Thursday, October 1, 2009

२ अक्तूबर, जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे

अक्तूबर, २००९

देश के प्रख्यात जनकवि हरीश भादानी का शुक्रवार की सुबह बीकानेर में तड़के उनके आवास पर निधन हो गया। वे 76 वर्ष के थे। उनके परिवार में तीन पुत्रियां और एक पुत्र है।

उनका पार्थिव शरीर लोगों के दर्शनार्थ आज दिन भर उनके आवास पर रखा जाएगा। उनकी इच्छा के अनुरूप अन्तिम संस्कार के स्थान पर उनकी पार्थिव देह को शनिवार को सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज बीकानेर के छात्रों के अध्ययन के लिए सौंपी जाएगी।

जनकवि हरीश भादानी नहीं रहे. यह खबर हर इन्सान के लिए दुखदायी है. राजस्थानी भाषा मान्यता आन्दोलन को भी उनके न रहने से धक्का लगा है। वे मूल रूप से राजस्थानी रचनाकार थे.

उनकी राजस्थानी में प्रकाशित पुस्तकें--

बाथां में भूगोळ (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1984
खण-खण उकळलया हूणिया (होरठा) जोधपुर .ले.स।
खोल किवाड़ा हूणिया, सिरजण हारा हूणिया (होरठा) राजस्थान प्रौढ़ शिक्षण समिति जयपुर।
तीड़ोराव (नाटक) राजस्थानी भाषा-साहित्य संस्कृति अकादमी, बीकानेर पहला संस्करण 1990 दूसरा 1998
जिण हाथां रेत रचीजै (कविताएं) अंशु प्रकाशन, बीकानेर।

वे पहले ऐसे इन्सान थे जिन्होंने राजस्थानी को राजस्थान की पहली राजभाषा बनाये जाने की मांग की. बीकानेर के लोकमत कार्यालय में 1980 में राजस्थानी दूजी राजभाषा विषय पर वैचरिक गोष्टी के मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए उन्होंने बड़े ही तीखे और गरम रुख से राजस्थानी को दूसरी नहीं पहली राजभाषा बनाने की पैरोकारी की.
राजस्थानी के लिए आजीवन संघर्षरत रहने वाले मायडभाषा के इस सच्चे और जुझारू सपूत को हमारी विनम्र श्रधान्जली।







श्री हरीश भादानी देश के बड़े कवि थे। श्री हरीश जी अपनी कविता ‘‘ये राज बोलता स्वराज बोलता....’’ एवं ‘‘रोटी नाम संत हैं....’’ दिल्ली के इंडिया गेट के आगे प्रस्तुत की थी। उनकी इस स्तर की कविताएं हैं। लोग इनकी कविताओं को गाते हैं, गुनगुनाते हैं। डॉ. जगदीश्वर चतुर्वेदी जो कि बंगाल विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं। उन्होंने अपने भाषण में श्री हरीश जी की कविताओं में स्थानीयता के पुट को नकारते हुए कहा कि ये उनको राष्ट्रीय स्तर पर जाने से रोकता है, परंतु श्री भादानीजी की हिन्दी और राजस्थानी की कविताओं की राष्ट्रीय पहचान पहले से प्राप्त हो चुकी है।11 जून 1933 बीकानेर में (राजस्थान) में आपका जन्म हुआ। आपकी प्रथमिक शिक्षा हिन्दी-महाजनी-संस्कृत घर में ही हुई। आपका जीवन संघर्षमय रहा । सड़क से जेल तक कि कई यात्राओं में आपको काफी उतार-चढ़ाव नजदीक से देखने को अवसर मिला । रायवादियों-समाजवादियों के बीच आपने सारा जीवन गुजार दिया। आपने कोलकाता में भी काफी समय गुजारा। आपकी पुत्री श्रीमती सरला माहेश्वरी ‘माकपा’ की तरफ से दो बार राज्यसभा की सांसद भी रह चुकी है। आपने 1960 से 1974 तक वातायन (मासिक) का संपादक भी रहे । कोलकाता से प्रकाशित मार्क्सवादी पत्रिका ‘कलम’ (त्रैमासिक) से भी आपका गहरा जुड़ाव रहा है। आपकी प्रोढ़शिक्षा, अनौपचारिक शिक्षा पर 20-25 पुस्तिकायें राजस्थानी में। राजस्थानी भाषा को आठवीं सूची में शामिल करने के लिए आन्दोलन में सक्रिय सहभागिता। ‘सयुजा सखाया’ प्रकाशित। आपको राजस्थान साहित्य अकादमी से ‘मीरा’ प्रियदर्शिनी अकादमी, परिवार अकादमी(महाराष्ट्र), पश्चिम बंग हिन्दी अकादमी(कोलकाता) से ‘राहुल’, । ‘एक उजली नजर की सुई(उदयपुर), ‘एक अकेला सूरज खेले’(उदयपुर), ‘विशिष्ठ साहित्यकार’(उदयपुर), ‘पितृकल्प’ के.के.बिड़ला फाउंडेशन से ‘बिहारी’ सम्मान से आपको सम्मानीत किया जा चुका है
Some Books of Shri Harish Bhadani

हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें:


अधूरे गीत (हिन्दी-राजस्थानी) 1959 बीकानेर।
सपन की गली (हिन्दी गीत कविताएँ) 1961 कलकत्ता।
हँसिनी याद की (मुक्तक) सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर 1963।
एक उजली नजर की सुई (गीत) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966 (दूसरा संस्करण-पंचशीलप्रकाशन, जयपुर)
सुलगते पिण्ड (कविताएं) वातायान प्रकाशन, बीकानेर 1966
नश्टो मोह (लम्बी कविता) धरती प्रकाशन बीकानेर 1981
सन्नाटे के शिलाखंड पर (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर1982।
एक अकेला सूरज खेले (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1983 (दूसरा संस्करण-कलासनप्रकाशन, बीकानेर 2005)
रोटी नाम सत है (जनगीत) कलम प्रकाशन, कलकत्ता 1982।
सड़कवासी राम (कविताएं) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1985।
आज की आंख का सिलसिला (कविताएं) कविता प्रकाशन,1985।
विस्मय के अंशी है (ईशोपनिषद व संस्कृत कविताओं का गीत रूपान्तर) धरती प्रकाशन, बीकानेर 1988ं
साथ चलें हम (काव्यनाटक) गाड़ोदिया प्रकाशन, बीकानेर 1992।
पितृकल्प (लम्बी कविता) वैभव प्रकाशन, दिल्ली 1991 (दूसरा संस्करण-कलासन प्रकाशन, बीकानेर 2005)
सयुजा सखाया (ईशोपनिषद, असवामीय सूत्र, अथर्वद, वनदेवी खंड की कविताओं का गीत रूपान्तर मदनलाल साह एजूकेशन सोसायटी, कलकत्ता 1998।
मैं मेरा अष्टावक्र (लम्बी कविता) कलासान प्रकाशन बीकानेर 1999
क्यों करें प्रार्थना (कविताएं) कवि प्रकाशन, बीकानेर 2006
आड़ी तानें-सीधी तानें (चयनित गीत) कवि प्रकाशन बीकानेर 2006
अखिर जिज्ञासा (गद्य) भारत ग्रन्थ निकेतन, बीकानेर २००७
भादानी की दो कवितायें
1.
बोलैनीं हेमाणी.....
जिण हाथां सूं
थें आ रेत रची है,
वां हाथां ई
म्हारै ऐड़ै उळझ्योड़ै उजाड़ में
कीं तो बीज देंवती!
थकी न थाकै
मांडै आखर,
ढाय-ढायती ई उगटावै
नूंवा अबोट,
कद सूं म्हारो
साव उघाड़ो औ तन
ईं माथै थूं
अ आ ई तो रेख देवती!
सांभ्या अतरा साज,
बिना साजिंदां
रागोळ्यां रंभावै,
वै गूंजां-अनुगूंजां
सूत्योड़ै अंतस नै जा झणकारै
सातूं नीं तो
एक सुरो
एकतारो ई तो थमा देंवती!
जिकै झरोखै
जा-जा झांकूं
दीखै सांप्रत नीलक
पण चारूं दिस
झलमल-झलमल
एकै सागै सात-सात रंग
इकरंगी कूंची ई
म्हारै मन तो फेर देंवती!
जिंयां घड़यो थें
विंयां घड़ीज्यो,
नीं आयो रच-रचणो
पण बूझण जोगो तो
राख्यो ई थें
भलै ई मत टीप
ओळियो म्हारो,
रै अणबोली
पण म्हारी रचणारी!
सैन-सैन में
इतरो ई समझादै-
कुण सै अणदीठै री बणी मारफत
राच्योड़ो राखै थूं
म्हारो जग ऐड़ो?
[‘जिण हाथां आ रेत रचीजै’ से ]
2.
रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
ऐरावत पर इंदर बैठे
बांट रहे टोपियां

झोलिया फैलाये लोग
भूग रहे सोटियां
वायदों की चूसणी से
छाले पड़े जीभ पर
रसोई में लाव-लाव भैरवी बजत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बोले खाली पेट की
करोड़ क्रोड़ कूडियां
खाकी वरदी वाले भोपे
भरे हैं बंदूकियां
पाखंड के राज को
स्वाहा-स्वाहा होमदे
राज के बिधाता सुण तेरे ही निमत्त है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
बाजरी के पिंड और
दाल की बैतरणी
थाली में परोसले
हथाली में परोसले

दाता जी के हाथ
मरोड़ कर परोसले
भूख के धरम राज यही तेरा ब्रत है

रोटी नाम सत है
खाए से मुगत है
[रोटी नाम सत है]

प्रस्तुति - सत्यनारायण सोनी.

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