपलब्ध करवाने के लिए “आपणी भाषा आपणी बात” का कोटिश: धन्यवाद।
    हरि कृष्ण आर्य
    हनुमानगढ
    arya_hk@yahoo.co.in

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  3. दुनियाभर में आपणी भाषा रा कदरदान है अर मायड़भाषा रो ओ ब्लॉग चाव सूँ बांचे. इण बात ऱी साख भरे विजिटर मैप...
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